Tuesday, October 29, 2019

घड़ी !


कितना पीछे चल रही, यह बार-बार देखना पड़े ऐसी समय दर्शक मशीन ।
   पुराने समय में काँच के एक डमरूनुमा बर्तन में रेत भरकर उसकी सहायता से समय नापा जाता था। पानी भरे बड़े बर्तन में एक छेददार पेंदे के बर्तन को रखकर भी समय नापा जाता था, जब बीचवाला बर्तन निश्चित समय में पूरी तरह भरकर डूब जाता था. लेकिन अचूक समय बताने के इनके इस गुण के कारण यह पद्धति रद्द कर इस घडी नामक यंत्र की सहायता ली जाने लगी। सूर्यकिरणों की मदद से भी समय जानने की पद्धति कुछ समय के लिये चलन में थी, लेकिन उसमें भी वही दिक्कत थी। सूर्य के निश्चित समय पर उदय होने और अस्त होने से समय देखने में चूक नहीं हो पाती थी, इस वजह से घड़ीसा़जों का धंधा मंदा पड़ गया। इसलिये खास गलत समय बताने वाली घड़ियाँ ईजाद की गई। ये घड़ियाँ समय-समय पर बंद होते रहने से घड़ीसा़जों का धंधा अच्छा चलने लगा।
   घड़ियों के अनेक प्रकार हैं। दीवारघड़ी आकार में बड़ी होती है। ‘दीवार से गिरकर टूट न जाये’ मालिक को ये डर हमेशा बना रहे, यह इनका प्रमुख काम होता है। इसे हर आठ दिन में चाबी भरनी होती है, लेकिन पिछली बार किस दिन चाबी भरी गई थी यह याद न रहने से यह अक्सर बंद पड़ जाती है। इस समस्या से निपटने के लिये सेल से चलने वाली घड़ी बनाई गई। लेकिन इन घड़ियों में डायल पर अंक लिखना पुराने फैशन का होने से केवल लकीरें बनी होती हैं। इसलिये समय जानने के लिये बारह की लकीर से गिनती लगाते हुए काफी समय खर्च करना पड़ता है। ऐसी घड़िया भले ही समय बताने वाली होती हों, समय खाने वाली भी होती हैं।
   अलार्म घड़ी भी एक परेशान करने वाला प्रकार है। रात में अलार्म सेट करते हुए बड़े प्रेम से उसे हम देखते हैं, लेकिन सुबह अलार्म घनघनाते ही इस पर गुस्सा फूट पड़ता है और इसके टुकड़े-टुकड़े कर देने को जी चाहता है। इसका गला दबाने की गरज से अंधेरे में जब इसे टटोलने लगते हैं तब सिरहाने रखा पानी का जग लुढ़ककर बिस्तर गीला हो जाता है। अलार्म घड़ी से नींद खुलवाना हो तो सिरहाने पानी भरा जग रखना अच्छा उपाय है। अलार्म घड़ी एक सुंदर महिला के समान होती है, जब तक चुप होती है, अच्छी लगती है, लेकिन आवाज करती है तो जल्द से जल्द चुप हो जाये ऐसा मन करता है।
   रिस्ट वॉच या कलाईघड़ी नामक प्रकार में कुछ अनब्रेकेबल या वॉटरप्रुफ घड़ियां आती हैं, जो टकराने से नहीं टूटती या इनमें पानी नहीं जाता। यह दावा किया जाता है कि इस प्रकार की घड़ी नदी या सागर की गहराई में भी बंद नहीं पड़ती, लेकिन सिर्फ समय देखने के लिये इतनी गहराई में गोता लगाना किसी के लिए बड़ा मुसीबत भरा काम है।
सबसे बड़ी घड़ी सार्वजनिक प्रकार की होती है। यह किसी बड़ी सरकारी इमारत या टॉवर पर लगी होती है। इसका केवल एक ही उपयोग है, यह कितने बजे बंद हुई थी, वह समय बताना. वह समय ये दुबारा चालू होने तक अचूक दर्शा रही होती है। समय पर ऑफिस न पहुँच पाने पर घड़ी की सूईयाँ चुभने लगती है यह अनुभव किये जाने के पश्चात केवल आँकड़े दिखाकर समय बताने वाली इलेक्ट्रॉनिक घड़ियाँ भी चलन में आई लेकिन इससे समय से चूकने की समस्या का समाधान नहीं हो पाया। अब मोबाईल उपकरण में भी घड़ियाँ आ जाने से ये बाकी की सारी घड़ियाँ सिर्फ देखने भर के लिये रह गई हैं या घड़ी कर अलमारियों में रख दी गई हैं।
   फिल्मी गीतों में भी घडी ने अपना असर दर्शाया है। घड़ी की टिक-टिक से प्रभावित फिल्मी गीत- घड़ी घड़ी मेरा दिल धड़केऔर 'दो घड़ी वो जो पास आ बैठे' काफी लोकप्रिय हुए थे, इसी प्रकार 'चलती है क्या नौ से बारा' में भी घड़ी का अप्रत्यक्ष उल्लेख है। इसी के साथ इस व्याख्या को भी समाप्त करने की घड़ी आ गई है।
- व्याख्यानंद 
(विवेक भावसार)

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