Thursday, July 9, 2020

फोटोफ्रेम (हिंदी)





विनयजी आज काफी प्रसन्न मूड में घर लौटे. वजह ही ऐसी थी. एक फोटोफ्रेम जो कई दिनों से उनकी नजर में थी उसे भंगार बाजार से लाने में आज वे सफल हुए थे. विनयजी को पुरानी वस्तुएं इकठ्ठा करने का शौक था. अनेक पुरानी चीजे उनके संग्रह में थीं. ऐसी वस्तुओं की खोज में वे ऑफिस से लौटते हुए अक्सर पुराने सामान के बाज़ार में चक्कर लगा लिया करते थे. और ऐसे ही में उन्हें वो धातू की नक्काशीदार फ्रेम दिखाई पड़ी. उनके अनुमान से वह फ्रेम 70-80 साल पुरानी रही होगी. हालाँकि वह फ्रेम काफी मैली और गन्दगी से भरी थी, सफाई के बाद वह बहुत सुन्दर दिखाई देगी यह बात उनकी अनुभवी दृष्टी ने पहचान ली थी. थोडा मोलभाव कर काफी कम कीमत में उसे ला पाने में वह कामयाब हुए थे.


फ्रेम को शबनम में से टेबल पर निकाल वह बाथरूम में गये, हाथ मुँह धो कर, कपड़े बदल वह रसोई बनाने में भिड गए. विनयजी की पत्नी गुजर जाने के बाद वे अकेले ही उस फ़्लैट में रहा करते थे. उनकी इकलौती लड़की सुप्रिया का विवाह साल–डेढ़ साल पहले ही हुआ था और उसके कुछ ही दिन बाद उनकी पत्नी का देहावसान हो गया था. घर में अब वे अकेले ही रह गये थे.
रसोई बनाने और खाना खा लेने के बाद वे आज खरीद कर लाई हुई फ्रेम का निरिक्षण करने में जुट गये. फ्रेम में लगा ख़राब पुठ्ठा और टूटे-फूटे काँच को अलग कर कचरापेटी में फेंक दिया. फ्रेम पर लगी धूल उन्होंने ब्रश की मदद से साफ़ की, किन्तु नक्काशी के बीच गहरी चिपकी गन्दगी को साफ़ करने के लिए उन्हें साबुन के पानी और पीताम्बरी आदि से अच्छे से रगड़ कर खूब धोना पड़ा. इस मेहनत के बाद उभरी हुई फ्रेम की खूबसूरती देखकर वे दंग रह गए. अगले दिन ऑफिस का अवकाश था तो उसका फायदा उठाते हुए बाजार जा कर एक फोटोफ्रेमिंग की दुकान से उस फ्रेम में काँच और पीछेवाला पुठ्ठा लगवा लिया.   

घर आकर उस फ्रेम में किसका फोटो लगाया जाये इसका विचार करते हुए याद आया कि पड़ोस के फ़्लैट में रहने वाली निधि का फोटो अलमारी में रखा हुआ है. विनयजी ने अलमारी का  दराज खोला. उसमें निधि के तीन चार फोटो रखे हुए थे, उनमें से उस फ्रेम की साईज के अनुरूप एक फोटो चुनकर उन्होंने फ्रेम में फिट कर दिया. पाँचवी कक्षा की छात्रा निधि उनके पडौसी त्रिवेदीजी जी पुत्री थी. पढाई में बड़ी होशियार और स्मार्ट निधि विनयजी की काफी लाडली थी. स्कूल के बाद या छुट्टी के दिन वह अपने विनय अंकल के यहाँ आकर बैठा करती, खूब गप्पे लड़ाई जातीं, तरह-तरह की बातें होती और खाने की चीजों का मजा लिया जाता.
   
निधि के फोटो लगी फ्रेम को अपने बेडरूम में बिस्तर के नजदीक की मेज पर जमा दिया और रात को अपने निर्धारित समय बिस्तर पर लेट गए. कुछ ही समय में वे नींद में डूब गए. देर रात अचानक उन्हें शोरगुल सुनाई दिया और नींद खुल गई. सडक पर लोग शोर मचा रहे होंगे यह सोच उन्होंने पुनः सो जाने के इरादे से करवट बदली. तभी उनका ध्यान मेज पर रखी निधि कि फोटोवाली फ्रेम पर गया. अँधेरे में जैसे कोई टीवी चल रहा हो इस तरह वह फ्रेम प्रकाशमान हो गई थी. एक जीवंत, चलता फिरता दृश्य उसमें दिखाई दे रहा था. किसी सभागृह में घोषणा की जा रही थी ... “आज के इस भाषण प्रतियोगिता में पहले स्थान की विजेता हैं, कक्षा पाँचवी से कुमारी निधि त्रिवेदी” और उसके बाद तालियों की गड़गड़ाहट के बीच निधि ने पुरस्कार ग्रहण किया. उसके बाद वह चलायमान दृश्य दिखना बंद हो गया. यह देख विनयजी आश्चर्यचकित रह गये. बड़ी देर तक उन्हें कुछ सुझाई नहीं दे रहा था. फ्रेम में चल रहा वह दृश्य बार-बार उनकी आँखों के सामने से गुजर रहा था. वह सपना था या मन की कोई कल्पना थी या सचमुच इस तरह की कोई घटना उन्होंने देखी थी यह सोचते हुए काफी देर बाद उन्हें नींद लगी. सुबह डोअर बेल की आवाज से उनकी नींद खुली. आँखे मलते हुए जब उन्होंने दरवाजा खोला तो देखा, सामने अपना स्कूल यूनिफ़ॉर्म पहने निधि खड़ी हुई थी. उसने तुरंत विनयजी के चरणस्पर्श करते हुए कहा, “वीनू चाचा, मुझे आशीर्वाद दीजिये, आज स्कूल में भाषण प्रतियोगिता है और मैंने भी उसमें भाग लिया है.”
विनयजी को खट्टसे रातवाला दृश्य याद आ गया, वे बोले, “बेटा, पहले नम्बर से जीतोगी तुम देखना, शाम को आ रहा हूँ मिठाई खाने... तैयार रखना.”
“क्या अंकल ! मेरी तो ठीक से तैयारी भी नहीं हुई.” निधि कह रही थी. “कल आपसे मिल कर टिप्स भी लेनी थी, लेकिन आप दिनभर घर पर भी नहीं थे, वरना सुबह-सुबह मैं आपको परेशान नहीं करती.”
“चिंता मत करो बिटिया, जीतोगी तो तुम ही... बेस्ट लक.” रात में देखे सपने के आधार पर विनयजी बोल गए.   
निधि स्कूल निकल गई और विनयजी अपनी दिनचर्या में लग गए और अपने समय पर ऑफिस रवाना हो गये. शाम को लौटते ही घर का दरवाजा खोलने के पहले ही निधि वहाँ हाजिर थी.
“अंकल, चलो मेरे घर.. एक खुशखबरी देनी है.”
विनयजी ने त्रिवेदीजी के घर में प्रवेश किया.
निधि ने मिठाई की प्लेट आगे करते हुए कहा, “अंकल, आपने कहा था वैसा ही हुआ, मुझे भाषण प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मिला है. ये देखिये मेरा पुरस्कार.”
विनयजी भौंचक रह गये, रात में उस दृश्य में देखा हुआ पुरस्कार ठीक ऐसा ही था. क्या यह संयोग था या जिसे इंट्यूशन कहते हैं वैसा कुछ था? विनयजी का सर चकराने लगा. किन्तु खुद को सँभालते हुए नाश्ता और चाय समाप्त कर वे अपने घर में आ गये.

अब उन्हें उस फ्रेम की पुनः एक बार परीक्षा लेनी थी. रात सोने से पहले उन्होंने किसी फ़िल्मी मासिक पत्रिका से एक वरिष्ठ अभिनेता का फोटो काटकर फ्रेम में फिट किया. आज रात क्या होता है, इस बात के लिए वे काफी उत्सुक हो रहे थे. देर रात वैसी ही घटना घटी. फ्रेम में चलचित्रों की मालिका चलने लगी. उस प्रसिद्ध अभिनेता पर किसी अभिनेत्री द्वारा शूटिंग के समय उसके साथ गलत बरताव करने आरोप लगाया गया था और वह अभिनेता न्यूज चैनल्स के पत्रकारों के सामने स्वयं को निर्दोष कहते हुए अपनी सफाई देने की कोशिश कर रहा था.
एक डेढ़ मिनट चलने के बाद वह दृश्य दिखना बंद हो गया. विनयजी भी उस सज्जन अभिनेता पर किये गए आरोप पर अचरज करते हुए सो गये. अगले तीन-चार दिन वे उस समाचार की टीवी पर बाट जोहते रहे, किन्तु इस तरह का कोई समाचार टीवी पर प्रसारित नहीं हुआ. इसलिए निधि के विषय में देखे हुए दृश्य को संयोग समझते हुए छोड़ दिया. इस बीच वह फोटो फ्रेम में वैसा ही लगा हुआ रह गया.

अगले रविवार विनयजी दोपहर की चाय लेते हुए टीवी के सामने बैठे हुए थे. तभी एक समाचार फ़्लैश हुआ. उसमें वहीँ अभिनेता अपनी सफाई देता हुआ नजर आ रहा था. जो दृश्य विनयजी ने उस रात देखा था, हुबहू उनके सामने फिर से दिखाई दे रहा था. इस बार विनयजी चमक गये. यानी उस फोटो फ्रेम में जिसकी तस्वीर लगी हो, उस व्यक्ति के जीवन में भविष्य में घटनेवाली घटना का संकेत मिल जाता हैं.. यह बात सच है!”

यह सब संयोग न होते हुए उस फोटोफ्रेम का ही चमत्कार है यह विनयजी को विश्वास हो चला था. बहुत सोचने के बाद इस बारे में किसी से उल्लेख करना ठीक नहीं होगा यह निर्णय उन्होंने ले लिया, क्योंकि कोई इस पर भरोसा नहीं करता या इस बात का गलत इस्तेमाल होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता था. और इस बाबद चर्चा हो यह भी वे नहीं चाहते थे. लेकिन फिर भी फ्रेम के चमत्कार की विश्वसनीयता जांचने के लिए विनयजी ने एक गैरमशहूर क्रिकेट खिलाड़ी की तस्वीर एक अखबार में से निकाल उस फ्रेम में लगा दी. पहले की तरह ही सारा घटनाक्रम हुआ, उस खिलाड़ी ने सैंकड़ा जमा कर एक हारते हुए मैच मैं अपनी टीम को जीत दिलाई थी. मैदान में खिलाड़ी के सम्मान में जोश भरे नारे लगाते दर्शकों विनयजी ने देखा. कुछ ही दिनों बाद दो देशों के क्रिकेट की वन-डे सीरिज में पदार्पण मैच में ही एक नये खिलाड़ी ने शतक ठोक देने की खबर फोटो समेत अखबार के पहले पन्ने पर झलक रही थी. उसमें दिखाया गया फोटो उस रात देखे गये दृश्य का ही एक भाग था. इस बार विनयजी इस चमत्कारी फ्रेम को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हो गये. विनयजी ने उसके बाद अनेक बार फोटो बदल-बदल कर फोटोफ्रेम के चमत्कारों का जायजा लिया, फ्रेम की परीक्षा ली. किन्तु कभी स्वयं का फोटो लगाकर देखने की हिम्मत वे नहीं जुटा पाए, पता नहीं कुछ अनपेक्षित सामने आ कर खड़ा हो जाये.

तभी निधि की वार्षिक परीक्षाएं नजदीक आ गयी थीं. निधि के विषय में जानने कि उत्सुकता ने उन्होंने पुनः एक बार निधि का फोटो उस फ्रेम में फिट कर दिया और उस रात उस्तुकता से बाट देखते रहे. वह पल आ गया, फ्रेम प्रकाशमान हुई. निधि का परीक्षाफल दिखाई दे रहा था, दो विषय छोड़ कर निधि सभी विषयों में अनुत्तीर्ण दिख रही थी. विनयजी को लगा, इस बार फ्रेम से कोई बड़ी गलती हुई है, क्योंकि निधि जैसी होशियार लड़की जो अपनी कक्षा में प्रथम पाँच में स्थान रखती थी, परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाए... इस बात पर वे कतई विश्वास नहीं कर पा रहे थे. फिर भी वह बात उन्होंने अपने तक सीमित रखी.

आखिर होते होते निधि की परीक्षा के दिन नजदीक आ गये. हिंदी का प्रश्नपत्र उसने बहुत बढ़िया तरीके से हल किया था. अगला परचा विज्ञान का था. विज्ञान का परचा भी निधि ने अच्छा हल किया था. निधि के पर्चे अच्छे हो रहे हैं यह देख विनयजी को संतोष हो रहा था. तीसरा पेपर कम्प्यूटर का था. हमेशा की तरह आज भी निधि विनय अंकल के पैर छू कर स्कूल गई. शाम को विनयजी ऑफिस से लौटकर निधि के पास पेपर के बारे में जानकारी लेने पहुँचे. तो देखा निधि बुखार में पड़ी थी. पेपर हल करते–करते ही बुखार चढ़ने से वह पेपर जैसे-तैसे पूरा कर घर लौट गई थी. उसे अपने अगले पर्चों की चिंता सता रही थी. लगातार तेज बुखार की वजह से वह अपनी शेष परीक्षा में भाग नहीं ले पाई. यह देख विनयजी को उस फ्रेम पर बहुत गुस्सा आया, मानों यह सब उस फ्रेम की ही गलती थी. फ्रेम में से फोटो हटाकर उन्होंने वह फ्रेम अलमारी में पटक दी. काफी दिन हो गये, धीरे-धीरे वे उस फ्रेम को भूल गये.

बहुत दिनों बाद विनयजी आज बड़े खुश थे. उनकी पुत्री सुप्रिया कल अर्थात रविवार को हफ्तेभर के लिए आ रही थी. एक ही शहर में निवास होने से वह महिने-दो महीने में मिलने आ जाया करती थी, लेकिन बहुत कम समय के लिए. इस बार वह ज्यादा दिन के लिए आ रही थी, इसलिए विनयजी बाजार से सब्जियाँ, मिठाइयाँ, फल आदि लाकर फ्रीज भर दिया था. और भी अनेक तरह के सामान लाकर रख दिए. रविवार आया. विनयजी सुबह से बालकनी में बैठ सुप्रिया की राह देख रहे थे. नीचे एक रिक्शा आकर रुकी. उसमें से सुप्रिया को उतरते हुए उन्होंने देखा. विनयजी तुरंत नीचे उतरे. तब तक सुप्रिया ने अपना बैग उतार लिया था.
“अकेले ही आई ? कुंवर साब नहीं आये ??, मैं सोच रहा था तुम्हे छोड़ने के लिये वे आयेंगे.”  
“नहीं, वे कम्पनी के काम से टूर पर गये हैं 10-12 दिन के लिए, तभी तो मैं आ पी इतने दिन के लिए.” सुप्रिया ने जवाब दिया.
“आओ ऊपर चलें.” कहते हुए विनयजी ने बैग उठाया और चढ़ाव चढ़ने लगे.
घर में आ कर बैग कमरे में रख चाय बनाने रसोईघर में निकल गये. चाय की चुस्कियों के साथ बिटिया के हालचाल जानने के बाद विनयजी बोले, “मैं अभी आया दस मिनट में, चौराहे पर “स्वरुचि” से लंच पैक ले आता हूँ, आते ही खाना बनाने की झंझट में मत पड़ो.

दोपहर का भोजन कर आराम भी हो गया. शाम की चाय लेते हुए सुप्रिया ने कहा, “पापा, घर में कितना कुछ फैलारा हो गया है, थोड़ी साफ़-सफाई भी जरूरी लग रही है. आप कल ऑफिस जाओगे तब कुछ व्यवस्थित कर लूंगी.”
“ठीक है बेटा, तुम्हे जैसा लगे कर लो, मैं बहुत ज्यादा समय नहीं दे पाता इन सब को. अब तुम आ गई हो तो देख लेना.”

अगले दिन विनयजी ऑफिस चले गये और सुप्रिया ने हॉल से सफाई की शुरुआत की. हॉल निपटने के बाद उसने बेडरूम की ओर मोर्चा बढाया. टेबल, कुर्सी, बेड आदि को व्यवस्थित करने के बाद अलमारी को जमाने के लिए खोला. अलमारी का सारा सामान, किताबें आदि झटक-पोंछ कर पुनः जमाते समय उसकी नजर उस खाली फ्रेम पर पड़ी. इतनी सुन्दर फ्रेम देख वह बड़ी खुश हुई, किन्तु ऐसी सुन्दर खाली रखी हुई देख उसे अच्छा नहीं लगा. फ्रेम को ठीक से पोंछ कर पुराने अल्बम से अपने ही बचपन की एक फोटो निकाल उसमें लगा दी और वह फ्रेम टेबल पर फ्लावरपॉट के बगल में जमा कर रख दी.
विनयजी शाम को जल्द ही घर लौट आये. चाय नाश्ता कर काफी देर तक वे सुप्रिया के साथ बातें करते रहे. उसके बाद सुप्रिया ने रात का भोजन बनाया. दोनों ने रात का खाना खाया. उसके बाद विनयजी अपने कमरे में सोने चले गये. किन्तु टेबल पर रखी उस फ्रेम पर उनका ध्यान नहीं गया. देर रात किसी के बुक्का फाड़ के रोने की आवाज से उनकी नींद खुल गई. आवाज पहचानी लग रही थी. आवाज की दिशा में देखने पर उनका ध्यान टेबल पर रखी फ्रेम की ओर गया. उसमें सुप्रिया जोर-जोर से रोते हुए दिखाई दे रही थी. दस – पंद्रह सेकण्ड चलने के बाद वह दृश्य ख़त्म हो गया. विनयजी काँप उठे. उस फ्रेम के लिए उनके मन में एक डरयुक्त चिढ़ उभर आई.  उसी क्षण उन्होंने तय कर लिया कि इस फ्रेम का जल्द से जल्द निपटारा कर देना चाहिए. अभी देखे हुए दृश्य ने उन्हें बेचैन कर दिया और इस वजह से वे रातभर सो नहीं पाए. काफी रात बीत जाने पर पता नहीं कब उनकी आँख लगी.

सुबह जागते ही उन्होंने मुँह धोया, चाय लेते ही एक निर्णय कर उठे. टेबल पर से उस फ्रेम को उठा कर शबनम में रखी और सुप्रिया से “आया आधे घंटे में” कहते हुए घर से निकल गये. चलते-चलते नदी के संकरे पुल पर पहुँचे. धीरे-धीरे नदी के ठीक ऊपर पुल के बीचोबीच आकर खड़े हुए. उन्होंने शबनम से वह फ्रेम बाहर निकाली और हाथ उठाकर नदी के पानी में दूर फेकने को हुए तभी उनका संतुलन बिगड़ा और पीछे की तरफ गिर पड़े. लेकिन.... तभी एक ट्रक धड़धडाते हुए पुल पर से गुजरा और उन्हें कुचलते हुए आगे निकल गया.

(मेरी ही एक मराठी रचना का अनुवाद)
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