Thursday, October 31, 2019

भगवान ! तुम क्यों सो जाते हो ?

भगवान ! तुम क्यों सो जाते हो ?


हे भगवान, इस चतुर मनुष्य ने चातुर्मास के नाम पर पता नहीं कौनसी घुट्टी पिलाकर तुम्हे सोने पर मजबूर कर दिया है। वाकई में तुम सो जाते हो या सोने का नाटक कर इन सुलाने वालों के नाटक देखा करते हो ? किसी शिक्षक के कक्षा से जाने के बाद छात्र जिस तरह धमा-चौकड़ी मचाने लगते हैं ठीक उसी तरह जब तुम चार माह के लिये सोने के लिए चले जाते हो, ये उद्दंड मनुष्य तरह-तरह के उपद्व्यापों में मशगुल हो जाते हैं ।
नाग पंचमी को पुंगी बजा-बजा कर नाग देवता की पूजा कराने के साथ ढोल-ढमाकों की ढमा-ढम के बीच कुश्तियाँ लड़वाई जाती हैं। यह तो शोर-उत्सवों की छोटीसी शुरुआत मात्र होती है ।
दस दिन गणेशजी की स्थापना के नाम पर हर चौक-चौराहे पर तुम्हारी प्रतिमा स्थापित करने के बाद तुम्हे सोया जानकर रातदिन भोंगे, डीजे बजाकर ये लोग जो शोर मचाते है, अच्छे -अच्छों की नींद हराम हो जाती है ।
तुम्हारा क्या, तुम तो चार महिनों के लिये चादर तानकर सो जाते हो ।
इधर गणेश-उत्सव खत्म हुए नहीं कि पखवाड़े बाद ही नवरात्रों की धूम शुरू हो जाती है । शोर मचाने में, जो कसर गणेशोत्सव में अधूरी रह जाती है वह नवरात्र में पूरी कर ली जाती है।
तुम्हारा क्या, तुम तो अब और गहरी नींद में चले जाते हो ।
नवरात्र खत्म होते ही दशहरा आ जाता है । पूरे शहर में पहले कभी एक जगह जलने वाला रावण अब घर-घर जलने लग गया है । सिर्फ जलता नहीं, अपने साथ ढेरों बमों के धमाकों के साथ जलता है । उसके बाद आने वाली शरद पूर्णिमा भी गरबे खेलने की अधूरी रही इच्छा की पूर्ति का अवसर बन गया है ।
तुम्हारा क्या, तुम तो चार महिनों के लिये कानों में रूई डालकर सो जाते हो।
दिवाली के आते आते बम पटाखों का शोर शुरू हो जाता है। चौक-चौराहों का शोर अब तक हर घर में जगह बना चुका होता है । हर युवक-बच्चा इस बम पटाखों की आवाजों की वृद्धि में अपना योगदान देने के लिए तत्पर होता है ।
तुम्हारा क्या, तुम तो चार महिने के लिये बेधड़क सो जाते हो।
आते आते तुम्हारी नींद का आखरी दिन आ जाता है - देवउठनी एकादशी। उस दिन भी दिवाली के बचे हुए पटाखे चला कर लोग अपनी शोर मचाने की बची-खुची हसरतें पूरी कर लेते हैं । 
लेकिन तुम्हारे जागते ही हर नवयुवक शांत हो जाता है और एक अच्छे सयाने बच्चे की तरह अपनी गर्दन झुकाये शादी की माला पहनने के लिये आतुर हो उठता है।
तुम तो जगे ही रहा करो प्रभु, वरना ये लोग तुम्हे सोया जानकर शोर का ऐसा तांडव रचते हैं, कि हमारी नींद उड़ा देते है। तुम्हारी नींद में खलल कैसे नहीं पड़ता, आश्चर्य है। खैर, अब तुम जाग गए हो, नया तमाशा देखने के लिए के लिए ।
-विवेक

Tuesday, October 29, 2019

घड़ी !


कितना पीछे चल रही, यह बार-बार देखना पड़े ऐसी समय दर्शक मशीन ।
   पुराने समय में काँच के एक डमरूनुमा बर्तन में रेत भरकर उसकी सहायता से समय नापा जाता था। पानी भरे बड़े बर्तन में एक छेददार पेंदे के बर्तन को रखकर भी समय नापा जाता था, जब बीचवाला बर्तन निश्चित समय में पूरी तरह भरकर डूब जाता था. लेकिन अचूक समय बताने के इनके इस गुण के कारण यह पद्धति रद्द कर इस घडी नामक यंत्र की सहायता ली जाने लगी। सूर्यकिरणों की मदद से भी समय जानने की पद्धति कुछ समय के लिये चलन में थी, लेकिन उसमें भी वही दिक्कत थी। सूर्य के निश्चित समय पर उदय होने और अस्त होने से समय देखने में चूक नहीं हो पाती थी, इस वजह से घड़ीसा़जों का धंधा मंदा पड़ गया। इसलिये खास गलत समय बताने वाली घड़ियाँ ईजाद की गई। ये घड़ियाँ समय-समय पर बंद होते रहने से घड़ीसा़जों का धंधा अच्छा चलने लगा।
   घड़ियों के अनेक प्रकार हैं। दीवारघड़ी आकार में बड़ी होती है। ‘दीवार से गिरकर टूट न जाये’ मालिक को ये डर हमेशा बना रहे, यह इनका प्रमुख काम होता है। इसे हर आठ दिन में चाबी भरनी होती है, लेकिन पिछली बार किस दिन चाबी भरी गई थी यह याद न रहने से यह अक्सर बंद पड़ जाती है। इस समस्या से निपटने के लिये सेल से चलने वाली घड़ी बनाई गई। लेकिन इन घड़ियों में डायल पर अंक लिखना पुराने फैशन का होने से केवल लकीरें बनी होती हैं। इसलिये समय जानने के लिये बारह की लकीर से गिनती लगाते हुए काफी समय खर्च करना पड़ता है। ऐसी घड़िया भले ही समय बताने वाली होती हों, समय खाने वाली भी होती हैं।
   अलार्म घड़ी भी एक परेशान करने वाला प्रकार है। रात में अलार्म सेट करते हुए बड़े प्रेम से उसे हम देखते हैं, लेकिन सुबह अलार्म घनघनाते ही इस पर गुस्सा फूट पड़ता है और इसके टुकड़े-टुकड़े कर देने को जी चाहता है। इसका गला दबाने की गरज से अंधेरे में जब इसे टटोलने लगते हैं तब सिरहाने रखा पानी का जग लुढ़ककर बिस्तर गीला हो जाता है। अलार्म घड़ी से नींद खुलवाना हो तो सिरहाने पानी भरा जग रखना अच्छा उपाय है। अलार्म घड़ी एक सुंदर महिला के समान होती है, जब तक चुप होती है, अच्छी लगती है, लेकिन आवाज करती है तो जल्द से जल्द चुप हो जाये ऐसा मन करता है।
   रिस्ट वॉच या कलाईघड़ी नामक प्रकार में कुछ अनब्रेकेबल या वॉटरप्रुफ घड़ियां आती हैं, जो टकराने से नहीं टूटती या इनमें पानी नहीं जाता। यह दावा किया जाता है कि इस प्रकार की घड़ी नदी या सागर की गहराई में भी बंद नहीं पड़ती, लेकिन सिर्फ समय देखने के लिये इतनी गहराई में गोता लगाना किसी के लिए बड़ा मुसीबत भरा काम है।
सबसे बड़ी घड़ी सार्वजनिक प्रकार की होती है। यह किसी बड़ी सरकारी इमारत या टॉवर पर लगी होती है। इसका केवल एक ही उपयोग है, यह कितने बजे बंद हुई थी, वह समय बताना. वह समय ये दुबारा चालू होने तक अचूक दर्शा रही होती है। समय पर ऑफिस न पहुँच पाने पर घड़ी की सूईयाँ चुभने लगती है यह अनुभव किये जाने के पश्चात केवल आँकड़े दिखाकर समय बताने वाली इलेक्ट्रॉनिक घड़ियाँ भी चलन में आई लेकिन इससे समय से चूकने की समस्या का समाधान नहीं हो पाया। अब मोबाईल उपकरण में भी घड़ियाँ आ जाने से ये बाकी की सारी घड़ियाँ सिर्फ देखने भर के लिये रह गई हैं या घड़ी कर अलमारियों में रख दी गई हैं।
   फिल्मी गीतों में भी घडी ने अपना असर दर्शाया है। घड़ी की टिक-टिक से प्रभावित फिल्मी गीत- घड़ी घड़ी मेरा दिल धड़केऔर 'दो घड़ी वो जो पास आ बैठे' काफी लोकप्रिय हुए थे, इसी प्रकार 'चलती है क्या नौ से बारा' में भी घड़ी का अप्रत्यक्ष उल्लेख है। इसी के साथ इस व्याख्या को भी समाप्त करने की घड़ी आ गई है।
- व्याख्यानंद 
(विवेक भावसार)

Saturday, October 26, 2019

अनुवाद - कुछ नए ग्रहयोग -3 (पु.ल. देशपांडे )

कुछ नए ग्रहयोग  (लेकिन बहुत से अनिष्ट) भाग-3


समस्त-स्त्रीवृन्द-परपुरुष-विवाहित-वैषम्य-योग

इस योग का नाम कुछ बड़ा है. लेकिन अपने नाम की तरह  ही यह योग बलशाली है. सुविधा के लिए यहाँ हम इसे वैषम्ययोग कहेंगे. इस कुंडली के सारे ग्रह नीच स्थान में होते हैं. दुनिया की प्रत्येक सुन्दर स्त्री परपुरुष के साथ विवाहित हो गई है, ऐसा इस योग पर पैदा हुए पुरुष मानते हैं. 

स्वयं को लेकर जबरदस्त गलतफहमी इनके जीवन का आधार होती है. इनकी किसी भी बात की शुरुआत “यदि मैं होता तो...” से होती है. इस तरह के व्यक्तियों को कोई कहे कि “क्या सुंदर चांदनी रात है.” तो चाँद से भी वैषम्य व्यक्त कर दें. 

इस योग पर जन्मे एक व्यक्ति की कुंडली का हमने बारीकी से अध्ययन किया. इनकी कुंडली में पराक्रम का कोई ग्रह नहीं था. हरदम तुलना करना इनके स्थाईभाव में शामिल था. इसी के ऑफिस की एक टाइपिस्ट लड़की ने साथ वाले क्लार्क से शादी रचाने पर उसकी शादी के मंडप में जाकर किसी से यह कहने से नहीं चूके “पता नहीं इस आदमी में इस लड़की ने क्या देख लिया? भगवान जाने !” 

वैषम्ययोग ग्रसित लोग नाटकों में अपना अभिनय पिटा जाने पर एक्टिंग के स्कूल खोल लेते हैं और अभिनय क्या है यह सिखाते रहते हैं.  उपन्यासकार नहीं बन पाते तो टीकाकार बन जाते हैं और वहाँ भी पिटा जाते हैं. प्यार में पिटा जाने पर स्त्रीजाति को नमकहराम कहते हैं. क्लर्की करते हुए जीवन भर प्रमोशन न होने पर “मक्खनबाजी” को गाली देते फिरते हैं. इनके लिए यह पहेली होती है कि हर पडोसी को अच्छी पत्नियां क्यों मिलती हैं. हमेशा महसूस करते होते हैं कि औरों के सूट अपने से बढ़िया सिले हैं.

जिन्दगी में हम हमेशा थर्डक्लास रहे यह मन ही मन समझ चुके होते हैं. समय से पहले खुद के बाल चले गए इस बात का दुःख मनाते रहते हैं. इन सारी कमियों का बदला ये दूसरों को परेशान कर लेते रहते हैं. खुद को जुकाम हो जाये तो  डॉक्टर पर उखड़ जाते हैं. इन लोगो का कोई इलाज नही. क्योंकि यह योग ही ऐसा है. लोकप्रिय चीजें इन्हें अच्छी नहीं लगतीं. इन्हें आम पसंद नहीं होता. 

ऐसे लोग चुटकुला सुना दें तो कोट की आस्तीन में से कॉकरोच निकल जाने जैसा महसूस होता है. क्योंकि इसमें ऑफिस के किसी “लोकप्रिय मजाकिया क्लर्क से हम ज्यादा मजाकिया हैं” यह बताने की कोशिश होती है और यह भी कि ‘’सोच लूं तो पचास जोक्स और सुना दूं.” रमी में इनका लक नहीं होता इसलिए ये उखड़े उखड़े से खेलते हैं और हार जाते हैं. 

वैषम्ययोग की कुंडली इन लोगों को चैन से बैठने नहीं देती. हर जगह टांग अड़ाने की इनकी कोशिश जारी रहती है लेकिन उस जगह भी हमेशा इनसे भी योग्य उम्मीदवार मौजूद होता है. ये इसी भ्रम में होते हैं कि सारी दुनिया इनके खिलाफ साजिश कर रही है. इन लोगों द्वारा किया गया प्रत्येक बिजनेस फ्लॉप हो जाता है. अप्रिय होने में इनकी करामत गजब की होती है. बस में ये पहले कंडक्टर से भिड़ जाते हैं, फिर पडोसी पैसेंजर से और बाद में बस कंपनी को गालियाँ देने लगते हैं.

गानों की महफिल में इन्हें सबसे आगे बैठना होता है, लेकिन वहाँ पहले ही अन्य लोग बैठे होते हैं तो व्यवस्थापकों से भिड़ जाते हैं. कभी भूलेभटके आगे की जगह मिल भी जाए तो गाने वाले उस्ताद जी ने पहचाना नहीं इस बात से चिढ़ जाते हैं. गाने वाली अगर महिला हो तो सारी रात वह इन्हें ही देखते हुए गाती रहे, ऐसी इनकी अपेक्षा होती है.

ऐसे योग का व्यक्ति पड़ोस में आ बैठे तो समझदार को चाहिए कि वह अपनी जगह बदल ले, दूर के स्टॉप तक का सफर हो तो अगले स्टॉप पर उतर बस बदल ले, विवाह समारोह में मिले तो मात्र इत्रगुलाब लेकर भोजन-खाना छोड़कर निकल जाये. इस कुंडली का मामला किसी से भी नहीं जमता. क्योंकि जहाँ किसी अंधे भिखारी के कटोरे में कोई एक रूपया भी डाल दे तो ये उससे द्वेष कर लें तो हाथ-पैरों से स्वस्थ आप जैसों से तो कहना ही क्या.

पादत्राणांगुष्ठायोग

वैषम्ययोग कुंडली के ठीक उलट ये कुण्डलियाँ होती है. वैषम्ययोग की कुंडलियों के ग्रह एक दुसरे के विरुद्ध कुढ़ते रहते हैं तो यहाँ एकदूसरे को बेवजह टांग मारकर मजे लेते रहते हैं. इस योग को पादत्राणांगुष्ठायोग कहने की वजह केवल यह है कि इस योग पर जन्मे व्यक्तियों की चप्पल का अंगूठा ऐन वक्त पर टूट जाता है. खासकर जब कहीं जाने की जल्दी हो और चप्पल नई हो इसके बावजूद अंगूठा टूट जाता है.

सिल्क की नईनवेली कमीज पर चाय ढुल जाती है, खुद सुपारी भी न खाते हों लेकिन शरीर पर पान के छींटे उड़ जाते हैं. ऐन वक्त पर पेन की स्याही ख़त्म होना यह इसी पादत्राणांगुष्ठायोग का फलित है. ठीक ऑफिस जाते समय इनकी गाड़ी का पहिया पंक्चर हो जाता है  और उसी दिन पर्स घर में छूटा हुआ होता है.  इनकी खरीदी हुई नई किताब में से पन्ने गायब रहते हैं, गाने की महफ़िल में जाने पर गायक का गला बैठा हुआ होता है. 

आप फिल्म देखने थियेटर में बैठे हों और ऐन मौके की जगह पर फिल्म की रील टूट जाये तो समझ लीजिये दर्शकों के बीच पादत्राणांगुष्ठायोगवाली जनता बैठी हुई है. इस योग से इन्हें छुटकारा नहीं. ये लोग बिरयानी–कोरमे की लालच में मुसलमान हो जाएँ तो अगले दिन से रोजे चालू हो जाएँगे. ऐसे लोगों ने बाजार जाना छोड़ देना चाहिए, क्योंकि इनके लाये हुए बैंगन तो छोडो कद्दू में भी कीड़े निकलेंगे. 

इनकी जेब में रखी माचिस जलती नहीं, बीडी पर बंधा धागा खुल जाता है, मन्दिर से अनेक छातों में से इनका छाता एवं चप्पलों में से एक चप्पल चोरी चली जाती है और टूटे अंगूठे वाली चप्पल मुंह फैलाए पड़ी होती है. चप्पल की बजाय  सैंडल खरीदी हुई हो तो उसका बक्कल टूट जाता है. इस योग पर जन्में व्यक्तियों के कपड़े धोबी बजाय धोने के दाग लगाकर या जलाकर लाते हैं. धोबी बदल दिए जाएँ तब भी वह परम्परा नहीं टूटती.

ऐसे लोगों ने सफ़र भी टाल देना चाहिए. सामान लापता होना ही है. ऐसे योग पर जन्मे लोगों को गलत जगह पर अपना सही मत व्यक्त करने की खुजली चलती है. “वो काली कलूटी औरत देख रहे हो ?” यह उस महिला के पति से ही कह देते हैं. किसी भी पार्टी में किसी कि बेवकूफी का वर्णन करते हुए उस महिला या व्यक्ति का रिश्तेदार सामने ही बैठा हुआ है यह भूल जाते हैं और आफत बुला लेते हैं.

ऐसे लोगों को शादियों में मध्यस्थ के तौर पर बिलकुल भी नहीं रखना चाहिए. ये लड़के के बाप को ही पंडितजी समझ लेंगे और माँ को “और कितनी बार आइसक्रीम खाओगी?” ये पूछ कर जायेंगे. इन लोगों की नीयत खराब नहीं होती लेकिन हर बार गलत जगह पर बोल जाते हैं. मकान मालिक को किराया वसूली का मुनीम समझ उसे “मकान मालिक कैसा लुच्चा आदमी है” यह बताएँगे.
ऐन वक्त पर गड़बड़ी होना, इस योग का यही मुख्य फलित है. इस योग के लोगों का दोष इन्ही लोगों को बाधक होता है, अन्य लोगों को इससे परेशानी नहीं होती. चार लोगों की सभा के बीच जोरदार छींक आकर पाजामे का नाड़ा टूटने के बाद जो कुछ होता है, वही सब इनके मामले में जिंदगीभर चल रहा होता है. योग ही वैसा है, इससे छुटकारा नहीं.


द्वारघंटिकायोग

वास्तव में देखा जाये तो पादत्राणांगुष्ठायोग और द्वारघंटिकायोग इनमें उपरी तौर पर ख़ास फर्क नहीं. दरवाजे की घंटी बजे और पोस्टमैन मनीआर्डर लेकर आया होगा इस अपेक्षा से फटाफट दरवाजा खोलने पर...आया तो पोस्टमैन ही होता है लेकिन व्ही.पी. लेकर आया हुआ होता है. होठों तक आया प्याला पीने को न मिले इस तरह का यह विचित्र योग है. इस योग के व्यक्ति इंटरव्यू में सिलेक्ट हो जाते हैं लेकिन मेडिकल चेकअप में लटक जाते हैं.

इन सारे योगों के अतिरिक्त एकासन-योग, विरुद्ध वातायन-योग, गप्पभंगिका–योग आदि भी छोटे-बड़े योग होते हैं. एकासन-योग में ट्रेन अथवा बस के सफ़र में आपने पास की सीट खाली होते हुए भी सुन्दर पैसेंजर आपके पड़ोस में न बैठ कर किसी और के पड़ोस में जाकर बैठता है और अपने पड़ोस में डेढ़ सीट की जगह घेरने वाला सेठिया आ कर बैठ जाता है. विरुद्ध वातायन-योग में धूप या बारिश से बचने के लिए बस या ट्रेन में एक खिड़की को छोड़ दूसरी खिड़की के पास आप बैठते हैं, ठीक वहीँ धूप आती है. गप्पभंगिका-योग में आपकी गप्प की पोल कहना ख़त्म होने से पहले ही खुल जाती है. ख़ास कर यह रहस्य खोलने में घर के छोटे बच्चे अधिक सहायक होते हैं. आप चाय पीने की शुरुआत करने ही वाले होते हैं और तभी कोई मेहमान आ जाते हैं. “साहब बाथरूम गए हैं” यह बताने का कहकर आप अन्दर के कमरे में जा कर चाय पी कर आने वाले होते हैं. ऐसे समय चिरंजीव आगे बढ़कर मेहमान को बताते हैं, “पापा बात्लुम नई गए, वो तो अंदल चाय पी लए है”. इस पर उपाय एक ही है, बच्चों को बाथरूम में बंद कर गप्प मारें, लेकिन आखिर जो किस्मत में होगा वो होने से कोई रोक नहीं सकता.

समझदार लोग हमेशा ज्योतिष की सलाह से चलते हैं. परन्तु कुंडली में अच्छा ज्योतिषी मिलने का योग होना आवश्यक है.
(पु.ल.देशपांडे लिखित मराठी लेख "काही नवीन ग्रहयोग" का हिंदी रूपांतरण भाग-3...विवेक भावसार) 
भाग 1 > https://funkahi.blogspot.com/2019/10/1.html
भाग 2 > https://funkahi.blogspot.com/2019/10/2.html

अनुवाद - कुछ नए ग्रहयोग -2 (पु.ल. देशपांडे )

कुछ नए ग्रहयोग  (लेकिन बहुत से अनिष्ट) भाग-2 


अंत:क्रमांकयोग

बड़े शहरों में रहने वाले अधिकांश लोगों की कुंडली में यह योग होता ही है. इस योग का मुख्य फलित यह है कि  कतार में आधा घंटा खड़े रहने के बाद बस आती है, आप सरकते हुए आगे बढ़ते हैं, आप बस में कदम रख ही चुके होते हैं कि कंडक्टर घंटी बजाकर “नीचे उतरो, जगा नाय “ पुकार देता है. उसके बाद चार-पाँच बसेस बगैर रुके आपके सामने से गुजर जाती हैं. इसलिए आप क्यू छोड़कर टैक्सी ढूँढने निकलते हैं, तभी आधे से ज्यादा खाली बस आपकी आँखों के सामने से पूरा क्यू समेट कर ले जाती है और उधर आज ही टैक्सीवालों की हड़ताल होती है.

फिल्म शो के टिकट की खिड़की जो आपके मुंह पर ही बंद होती है वह भी इसी योग की वजह से. बत्तीस से बयालीस तक की कौनसी भी साइज की बनियान दुकान तो छोडो, पूरे मार्केट से खल्लास हुई रहती है. चप्पल की जो डिजाइन पसंद आती है, उस का साइज पैरों से मैच नहीं करता. सेल में अपने नाप की पैंटे ख़त्म हो चुकी होती हैं. आप को जो शर्ट का कपड़ा पसंद आता है पीस में पाव मीटर कम होता है. विवाह समारोह में आप पहुँचते हैं तब तक आइसक्रीम ख़त्म हो चुका होता है, फिर परिवार को बाहर अपने खर्चे से आइसक्रीम खिलाना पड़ता है. तभी आपके परिचित ऑफिस के सहयोगी रामबाबू अपने बच्चों को आपकी ओर ऊँगली दिखाते हुए कहते हैं, “देखो, वो अंकल आपको आइसक्रीम खिलाएंगे.” कुल मिलाकर शादी महँगी पड़ जाती है. अंत:क्रमांकयोग के परिणाम भयानक होते हैं. लोकल ट्रेन का सफ़र किस्मत में हो तो ट्रेन छूटना तय ही है. पीछे चलनेवाली घड़ी आगे कर लो तो लोकल देर से आती है और ऑफिस के लिए देर हो जाती है, और उसी दिन साहब राउंड लगा जाते हैं.

किसी दिन आप सचमुच फ्लू से पीड़ित होते हो, बुखार भी 103 तक चढ़ा हुआ होता है. सप्ताह भर की छुट्टी ली हुई होती है. शनिवार की रात बुखार उतर जाता है और रविवार की शाम बड़े दिनों बाद परिवार के साथ रमी खेलने बैठ जाते हो. पांच घंटे तक हारते रहने के बाद हैण्डरमी होती है. आप ख़ुशी से चिल्ला उठाते हैं “लगा कि नहीं झटका बच्चू ?”, ठीक उसी समय दरवाजे पर स्वास्थ्य की पूछताछ करने हेडक्लार्क और अकाऊटेंट  खड़े हुए होते हैं. बड़ी मुश्किल से कोई दांव जीतते ही बाजी पलट जाए, ये अंत:क्रमांकयोग ऐसा ही है. 

छुट्टी के दिन सपरिवार फिल्म देखने के लिए तैयार हो कर निकलने को हों तभी पिछले आठ-दस सालों से बिस्तर पकड़ी हुई सामनेवाले के घर की बुढ़िया चल बसी ये बताने पडोसी आ जाते हैं. चुपचाप कोट उतार कर रख देना होता है. बुढ़िया का निधन ऐसे समय बिलकुल बेमुहुरत का लगने लगता है.

हर बार किसी की  बुढिया ही चल बसे ये जरूरी नहीं. अवांछित रिश्तेदार आ जाते हैं. औरों के नहाने के समय अनवरत बहने वाला नल आपके समय सर पर लगे साबुन का  झाग आँखों में जाते ही टप-टप कर आखरी आँसू टपका कर बंद हो जाता है. ऐसे लोग सलून में महीने के आखरी हफ्ते में जाते हैं तब भी इनके लिए जगह खाली नहीं मिलती और नाई “बस अभी हो जाती है, बैठो साब” कहकर वेटिंग में बिठा लेता है. तभी वहाँ बैठे फिल्मफेयर, मायापुरी, माधुरी, दैनिक सुप्रभात का भविष्यफल और कल के अखबार की शब्द्पहेली पहले से बैठी हुई दिखाई दे रही होती है. उनके निपटने तक आठ बज जाती है और दुकान बंद करने का समय हो जाता है इसलिए मालिक शटर गिरा देता है. इसमें से दोष किसी का भी नहीं होता, दोष होता है अंत:क्रमांकयोग का.

कनिष्ठभगिनीयोग

वधुपिता द्वारा दिखाने के लिए लाई हुई दोनों बहनों में से “जो भी पसंद हो उसे स्वीकार करें” यह खुला ऑफर मिला हुआ होता है. लेकिन बड़ीवाली देखने में अच्छी होते हुए वह आपको शायद पसंद न करे इस गैरवाजिब डर से रंग में उससे ज्यादा फ़ास्ट कलर और कदकाठी से मजबूत उसकी छोटी बहन को पसंद कर लिया जाता है. और बाद में “सही बोलूँ तो दीदी की आपसे शादी करने की कितनी इच्छा थी” ये वह कनिष्ठ भगिनी खुद के मंगलसूत्र से खेलते हुए बताती है. इसे ही कनिष्ठभगिनीयोग कहा जाता है. 

ऐसे व्यक्ति नोकरी मांगते समय सेठ की तनखा की अपेक्षा के जवाब में तीन हजार स्टार्ट का विज्ञापन पढ़ा होने के बावजूद “दो हजार” बताते हैं

“और महंगाई भत्ता अलग से चाहिए क्या ?”

“नहीं-नहीं” पसीना पोंछते हुए कहते हैं.

सेठ खुश होते हैं, पहला दिन है कहकर मसाले की चाय पिलाते हैं. इस चाय को याद करके यह लोग जिंदगीभर दो हजार पर काम करते रहते हैं. ऐसे लोग खुद के घर की घंटी बजाने से भी डरते हैं. खुद ही के घर में भोजनालय में बकाया उधारी वाले मेम्बरों की तरह छुप कर खाना खाते हैं. 

कनिष्ठभगिनीयोग पर जन्मा व्यक्ति एकदम ‘पंचर’ही हो कर पैदा होता है. इस तरह के व्यक्ति के लिए लोग उसके ज़िंदा होते हुए भी ‘अल्लाह की गाय’, ‘किसी के बीच में न पड़ने वाला’ आदि कैलासवासी विशेषणों के साथ संबोधित करते हैं. ऐसे व्यक्ति बच्चों की चड्डियों के नाड़े बांधते हैं. पत्नियों की साड़ियों की घड़ी कर रखते हैं. रविवार के दिन घर के जाले साफ़ करते हैं. इस योग वाले व्यक्ति बोलना तो बहुत चाहते हैं, लेकिन क्या बोलना है वह सामने वाले के चले जाने के बाद सूझता है. कोई चुटकुला भी रात को घर पर सुनाने के लिए सोच रखते हैं, लेकिन ‘थाली में सब्जी क्यों छोड़ दी’ इस शिकायत के बाद सुनाना भूल जाते हैं. 

कनिष्ठभगिनीयोग सौ में से साठ प्रतिशत कुंडलियों में पाया जाता है. समाज की गाड़ी इन्ही चिकने बेरिंग्स के बल पर चल रही होती है. ऐसे व्यक्ति बिना किसी शिकायत के दिन धकेल रहे होते हैं. कमोड में पानी नहीं आने पर बाल्टी ले कर पानी उंडेलते हैं, मकान मालिक से शिकायत नहीं करते. छुट्टी-अधिकारी योग से इनका पाला नहीं पड़ता. क्योंकि छुट्टी लेकर घर बैठ करें क्या यही सवाल हो तो छुट्टी किस बात की ? इनके घर चोर आ जाएँ तो पेटी उठाने में येही उनकी मदद करने लगेंगे. ऊपर से “श्रीमतीजी घर में नहीं हैं वरना एक चाय ही पीकर जाते...” या “जरा संभल कर, कहीं सर न टकरा जाये” आदि कहते हुए बिदा करते हैं. 

इन लोगों की नम्रता अपने शिखर पर होती है. इस योग पर जन्मे एक व्यक्ति ने रेडीमेड की दुकान में नए शर्ट की ट्रायल लेने आईने के सामने खडा हुआ तो हुए सामने कोई रौबीला पुरुष खड़ा है यह समझ कर अपने प्रतिबिम्ब को ही झुक कर सलाम कर डाला. संक्षेप में कहे तो ये पुरुष कुत्ते को भी “हऽऽऽट” न कहते हुए खुद ही अपना रास्ता बदल लेते हैं.

इनकी कुंडली के सारे गृह स्वगृह में ही होते हैं. किसी की भी किसी पर पाप दृष्टी नहीं होती. कोई ग्रह न वक्र होता हैं ना सीधा. इनका गुरु उच्च होते हुए भी घर ट्यूशन लेने आये मास्टर जैसा व्यवहार करता है. इन लोगों के जेब में नोट भी खोंस दिए जाएँ तो रुमाल निकालते हुए वे गिर पड़ते हैं. इस वर्ग के पुरुषों को अधिकतर आकाशवाणी योग की पत्नियाँ मिलती हैं.

आकाशवाणी योग

यह योग अधिकतर महिलाओं की कुंडली में पाया जाता है. इस प्रकार की महिलायें केवल और केवल बोलने का ही काम करतीं हैं. आकाशवाणी के किसी स्टेशन की तरह लगातार बोलना इनका काम होता है. सुबह 6 से रात 11 बजे तक. दोपहर दो घड़ी आँख लगती है उतनी ही देर मुंह को आराम.  

सुबह भजन गाती हैं, आपके दफ्तर जाने के पहले पिछली रात पड़ोसन को किस तरह खरी-खोटी सुनाई ये ख़बरें चलती हैं, दोपहर बिल्डिंग के महिला मंडल के कार्यक्रम में बोलती हैं. फिर किसी संगीत क्लास में गाना सीखना होता है. बच्चे स्कूल से लौटने के बाद उनके बालसभा के कार्यक्रम में बोलतीं हैं. शाम की सभा में समाचारों का आदान प्रदान होता है. रात में रूठने की लघु नाटिका होती है. 

आकाशवाणी की तरह इनके भी बहुरंगी कार्यक्रम होते हैं. दोपहर की शिकायतों का रात में पुनःप्रसारण होता है. उपस्थित मेहमानों के समक्ष बच्चों का विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत होता है. इतना ही नहीं “इन्हें” रविवार के दिन मार्केट भेजने से पहले बाजारभाव भी बताया जाता है. कामवाली बाई के साथ ग्रामीण सभा होती है. दूधवाले के साथ (मराठी गृहिणी का) हिंदी भाषा का पाठ होता है. किसी भावोत्कट लघुनाटिका के लिए बर्तनों के पटकने का साउंड इफेक्ट भी होता है. 

आकाशवाणी योग की कुंडली देखनेलायक होती है. सारे शुभग्रह सोये पड़े रहते हैं. कुंडली के पापग्रह स्वगृह में स्थित होते हैं. अनेक बार वह साले, साडू, जीजा आदि रूप धरकर आते हैं. ऐसे समय घर को आकाशवाणी के विशेष सप्ताह का स्वरुप प्राप्त होता है. यहाँ जामात दशमग्रह होते हुए भी पूरी तरह दुर्बल होता है. 

इस तरह की कुंडलियों की महिलाओं के और कनिष्ठभगिनियोग के पुरुषों के छत्तीस गुण मिलते हैं, इसलिए विवाह हो जाते हैं. उन 36 में से भी 35 गुण वधुपक्ष की ओर होते हैं और वरपक्ष का “चुप रहना” यह गुण उसे तार ले जाता है. ऐसे विवाह बहुत सफल होते हैं. क्योंकि आकाशवाणीयोगधारी परिवार का एक गुण वास्तविक आकाशवाणी की तरह ही होता है. बोलने वाले को सुनने की जरुरत नहीं होती. घर में कोई न हो और वॉल्यूम बढ़ा दो तो आकाशवाणी को पडोसी भी सुन सकते हैं.

(पु.ल.देशपांडे लिखित मराठी लेख "काही नवीन ग्रहयोग" का हिंदी रूपांतरण भाग-2 ... विवेक भावसार ) 
भाग -1> https://funkahi.blogspot.com/2019/10/1.html
भाग -3 > https://funkahi.blogspot.com/2019/10/3_26.html

अनुवाद - कुछ नए ग्रहयोग -1 (पु.ल. देशपांडे )


कुछ नए ग्रहयोग  (लेकिन बहुत से अनिष्ट)


पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने कुछ ही समय पहले फरर्टीज सिद्धांत, गम्परसन सिद्धांत, पार्किन्सन सिद्धांत आदि नये-नए सिद्धांत खोज निकाले हैं. गम्परसन के अनुसार, “दांतदर्द से जान जा रही हो ऐसे समय डेंटिस्ट की कुर्सी पर बैठते ही दांत-दर्द बंद हो जाये तब सवाल यह खडा हो जाता है कि डेंटिस्ट से किस बात का इलाज करवाएं ?” 

लेकिन मुझे उससे भी ज्यादा परेशानी तब होती है, जब डेंटिस्ट की कुर्सी पर गर्दन टिकाकर बैठते ही कहीं मैं यह हुकुम न चला बैठूं कि  "हाथ सीधा चलाना, उस्तरा उलटा मत खींचना”. क्योंकि आजकल दोनों एक ही सा पोशाख पहनते हैं और दोनों ही दुकानों से डेटॉल की एक सी गंध उठती रहती है.

पाश्चात्य लोग जिसे सिद्धांत कहते हैं, हम उसे ग्रहयोग कहते हैं, क्योंकि हम अपने भौतिकता या बुद्धिवाद पर घमंड नहीं करते. हमारा मानना है कि दुनिया में जो भी घटित होता है वह विधिलिखित लेख के अनुसार ही घटता है. पाश्चात्यों ने अभी जाकर चाँद की दिशा पकड़ी है. भारतीयों का तो वहाँ पहले ही से बेरोकटोक आना-जाना लगा हुआ है. 

हम चाँद पर जाएँ या हमारी कुंडली में उसे घर बनाने दिया जाए, अर्थ कहें या अनर्थ... मतलब एक ही है. लेकिन ज्योतिष पर अविश्वास दिखाने का आजकल फैशन चल पड़ा है. अन्य किसी फैशन की तरह इसे भी चोरी छुपे किया जाता है. लेकिन मुझे इसे चोरी छिपे करने आवश्यकता नहीं. मेरी ज्योतिष और ज्योतिषी, दोनों पर अनंत श्रद्धा है. एक बार भगवान् के सामने भले हाथ न फैलाऊँ, लेकिन ज्योतिषी के आगे हाथ फैलाये बिना नहीं रह सकता.

इस बात का मुझे गर्व है कि शनि, रवि, राहू, केतू, मंगल आदि शक्तिशाली ग्रहगण दुनिया की महान विभूतियों की कुंडली की भाँति मेरी कुंडली में भी घर किये हुए हैं. कभीकभार वे अपना घर छोड़ दुसरे घर में घुस जाते हैं, खुद का घर किराए पर उठा देते हैं, पुन: अपने घर में वापिस आ जाते हैं. कभी-कभी साहित्य के आलोचकों की तरह वक्री हो जाते हैं. तब उनकी दशा हमारी तरह ही हो जाती है. एक दुसरे का मुँह तक न देखने वाले शनि और गुरू, राजनीतिक पार्टियों के प्रतिस्पर्धी नेताओं की तरह एक-दूसरे पर अच्छी-बुरी नजर रखते हुए अचानक गठबंधन कर लेते हैं. कोई लोकप्रिय नेता जिस तरह कुछ वोटों से हार जाए ठीक उसी तरह कुछ ही अंशों से ये ग्रह मार खाते हैं. इनकी यह लीलाएं देखने में मैं व्यस्त हो जाता हूँ.

वराहमिहिर से लेकर पिछली गली के नुक्कड़ पर रहने वाले ज्योतिर्भूषण दयाशंकर शास्त्रीजी तक सभी ने इस शास्त्र का गहन अभ्यास किया हुआ है, कुण्डलियाँ बनाई हैं, भविष्य कथन किया है. लेकिन मुझे इन सबसे संतुष्टि नहीं हो रही थी. अपनी तरफ से इस शास्त्र में कुछ नया योगदान देने की पहले से मुझे रूचि रही है. मेरी कुंडली में ही वह योग है. पुरातन समय से हमारे यहाँ नवपंचमयोग, गुरूपुष्यामृतयोग, अमृतसिद्धियोग आदि अनेक योग चले आ ही रहे हैं, परन्तु मैंने कुछ नए योग खोज निकाले हैं. अब इन योगों पर कौनसे ग्रह को नियुक्त किया जाये यह काम अगली पीढ़ी का है. प्रस्तुत लेख में इन्हीं नये योगों पर प्रकाश डाला गया है. ज्योतिषशास्त्र पर श्रद्धा न रखने वाले इसे न देखें. पूर्वग्रहदूषित लोगों पर ज्योतिष की सत्ता नहीं चलती. एक बार शनि या मंगल का फटका पड़ जाए तब ही यह पूर्वग्रहदूषित लोग पुरानी अलमारियों-पेटियों में रखी अपनी कुंडली खोजने लगते हैं. तान प्रति नैष यत्न: !

कुंडलियों में पहले राजयोग, संततियोग आदि हुआ करते थे, नए जमाने में मंत्रियोग, संततिनियमनयोग, ब्लॉक अध्यक्ष-योग, विश्वविद्यालयीन-परीक्षकयोग, शासकीयपुरस्कारयोग आदि नए-नए योग आने लगे हैं. अष्टग्रहों में उसका भी विचार किया गया है, नए ज्योतिषी को केवल परदेशगमनयोग है इतना कहने भर से छुटकारा नहीं है, मंगल के भ्रमण का अध्ययन कर वह परदेशगमनयोग अमेरिका का है या चीन, जापान का, यह स्पष्ट बताना होता है.

ज्योतिषी दो तरह के होते हैं. एक जो कुंडली देख कर आदमी पहचानते हैं. दुसरे वे जो आदमी देख कर कुंडली बनाते हैं. हमारा अध्ययन दूसरे प्रकार का है. हम केवल कदकाठी देख कर राशि पहचान लेते हैं. प्रस्तुत लेख में यह नए ग्रहयोग दिए हैं. फिलहाल सुधीजनों के विचारार्थ चुनिन्दा योगों की चर्चा की जा रही है और उसके मुख्य फलित बताएं जा रहे हैं. एक बार योग और उनके फलित बता देने के बाद कुंडली में ग्रह फिट करना कोई कठिन काम नहीं.

जलशृंखलायोग

इस योग पर जन्मे जातक को हमेशा किसी विचित्र परिस्थिति से जूझना पड़ता है. उदाहरण के लिए – कमोड की जंजीर खींचने पर पानी न आना. (पुराने समय में फ्लश टैंक ऊपर की ओर बने होते थे जिनसे सर के ऊपर लटकती एक जंजीर द्वारा खींच कर फ़्लश करना पड़ता था) जंजीर खींचने पर आवाज के अतिरिक्त कुछ भी बाहर नहीं आता. ऐसे समय शिकायत करते रहने के बावजूद मकान मालिक भी ध्यान नहीं देता। किसी दिन आप बत्ती बुझाकर सोने के लिए जानेवाले होते हैं तभी मकान मालिक का वह  ‘आदमी’ आता है. 

मकान मालिक का यह आदमी, “आदमी” इसी सामान्य नाम से पहचाना जाता है. मकान मालिक से आप कुछ भी शिकायत करो तो, मेरा ‘आदमी’ आकर देख लेगा इतना कहकर मकान मालिक आपसे पीछा छुड़ा लेता है. ये “आदमी” छ-छः महीने तक नहीं आता है. उधर ये मालिक शिकायत सुनने के मूड में कभी होता ही नहीं. तब फिर एकाएक ये ‘आदमी’ प्रकट होता है. इन ‘आदमी लोगों का थोबड़ा रात में कुछ ‘जियादा’ हो गई हो टाइप का होना ऐसा कायदा है. वैसे भी ये ज्यादा ही हुई होती है. ये ‘’आदमी’’ लोग स्वच्छता और सभ्यता से एक ख़ास दूरी बनाये हुए होते हैं. तब उनका और इन जलशृंखलायोगवाले किरायेदार का संवाद कुछ इस तरह होता है –

“क्या कम्प्लेन है?”

“काहे की कम्प्लेन... कमोड की चेन खींचने के बाद भी पानी नहीं आ रहा है, हर महीने का किराया बोलो तो गिन कर ले जाते हो“

“वो सेठ को बोलो, मेरेको खालीपीली खिटखिट सुनने की आदत नी है “

इतना कह कर वह पापग्रह उस शौचगृह में जाता है, साँखल खींचता है और छः माह से सूखी पड़ी टंकी धड़ से पानी फेंकती है.

“साला ,,, टेनन लोगों को आदत ही हो गयेली है साला !”

उसके इस वाक्य को अनसुना कर, पानी आना शुरू हो गया है इस ख़ुशी में आप सोने चले जाते है. अगले दिन जंजीर खींचने पर फिर वही खडखडाहट. इसे ही कहते है जलशृंखलायोग. जिनकी कुंडली में यह योग होता है उन्हें इस तरह के उलटफेर के लिए हरदम तैयार रहना चाहिए.

घड़ीसाज के आगे इमानदारी से चलने वाली घडी उसकी सुधराई का पेमेंट कर घर लाने के बाद हार्ट अटैक हो कर बंद पड़ जाती है. “घड़ी सुधारते हो या मजाक करते हो?” कहते हुए उसके सामने घड़ी पटकने की देर है, घड़ी अपने दोनों काँटो को हिलाते हुए सही-सही चल रही होती है. यही है जलशृंखलायोग...और नहीं तो क्या ? इस योग पर जन्म लेने वाले लोगों को बार-बार ऐसे प्रसंगों को झेलना होता है. दरजी के यहाँ से सिलाकर लाया हुआ शर्ट गले में टाईट हो रहा है इसलिए वापिस ले जाने पर दरजी झट से ऊपर का बटन लगा कर गले और कॉलर में तीन उंगलियाँ फँसाकर घुमाकर बता देता है.... जलशृंखलायोग... और क्या !

 छुट्टी-अधिकारी योग  

स्वास्थ्य ठीक न होने का कारण दे कर छुट्टी मारी हो. ऑफिस में बीमारी की अर्जी भी दे दी गई हो. अब घर से रोज की तरह ऑफिस जाने का कहकर निकलो, घंटा दो घंटा शहर के सेफ एरिया में घूमते हुए टाईम पास कर दोपहर के शो में सिनेमा हॉल में जा कर बैठें हों. तभी ठीक आपके आगे वाली सीट पर बॉस बैठा हुआ दिखाई देता है. उससे बचकर केवल डॉक्युमेंटरी देख कर बाहर सटकने को हों और अँधेरे में किसी के पैर पर पैर गिर जाये, और तभी “आँखे फूट गई हैं क्या कमीने ? ” ऐसा अतिपरिचित स्त्री स्वर कानों पर आता है. वह स्वर आपसे छुपकर अपनी महिला मंडल की सखियों के साथ आई हुई अपनी पत्नी का होता है.  

अँधेरे में उसने तो नहीं लेकिन बॉस ने आपको देखा होता है. लेकिन वह भी कुछ नहीं कहता, क्योंकि इंस्पेक्शन के बहाने निकला बॉस भी अपनी सेक्रेटरी के साथ आया हुआ होता है. लेकिन छुट्टी-अधिकारी–योग के कारण आपकी फिल्म की भैंस पानी में गई होती हैं. लेकिन इसके बावजूद ऑफिस में नोकरी और घर में जान पर आँच नहीं आती.

घर जाने पर पत्नी कहती है “महिला मंडल में आज का व्याख्यान बड़ा ही बढ़िया हुआ”. अगले दिन ऑफिस में बॉस ट्रे में से चाय शेयर करने के लिए केबिन में बुलाता है और सेक्रेटरी अपने लंच बॉक्स में से एक सैंडविच आपके आगे करती है. यह योग आपको खाई के मुँहाने तक तो ले कर आता है लेकिन नीचे धकेलता नहीं है.  

इस योग पर जन्मा हवलदार सब-इन्स्पेक्टर की नजर बचाकर हाथभट्टी वाले से हफ्ता वसूली के लिए जाने पर उसे वहाँ अपना ही ‘’साब’’ पहली धार की लगाता हुआ मिलना ही चाहिए. भट्टी वाला दादा दोनों को पिलाता है. साहब सोचता है, हवलदार ने देख लिया, हवलदार सोचता है साहेब ने. भट्टी वाला दादा दोनों को चौकी पर सही सलामत लाकर छोड़ता है. उसी दिन एंटी करप्शन वाला भी वहाँ आया हुआ होता है. लेकिन वह भी कुछ नहीं कहता. क्योंकि अपने खुद के मुँह से आने वाली बू से खुद ही डरा हुआ होता है. पुलिस चौकी में दादा की अध्यक्षता में “आज कल पब्लिक कैसी हरामी होती जा रही है” इस बात पर चर्चा चलती है.

छुट्टी-अधिकारी–योग की वजह से संकट कबड्डी-कबड्डी करते हुए पास आता तो है लेकिन खिलाड़ी को छुए बगैर निकल जाता है.

(पु.ल.देशपांडे लिखित मराठी लेख "काही नवीन ग्रहयोग" का हिंदी रूपांतरण भाग-1... विवेक भावसार ) 
भाग -2 > https://funkahi.blogspot.com/2019/10/2.html
भाग-3 >  https://funkahi.blogspot.com/2019/10/3_26.html

Tuesday, October 15, 2019

चाल









चाल व चलना !
  चलना क्या है? बताने की आवश्यकता नहीं... हर कोई जानता है कि पैरों को एक के बाद एक कदम जमाकर बढ़ाया जाता है उसे चलना कहते हैं। इसी चलने से चाल बनती है।
   पशुओं में एक जाति के पशु आमतौर पर अपने तरह के अन्य पशुओं की तरह ही चला करते हैं, उनकी चाल में कोई विशेष विविधता नहीं होती... जैसे सभी भैंसे अपनी सुस्त और बेफिक्र चाल से चला करती हैं, हिरण कुलांचे भरते हुए दौड़ते हैं, गिलहरी या चूहे अपनी तेज चाल के सहारे छोटी सी भी दूरी पार करते हैं, गधे भी भैंसों की तरह सुस्त चाल से चला करते हैं। भेड़-बकरियां बेतरतीब चला करती हैं. कहने का अर्थ यह कि प्राणी अपने- अपने जाति वर्ग में लगभग अपने अन्य जाती बंधुओं की तरह ही चला करते हैं।
   लेकिन मानव ही एक ऐसा प्राणी है जो कितने अलग-अलग प्रकारों से चलता है। बच्चा लगभग साल भर का होते ही चलने की कोशिश करने लगता है। उसके पहले कदम पर उसके माँ पिता कितने खुश होते हैं। बच्चे को एक चाल मिल जाती है। लेकिन मनुष्यों में यह चाल सभी की एक तरह की नहीं होती।
   किसी की चाल इतनी तेज होती है कि जैसे गर्म तवे पर कदम रख चल रहा हो (मुंबई जैसे महानगर के लोग अक्सर किसी लोकल ट्रेन को पकड़ने के लिए ऐसी ही चाल से चलते हैं)... तो कोई इतना धीमे-घिसटते हुए चलता है जैसे पैरों में वजन बांध रखे हों।
   कोई इस तरह उछलते हुए चलता है मानो राह में काँटे- कंकड़ बिछे हों ...तो कोई ऐसे चलता है मानो इनके पैर दलदल में फँसे हो ।
   कोई चलता है सधे हुए, नपे-तुले कदमों से ... तो किसी नशे में धुत्त शराबी का अगला कदम कहाँ गिरेगा, नहीं बताया जा सकता।
   किसी की चाल राजसी होती है, शानदार .... तो कोई इतना बेहूदा तरीके से चलता है कि देखकर हँसी आ जाती है। 
   अलग-अलग व्यक्तियों की यह विभिन्न चाल उनकी उम्र, शारीरिक अवस्था, बीमारी आदि की वजह से भिन्न-भिन्न हो सकती है।
   मनुष्यों की विशेष कर महिलाओं के चाल की तुलना कुछ पशु पक्षियों के चाल से की जाती रही है जैसे मोरनी की चाल, हंस की चाल, गजगामिनी, हिरनी की चाल, नागिन सी लहराती चाल आदि। भेड़चाल का भी उल्लेख कभी-कभी होता है लेकिन वह समूह को लेकर होता है। आत्मविश्वास से भरे दमदार कदमों को शेर सी चाल की उपमा दी जाती है। इससे पता चलता है कि मनुष्यों की चाल में कितनी विविधता पाई जाती है। कुछ पशु-पक्षियों की चाल का हमारे शास्त्रीय नृत्यों में बहुत सुंदर उपयोग किया गया है।
   व्यवसाय या अपने काम की वजह से भी किसी को एक विशिष्ट चाल अपनानी पड़ती है। इसका प्रमुख उदाहरण है, रैंप पर चलने वाली मॉडल्स। इनकी अजीब चाल देखो तो लगता है इनके पैर गलत जगह फिट करवा दिए गए हों। मानो बाएं पैर की जगह दायाँ और दाएं के स्थान पर बायाँ पैर लगाकर इन्हें चलाया जा रहा हो। अपनी चाल में विशिष्ट अदा-लचक लाने के लिए ऊंची एड़ी की जूतियाँ पहनने का चलन इन्हें अपनाना पड़ता है
   सैनिकों को भी परेड के समय एक विशेष चाल से कदम मिलाते हुए चलना होता है। किसी टुकड़ी के सैनिक अपने पैर कमर तक ऊँचे उठाते हुए कदम बढ़ाते हैं तो कहीं इससे कुछ अलग तरीके से चलते हैं, लेकिन एक ताल पर एक समान उठते कदम देखने में कितने अच्छे लगते हैं।
   समूह नृत्यों जैसे गरबा, बीहू, झूमर आदि में भी गोल घुमते हुए एक लयबद्ध चाल सभी नर्तक चलते हैं, जो देखने में सुन्दर लगती है. इसमें से किसी एक की भी बिगड़ी हुई चाल अन्य नर्तकों की चाल पर असर डाल सकती है. 
   चाल को फिल्मी गीतकारों को भी मोहित करने से नहीं छोड़ा है। चाल को लेकर गीतकारों ने कई गीत बना डाले हैं, तौबा ये मतवाली चाल... मारा ठुमका बदल गई चाल मितवा... चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी.... कान में झुमका चाल में ठुमका... जैसे गीत भी चाल में मतवाली, मस्तानी, ठुमकेवाली आदि चालों की विविधता की पुष्टि करते हैं।
   रिश्ता करने के पहले लड़के लड़की का चाल-चलन जान लेने का भी चलन है। लेकिन इस चाल-चलन में 'अच्छा' और 'बुरा' यही दो प्रकार हैं।
   एक चाल होती है जो दुश्मन को परास्त करने के लिए चली जाती है। यह चाल शतरंज के खेल से आई है और बहुतायत में राजनीति और सास बहू वाले tv सीरियलों में पाई जाती है। वैसे शतरंज की गोटियों के चालों की विविधता भी प्रसिद्ध है...आड़ा, तिरछा, सीधा, ढाई घर आदि चालें चलने वाली गोटें अपनी चालें मनुष्य को भी सीखा गई हैं।
   उधर कौए को हंस की चाल चलने पर उसका मजाक उड़ाया जाता है। कौओं की अपनी चाल कैसी भी हो लेकिन प्रश्न यह है कि यदि सारे कौवे हंस की देखादेखी उसकी चाल चलने लगे तो क्या ये भेड़चाल होगी या हंस की चाल?

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(मराठी मित्रांसाठी आठवले ... पु. ल. देशपांडे यांनी 'चाल' या विषयावर लिहिलेले -
"पूर्वीच्या काळी राजदरबारात कवींना एक चरण देऊन समस्यापूर्ती करायला लावत. मला कवितेतली ओळम्हणण्यापेक्षा कवितेतले चरण म्हटलेलं, एवढंच नव्हे तर गीताला पद म्हटलेलं अधिक आवडतं. चरण, पद, ह्या शब्दांतून चालणंसुचवलं जातं. म्हणूनच पदाला चालयेते. पहिली ओळ दुसऱ्या ओळीच्या शोधात चालायला लागते. टागोर म्हणतात त्याप्रमाणं यमकातून जुळणाऱ्या दुसऱ्या ओळीशी मीलन झाल्याशिवाय पहिलीच्या अस्तित्वालाही पूर्णता येत नाही. तसे आपण सारेच आपल्याशी जुळणाऱ्यांच्याच यमकांच्या शोधात असतो. वयाच्या निरनिराळ्या अवस्थेत जीवनाला परिपूर्णता देणारे अनुभव शोधत असतो. माणसं शोधत असतो. यमक, प्रास जुळणा-या ओळींसारखेच एकत्र येत असतो." )
-पदन्यासानंद !
(विवेक भावसार)

Thursday, October 10, 2019

कंधा


जिम्मेदारी उठाने के लिये काम आने वाला मानव का शरीर का एक अंग। (कभी-कभी यह काम सिर पर भी डाल दिया जाता है।)

देखें तो चौबीसों घंटे इसकी प्रमुख जिम्मेदारी ये होती है कि दोनों हाथों को अपने से लटका कर रखें, इसके अलावा भी कई जिम्मेदारियाँ कंधों के कन्धों पर रहती है।

वैसे तो हर एक के कंधे का साईज लगभग एक जैसा ही होता है लेकिन जिम्मेदारी से पता चलता है कि किसका कंधा कितना बड़ा है। कोई कंधा देश की जिम्मेदारी उठाता है तो कोई किसी विभाग या दफ्तर की । कुल मिला कर जहाँ जिम्मेदारी है वहाँ उसका आसन कंधा है। सत्ता के लिये कुर्सी आवश्यक है वही जिम्मेदारी के लिये कंधे जरूरी है। ये बात अलग है कि आगे चलकर आपकी गरदन जकड़ ले ऐसी संभावना वाली जिम्मेदारी धकेलने के लिये हर कोई उचित कंधे की खोज में लगा होता है।

किसी अफसर के चपरासी के कंधों पर जिम्मेदारी होती है कि किसी को भी सीधे- सीधे अफसर से मिलने के लिये रोका जाये, अफसर के कंधों पर जिम्मेदारी होती है कि किसी के आवश्यक कार्य जो केवल उसकी अनुमती से ही संभव होते हैं, उन्हें कैसे रोका जाय। इन्हें उचित फीसचुकाकर इनकी जिम्मेदारी का बोझ कुछ कम किया जा सकता है।

यूँ तो जब आप घर से बाहर निकलते हैं तब यह कंधा कुरता, कमीज, कोट आदि भी टांगने के काम आता है, जिसमें ये जिम्मेदारी दोनों कंधे मिलकर उठाते हैं। लेकिन कोई झोला-छाता टांगना हो तो ये काम अकेला एक कंधा कर लेता है।

पुरातन समय में अपने ऊपर गदा धारण करने वाली शैली को आज के कंधे ने क्रिकेट का बल्ला धारण करने में परिवर्तित कर लिया है. हनुमानजी, भीम आदि वीरों के चित्रों में कंधे पर धारण की गई गदा की तरह बल्ले को कंधे पर धारण किये हुए क्रिकेटरों वीरों के चित्र नजर आने लगे हैं ! 

कंधे का एक काम और है, दूसरों के कंधे से मिलकर चलना। अक्सर किसी बड़े काम को कई लोगों के सहयोग से निभाना होता है तब किसी कंधे को दूसरे के कंधे से कंधा मिला कर चलना जरूरी हो जाता है। तब उनमें से कई चतुर कंधे ऐसे भी होते है जो अपना बोझ बड़ी खूबी से दूसरों के कंधों पर सरका कर बोझ उठाने का अभिनय कर रहे होते हैं। 

लेकिन देखा जाये तो वास्तविक रूप से कंधे से कंधा मिलाकर चलने की नौबत कुंभ मेले जैसी भीड़ में आती है. ट्राफिक जाम में फंसे बाईक सवार भी बगल वाले बाईक सवार के कदम से कदम और कंधे से कंधा मिलाते हुए चलते हैं  

पिछले कुछ दिनों से चर्चित इस फोटो ने कंधे का एक और उपयोग दुनिया को बता दिया है. विवाह के समय दिए गए सात वचनों में ससुरजी को अपनी भार्या का सम्पूर्ण भार उठाने के दिए हुए वचन का पालन करते हुए इस बलशाली बन्दे ने पतियों के प्रति पत्नियों की अपेक्षा बढा देने से दुनिया भर के पतियों की नींद उड़ा कर रख दी है. 

किसी के दुःख में उस का सर अपने पर रख कर उसका दर्द हलका करने वाले कंधा किसी को उसके जीवन के अंतिम पड़ाव तक पहुंचाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी में भी शामिल होता है।
- व्याख्यानंद !
(विवेक भावसार)

Friday, October 4, 2019

दरवाजा



जो बारिश के दिनों में फूल जाता है और फिर जिसे खोलने-बंद करने में आपका दम फूल जाता है ऐसा घर के अंदर आने के लिये या दीवार से आर-पार जाने के लिये प्रवेश मार्ग।

दरवाजा असावधानीपूर्वक दरवाजा लगाया जाय तो उसमें उँगलिया आ जाने की संभावना होती है, और लगाया ही न जाये तो अड़ोस-पड़ोस के बच्चे घर में आ जाने की संभावना होती है। अपने यहाँ आ कर जम गये मेहमानों को बाहर जाने के लिये दरवाजा भी होता हैयह याद दिलाना पड़ता है। 

प्रवेश के लिए बंद होने पर दरवाजा तोड़ने की जिम्मेदारी सीरियलों में दया नामक पात्र पर होती है, लेकिन केवल नाम का यह 'दया', दरवाजा तोड़ने में कोई दया नहीं दिखाता। घर का दरवाजा तोड़ने में भले कोई कामयाब हो जाये लेकिन किस्मत का दरवाजा या दिमाग का दरवाजा न खुलने पर तोड़ देना किसी के बस की बात नहीं

दरवाजे ने फिल्म वालों को भी शीर्षक उपलब्ध कराने में बहुमूल्य योगदान दिया है, जैसे ''दरवाजा'', ''बंद दरवाजा'', ''खूनी दरवाजा'' आदि आदि. ये बात और है कि फिल्म समाप्ती के बाद गेटमैन आपको बिना टिकट 'बाहर का दरवाजा' दिखा देता है।

आजकल इलेक्ट्रॉनिक तालों के या आपकी उँगलियों के निशान से खुलने वाले या केवल उसके सामने खड़े भर रहने से ही अपने आप खुल जाने वाले दरवाजे देखने में आते है परन्तु इन आधुनिक दरवाजों पर इतराने की जरूरत नहीं क्योंकि केवल आवाज से खुल जाने वाले दरवाजे की बहुत पुरानी कहानी आपने भी सुन रखी होगी। याद कीजिये अलीबाबा और ४० चोर वाली कहानी, जिसमे अलीबाबा ने चोरों के सरदार से पासवर्ड 'खुल जा सिम सिम' चुराकर खजाने की गुफा का दरवाजा खोलने में सफलता पाई थी।

सोचनेवाली बात है कि अगर दरवाजा न होता तो हम अपने घर में कैसे जाते या बाहर आते ? इस संसार में जितनी भी मकानों की संख्या है उससे अधिक दरवाजों की संख्या है ! इसलिए दरवाजे का महत्त्व अनन्य साधारण है हर इमारत में चाहे वह महल हो, किला हो, दुकान हो, मंदिर हो, सिनेमाघर हो, जेल हो या घर हो... इसका उद्देश्य केवल प्रवेश कराने से ही नहीं, प्रवेश करने से रोकना भी इसके काम में शामिल है 

इसके अलावा कमरों के दरवाजों को एक जिम्मेदारी और निभानी होती है, अपने पीछे कपड़ों, जैसे कमीज, पैंट, पजामा, थैलियाँ आदि को टाँगे रखना. कन्धों पर तौलियों का भार संभालना भी इसकी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी में शामिल है  इस तरह माना जा सकता है कि बिना दरवाजे के घर, घर नहीं हो सकता, क्योंकि दरवाजा ही नहीं होगा तो आप घर में घुसेंगे कैसे ?

व्याख्यानंद !