Friday, May 31, 2019

खयाली पुलाव बनाने की रेसीपी


खयाली पुलाव
खयाली पुलाव आम तौर से हर घर में बनाया जाने वाला पदार्थ है। सभी लोग इसे बड़े चाव से बनाते हैं, फिर भी कुछ लोग ऐसे कर्मठ होते हैं कि उन्हें अभी तक इसे बनाने कि विधि का पता नहीं हैं। अत: वे लोग अभी तक इसे बनाने का सुख नहीं उठा पाए हैं। इन्ही लोगो के अज्ञान को दूर करने के लिए प्रस्तुत है खयाली पुलाव बनाने की यह रेसिपी। आशा है इसे पढ़ कर सभी लोग आसानी से खयाली पुलाव पका पाएंगे और साथियों को भी पकायेंगे ... मतलब बतायेंगे ....कि पुलाव कैसे बना है।

सामग्री : 
किसी अखबार के इनामी योजना के कटे हुए कूपन, कूपन चिपकाने का फार्मेट, चिपकाने वाला पदार्थ, कैंची, पेन...अगर यह सब न मिले तो लॉटरी का टिकट !
विधि : 
अखबार में से इनामी कूपन चिपकाने का फार्मेट कैंची की सहायता से काट लें। अब अपने इष्ट देव का स्मरण करें। अब चिपकाने वाले पदार्थ की सहायता से फार्मेट में दर्शाए गए चौखटों में पहले से कटे हुए कूपन एक-एक कर व्यवस्थित रूप से चिपकाएं। कूपन्स चिपक जाने के पश्चात एक पेन की सहायता से फार्मेट के ऊपरी भाग पर इष्टदेव को नमन लिखकर अपना नाम पता लिखने वाली जगह भरें।
अब फार्मेट को ध्यान से देखें, पहले नंबर वाली इनाम की कार का चित्र मन भर कर देखें। अब आंखे बंद कर कार की कल्पना करें, परिवार सहित इनाम में खुली कार की चाबी ग्रहण करने की कल्पना करें, कार में बैठ कर सैर पर निकलने की कल्पना को आगे बढ़ाए।
आपका खयाली पुलाव तैयार है। इसे चाहे जितनी देर खा सकते हैं। इसे बनाने में परिवार को भी शामिल कर सभी लोग इसे खा सकते हैं। अखबार के कूपन न मिले तो यह डिश लॉटरी के टिकट से भी बनाई जा सकती है।
इनामी योजना या लॉटरी के परिणाम आने तक यह डिश बनाई जा सकती है। चुनाव में खड़े उम्मीदवार नेता गण भी चुनाव परिणाम आने तक इसे बड़े आनंद के साथ बना सकते हैं
- पुलावानन्द!
(विवेक भावसार)

Wednesday, May 29, 2019

राई का पहाड़ बनाने की रेसिपी





राई का पहाड़ बनाने की रेसिपी 
आपने कई दफे सुना होगा कि अलाने-फलाने ने मेरी किसी बात को लेकर उसका  राई का पहाड़ बना दिया। बहुत से लोगों को आज तक नहीं पता चला है कि यह 'राई का पहाड़' आखिर बनाया कैसे जाता है ? और वाकई राई का पहाड़ बनाना है तो इतनी राई कैसे लाएं ? क्योंकि किलो-दो किलो राई से पहाड़ बनने से तो रहा। .... तो आइये, आज हम जानेंगे ज़रा सी राई से कैसे पहाड़ बनाया जाता है। 

राई का पहाड़ बनाने के लिए आवश्यक सामग्री :
एक सफ़ेद कागज, एक पेन्सिल, दूरदर्शन पर जिसे चिपकाने वाला पदार्थ कहा जाता है वह पदार्थ (हिंदी में जिसे फेविकॉल भी कहते है), एक लकड़ी की पतली डंडी या ब्रश, एक कप और उस कप में भरने के लिए राई.

विधि : 
एक बड़े सफ़ेद कागज को सपाट फर्श पर आड़ा बिछाइये। इसके चारों कोनों पर वजनदार चीजें रख दीजिये ताकि कागज भोंगली न बन पाए और फर्श पर सपाट बिछा हुआ रहे. अब इस कागज पर पेन्सिल की सहायता से एक सुंदर पहाड़ का चित्र बनाइये। पेन्सिल का काम ख़त्म हो चुका है, अब इसे (पेन्सिल को) यथास्थान रख दें या जिससे मांग कर लाई गई है उसे दे दें। कागज पर पेन्सिल से बनी आकृति पर अब ब्रश की सहायता से चिपकाने वाला पदार्थ लगाइये। अब ब्रश भी जिससे मांग कर लाया है उसे वापिस कर दें लेकिन सावधान ...जो चिपकाने वाला पदार्थ आपने पोता है उसे सूखने से पहले उस पर राई बिखेर दें , अन्यथा आपको ब्रश मांगने फिर से जाना पड़ेगा. कागज पर जहाँ - जहाँ चिपकाने वाला पदार्थ पुता हुआ होगा, उस जगह पर राई चिपक जायेगी।

अच्छी तरह सूख जाने पर कागज को झटक कर बिना चिपकी राई अलग कर लें, आधी राई अब भी शेष बच गई होगी। लीजिये.... आपका आधे कप से भी कम राई से बना 'राई का पहाड़' पहाड़ तैयार है।

इसे अच्छे से फ्रेम करवा कर दीवानखाने में सजा कर लगा दीजिये और मित्रों, मेहमानों के साथ आनंद लीजिये।

इसी विधि से 'तिल का ताड़' भी बनाया जा सकता है, लेकिन ध्यान रहे उसमें कागज काले रंग का हो अथवा तिल काले रंग का।

यह पदार्थ एक-आध बार बनाने के लिए ठीक होता है, बार-बार बनाने पर पतिदेव की नाराजी झेलना पड़ सकती है !

- पाककलानन्द !
(विवेक भावसार)

Tuesday, May 28, 2019

अंतरात्मा की आवाज

इन दिनों जोर-शोर से चल रहे अंतरात्मा की आवाज सुनने के दौर में मुझे भी अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने की बड़ी जोर की लगी। अब ये आवाज स्टीरीयोफोनिक आती है कि डॉल्बी साउंड में या किसी और सिस्टम से, अपन को ठेंगा कुछ नी मालूम। फिर एक ग्यानी से चर्चा करके पता चला कि वो आवाज कैसे सुनते है. 


घर पहुँचते ही उस विधि के अनुसार एक शांत कमरे में बत्ती बंद कर, दरवाजा लगाकर आँखे मीच कर बैठ गया और लगा इंतजार करने की... अब आई अंतरात्मा की आवाज कि तब आई आवाज।

दस मिनट हो गये, कोई सुरसुरी भी सुनाई नहीं दी। इतने में चर्रर्रर्र की आवाज आई, दरवाजा खुलने जैसी। मैंने सोचा-वाह, अंतरात्मा मन का दरवाजा खोल रही है। तभी हलका सा स्वर गूँजा " कहाँ हो ?"

मैं विधी में बताये अनुसार बिलकुल चुप रहा, लेकिन सोचा - आवाज कुछ सुनी-सुनी सी लग रही है, शायद बोलने के लिये अंतरात्मा ने कोई परिचित आवाज चुनी है। मैंने आवाज की तरफ और ध्यान केन्द्रित किया। आवाज थोडी तेज हुई और सुनाई आया- अरे...बोलते क्यों नही? मैं फिर भी चुप रहा। अबकी बार बड़ी तेज स्वर में अंतरात्मा की आवाज आई-अरे कान फूट गये क्या?

उसके बाद बंद आँखों के सामने अचानक से उजाला हुआ और जोर का एक धक्का कंधे पर लगा और कडकडाती आवाज गूँजी - ये आँख बंद कर अंधेरे में बैठे-बैठे क्या कर रहे हो?

मैंने धीरे से आँखे खोल कर देखा, मेरी अंतरात्मा अपनी आवाज सुनाते हुए श्रीमतीजी का रूप धरे सामने खडी थी।

धन्य हो गया मैं, लोग केवल अंतरात्मा की आवाज सुनते हैं, मैंने प्रत्यक्ष दर्शन भी कर लिये!

-अन्तरात्मानन्द !
(विवेक भावसार)

Monday, May 27, 2019

मैं कौन हूँ?

मैं कौन हूँ?


बड़े-बड़े महापुरुष यह जानने में पच गये कि ‘मैं कौन हूँ !’ और स्वयं के बारे में जानने के लिये उन्होंने अपना पूरा जीवन खर्च कर डाला ।इन महापुरुषों की तरह मेरे मन में भी यही सवाल बचपन से उठ खड़ा हुआ था और उसका जवाब मुझे बिना पूछे ही अलग-अलग लोगों से मिलता रहा है। देखिये, क्या-क्या जवाब मिला....


* पैदा होते ही दादा-दादी ने कहा - तुम हमारे कुलदीपक हो ।
* स्कूल के लिये उठाते हुए मेरी मॉं ने कहा - तुम बहुत आलसी हो।
* बचपन में मेरी बड़ी बहन ने कहा - तुम बहुत शैतान हो।
* स्कूल में टीचर ने कहा - तुम निरे बुद्धू हो।
* रिजल्ट पर साईन करते हुए पिताजी ने कहा - तुम गधे हो....गधे !
* सहपाठियों ने परीक्षा के बाद ने कहा - तुम तो ‘टीपू’ सुल्तान हो।
* कॉलेज में दोस्तों ने कहा - तुम बड़े ही काइयां हो ।
* शादी से पहले प्रेमिका ने कहा - तुम कितने प्यारे हो।
* पत्नी बन जाने के बाद प्रेमिका ने कहा - तुम वादा खिलाफ हो।
* शादी के पांच साल बाद पत्नी ने कहा - हे भगवान ! समझ नहीं आता, आखिर तुम चीज क्या हो ।
* दफ्तर में बॉस ने कहा - तुम पूरे गोबर गणेश हो।
* किरानेवाले ने कहा - तुम उधारचंद हो।
* बच्चों ने कहा - आप बहुत कंजूस हो।
लेकिन सबसे बढिया बात मेरे ज्योतिषी ने बोली और मैंने उसे मान भी लिया...
*ज्योतिषी ने कहा - आप बहुत भोले हो, मेहनती हो, सबकी मदद करने वाले हो और कोई आपकी तारीफ में कुछ भी कहे, हर बात बिना सोचे समझे मान लेते हो !
- परिचयानन्द!
(विवेक भावसार)

Tuesday, May 21, 2019

पूँछ

पूँछ

डार्विन महाशय के मानव उत्क्रांति के सिद्धांत अनुसार मानव के पूर्वज बंदर थे, अर्थात आदमी पहले बंदर था, फिर उसका विकास होते-होते वह मनुष्य रूप में आया । तब सवाल यह उठता है कि फिर बाकी के बंदर... बंदर ही क्यों रह गये ? वे क्यों नहीं मनुष्य बनें, उन्हें किस डार्विन ने रोक रखा था ?

लेकिन यह अच्छा हुआ कि विकास के इस दौर में मनुष्य पुच्छविहिन हो गया। सोचिये अगर अभी भी बन्दर की तरह इन्सान को पूँछ चिपकी हुई होती तो उससे क्या-क्या परेशानियाँ या फायदे होते ।

फायदों की बात करें तो--
दोनों हाथ व्यस्त होते हुए भी मनुष्य अपनी पूँछ की सहायता से मक्खी, मच्छर उड़ा सकता।
पूँछ समय-समय पर चेहरे पर हवा करने के काम आती।
 हाथ की पहुँच से दूर रखी वस्तु पूँछ से पकड़ कर लाई जा सकती।
 विवाद के दौरान दूसरे को झापड़ मारने के लिये पूँछ उपयोगी होती।
 जमीन पर बैठने के लिये पूँछ की कुंडली बनाकर गद्देदार आसन बनाया जा सकता।
 मास्टरजी हाथ या कान की जगह पूँछ मरोड़ कर छात्रों को दंड देते।
 पति-पत्नी भीड़ में बिछड़ने से बचने हेतु हाथ के बजाय एक दूजे की पूँछ से पूँछ पकड़े रहते
◆ बंदर की तरह पूँछ के बल लटकने के खेल खेले जा सकते।
 ट्रेन, बस या थियेटर में सीट रोकने के लिए पड़ोस की सीटों पर पूँछ फैलाकर बैठा जा सकता।
 मनुष्य की सुंदरता में पूँछ का भी महत्व होता, जैसे लंबी या नाटी पूँछ, मोटी या पतली पूँछ, पूँछ का लचीलापन, पूँछ के बालों की लंबाई, घना पन, रंग आदि सुंदरता के पैमाने होते।
 पूँछ से संबंधित व्यवसाय फलते फूलते। पूँछ सज्जा के लिये सलून, ब्यूटीपार्लर होते। पूँछ के बाल रंगने के रंगों का, झड़ने से रोकने के लिये तैलों, दवाओं का व्यवसाय जोरों पर होता।
 पूँछ सजाने की एसेसरीज का व्यवसाय चल पड़ता।
 पूँछ स्पेशलिस्ट चिकित्सकों की भी एक शाखा होती।
 शायर / कवि प्रेमियों की पूँछ की तारीफ में गीत लिखते।
.....आदि आदि!
परेशानियाँ --
 उठते-बैठते समय पूँछ संभालने में सावधानी रखनी पड़ती।
 परिधानों के डिजाइन बदलने होते, पूँछ के अनुसार ड्रेस में प्रावधान बनाने पड़ते।
 कुर्सियों-सोफों के डिजाइन पूँछ रखने की जगह बनाते हुए तैयार करने पड़ते।
 चलते हुए किसी की पूँछ पर पैर न पड़े पस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ता।
 बाईक पर पीछे बैठने वाले को पूँछ पहिये में न आये इसका ख्याल रखना पड़ता, या लटकती पूंछ को देखकर लोग टोक देते जैसे आजकल साड़ी के लटकते पल्लू या ओढ़नी के लिए टोकते हैं।
.....आदि आदि!
अच्छा है, आदमी के सींग भी नहीं है, उनके होने में परेशानियाँ ही ज्यादा होती बजाय फायदों के।
कल्पनाएं हैं, कल्पनाओं का अंत नहीं। कुछ फायदे या परेशानियों की कल्पनाएं शायद आप भी कर सकें।
- पुच्छचिंतनानन्द !
(विवेक भावसार)

Friday, May 17, 2019

पोस्टमार्टम ऑफ़ कहावत - भैंस के आगे बीन बजाना

कुछ मुहावरों-कहावतों का हम गहराई से अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि उस कहावत के पीछे अनेक अर्थ छुपे होते हैं। इन्ही छुपे हुए अर्थों को इन कहावतों का पोस्टमार्टम कर आपके सामने लाने की कोशिश की गई है। इसी क्रम में उपरोक्त कहावत -"भैंस के आगे बीन बजाना" का विश्लेषण किया जाए तो निम्न बिंदू सामने आते हैं-

★ भैंस संगीत प्रेमी होती है।

★ संगीत में भी भैंस को केवल बीन वादन पसंद है।

★बीन 'बजाना' आवश्यक है, सिर्फ दिखाने से नहीं चलता।

★भैंस के आगे सिर्फ बीन बजाई जाती है।

★बीन केवल आगे ही बजाई जा सकती है, पीछे की ओर नहीं।

★ पीछे की ओर बीन के अलावा कुछ भी बजाया जा सकता है, ढोल नगाड़ा बांसुरी आदि।

★अन्य जानवरों के आगे दूसरे वाद्य बजाये जाते हैं।

-कहावतानंद !

Monday, May 13, 2019

मेरी विमान यात्रा

हमारे पड़ोस में एक लड़का रहता है पप्पू । (हँसिये मत, दुनिया में केवल एक ही पप्पू नहीं है।) तो हमारा ये पडोसी पप्पू कक्षा ५ वीं में पढ़ रहा है। यह पप्पू इतना भी पप्पू नहीं है, बल्कि बहुत होशियार और चंट है । उसने केवल एक ही निबंध याद कर रखा है । वह है "हमारी गाय'।
पप्पू के टीचर और माता पिता ने भी उसे खूब समझाया कि बेटा दूसरे विषयों पर भी निबंध लिखने का अभ्यास होना चाहिये, उनकी भी तैयारी रखो । परंतु पप्पू ने उस ओर कान नहीं दिया और कहा "परीक्षा में मै मेरा देख लूंगा, आप मेरी चिंता मत कीजिये ।
आखिर जो होना था वहीं हुआ, परीक्षा में हिंदी के पेपर में गाय के ऊपर निबंध लिखने की बजाय विषय था -"मेरी विमान यात्रा" ! विषय को देख कर पप्पू ने बगैर जरा भी घबराये निम्न प्रकार से अपना निबंध लिखा -

मेरी विमान यात्रा

*******************************
मुझे विमान में बैठने का बड़ा शौक है, इसलिये मैंने पिताजी को मनाया कि इस बार हम छुट्टियों में हमारे गाँव हाटपिपलिया विमान से चलेंगे । पिताजी ने मना कर दिया । आखिर बहुत जिद के बाद मैंने पिताजी को मना ही लिया ।
गाँव जाने का दिन आया । मैं विमान में बैठने के लिए बहुत उत्सुक था । हम विमान के स्टैंड पर जा पहुँचे । पिताजी गांव में ओहदेदार अफसर थे इस लिए सारे लोग उन्हें जानते थे। वहाँ पहुँचते ही वहाँ के संतरी ने मुस्कुराकर हमारा स्वागत किया और प्रतीक्षालय में बैठने के लिये कहा । पिताजी ने टिकट पहले से ही लेकर रखा था । मैं छोटा होने से मेरा आधा ही टिकट लगा । पिताजी ने काउन्टर पर जाकर टिकट चेक करवाया । विमान के आने में कुछ देर थी ।
विमान स्टैंड पर लगते ही सभी पेसेंजर धक्कामुक्की करके विमान में चढ़ने लगे । हम भी जैसे तैसे करके विमान में बैठ गये । मैं हठ कर के खिडकी के पास वाली सीट पर बैठ गया । विमान चालू होने के पहले पिताजी ने मुझे अपना बेल्ट कसकर बांधने को कहा । मैंने भी तुरंत अपनी नेकर का बेल्ट अच्छे से कस लिया। पिताजी मेरे कपडे हमेशा थोड़े बड़े नाप के ही खरीदते है (ताकि बाद में कपड़े तंग न होने लगें। यह बात अलग है कि कपड़े जब बदन पर सही से फिट होने लगते हैं तब तक वो पुराने पड़ जाते हैं... खैर!) ढीली होने से मेरी नेकर हमेशा नीचे की ओर सरकती रहती है । इसलिए मुझे नेकर में हमेशा बेल्ट लगाना पड़ता है ।
कुछ ही देर बार विमान चालू हुआ और धीरे-धीरे आगे की ओर सरकने लगा । मैं खिड़की में से बाहर के मजे लेने लगा । अब चारों ओर गाँव दिखाई देने लगा था । गाँव के रास्ते दिखाई दे रहे थे । कुछ ही मिनटों में विमान गाँव से बाहर निकल आया । नीचे खेत-खलिहान नजर आने लगे । एक खुले मैदान में गायें चरती दिखाई दे रहीं थी । दूर होने से वे बहुत छोटी-छोटी बकरियों जैसी दिखाई पड़ रही थी ।
गाय यह एक पालतू पशू है । हमारी गाय भी एक पालतू गाय है । उसका नाम कपिला है । उसके चार पैर है, दो पैर आगे और दो पीछे । उसके पीछे के पैरों के पीछे एक पूँछ है और आगे के पैरों के आगे एक सिर है । सिर पर दो सींग हैं । कोई कुत्ता जब पास आता है तब वह अपने सींगों से उसे डराकर दूर भगाती है । पूँछ का उपयोग वह मक्खियाँ उड़ाने के लिए करती है । मक्खियाँ गोबर पर बैठती हैं । स्कूल जाते समय जब कभी मेरा पैर गोबर पर पड़ जाता है तो मेरे सारे दोस्त "हैप्पी बड्डे का केक कट गया' कहकर जोरों से तालियाँ बजाते है । लेकिन हैप्पी बड्डे को मैं सचमुच का केक काटता हूँ । तब मुझे बहुत सारी गिफ्ट मिलती हैं । इसलिये मैं पिताजी से कहनेवाला हूँ कि हर महिने मेरा हैप्पी बड्‌डे मनाया करें । खैर .. .
गाय हरा-पीला चारा खाती है, हरी-हरी पत्तियाँ खाती है लेकिन उसका दूध सफेद होता है । "यदि हम गाय को दूध पिलायें तो क्या वह हरा चारा देगी ?'' ऐसा पूछते ही पिताजी ने मेरे पुठ्ठे पर एक धौल जमाया । हम बच्चे पुठठे के टुकडे करके हवा में उड़ाते हैं, तब बड़ा ही मजा आता है ।
हमारी कपिला गाय भी हमें दूध देती है । हमारा नौकर उसका दूध निकालता है । मेरा दोस्त राजू कहता है कि उसके यहाँ छगन ग्वाला दूध देता है, परंतु वो लोग उसका दूध कैसे निकालते हैं, मुझे नहीं पता । दूध से बहुत से पदार्थ बनते है, जैसे दही, छांछ, घी, मावा, पनीर, चाय आदि । मुझे चाय अच्छी लगती है । कहते है, चाय पीने से रंग काला पड़ जाता है । परंतु मैं पहले से ही काले रंग का होने से मुझे उसकी जरा भी चिंता नहीं है ।
गाय की आवाज बस के हॉर्न जैसी भ्रांऽऽऽ करके आती है । जब हमारी गाय रास्ते में आवाज निकालती है तब सारे लोग पीछे से बस आ रही है यह सोच कर रास्ते से हट जाते हैं और जब देखते है कि पीछे गाय है तब उनके फजितवाड़े हो जाते है । खैर...
मैंने सुना था कि विमान में एक मैडम मुफ्त में शरबत, गोली, बिस्कुट आदि बाँटती है, परंतु अभी तक तोे वह दिखाई नहीं दे रही थी । हमारी पीछे वाली सीट पर बैठी एक आंटी अपने बच्चे को चॉकलेट खिला रही थी । उसकी पर्स में एक कोल्ड-ड्रिंक की बोतल भी रखी हुई थी । शायद वो वहीं गोली-बिस्कुट बाँटनेवाली मैडम रही होगी, उसी ने अपने बच्चे के लिए सारे चॉकलेट और शरबत की बोतल हडप ली होगी ।
कुछ ही देर में हमारा गाँव हाटपिपलिया आ गया । हम हमारी विमान ट्रेवल्स की बस से उतर गये और दादाजी के घर की ओर चल पड़े । इस प्रकार से हमारा विमान प्रवास पूर्ण हुआ ।
आशा है आपको पप्पू के इस निबंध को पढ़कर आनंद आया होगा !

-यात्रानंद !

Thursday, May 9, 2019

पोस्टमार्टम ऑफ़ कहावत - चोर की दाढ़ी में तिनका

चोर की दाढ़ी में तिनका



कुछ मुहावरों-कहावतों का हम गहराई से अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि उस कहावत के पीछे अनेक अर्थ छुपे होते हैं। 
इन्ही छुपे हुए अर्थों को इन कहावतों का पोस्टमार्टम कर आपके सामने लाने की कोशिश की गई है। इसी क्रम में उपरोक्त कहावत -"चोर की दाढ़ी में तिनका" का विश्लेषण किया जाए तो निम्न बिंदू सामने आते हैं।

चोर बनना हो तो दाढ़ी रखना आवश्यक है।

बिना दाढ़ी वाले को चोर होने की पात्रता नहीं है।

चूंकि महिलाओं की दाढ़ी नहीं होती, 
महिला कभी चोर नहीं बन सकती।

महिला को यह पात्रता न होने से यह 
महिलाओं के अधिकारों पर कुठाराघात है।

चोर होने के लिए केवल दाढ़ी होना पर्याप्त नही, 
दाढ़ी में तिनका होना आवश्यक है।

बिना तिनके वाले दाढ़ी के चोर को 
चोर होने की मान्यता नहीं।

बिना दाढ़ी के तिनका होने पर भी चोर 
नहीं मान सकते।

तिनका सूखा हो या हरा, छोटा हो या बड़ा, 
तिनके के आकार प्रकार का चोर होने पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

दाढ़ी में तिनका होने से यह साबित होता है 
कि चोर साफ सफाई पसंद नहीं।

दाढ़ी में तिनका होने से ये भी प्रमाणित होता है 
कि चोर चौर्यक्रम के अलावा पार्ट टाइम घास फूस से संबंधित काम में भी लिप्त है।

दाढ़ी ओरिजनल नही है तो चोर ने दाढ़ी भी 
किसी तिनके वाले से चुराई हुई है।

-मुहावरानंद !
(विवेक भावसार)
.

Tuesday, May 7, 2019

आधुनिक राजयोग एवं संबंधित आसन


पौराणिक काल में राजाओं को राजगद्दी का उपभोग अपने पिता के राजा होने के बल पर  मिल जाता था  राजा के पुत्र को राजयोग अपने जन्म से ही अधिकारपूर्वक प्राप्त होता था।  राजा का ज्येष्ठ पुत्र अपने आप ही राज्य का उत्तराधिकारी हो जाता था। परन्तु आधुनिक काल में राजनेताओं को राजयोग एवं राजगद्दी पाने के लिये बड़ी जद्दोजहद करना पड़ती है, कॉम्पीटीशन बढ़ गया है । पहले किसी राजनीतिक पार्टी में कार्यकर्ता बनकर, जन्म दिन की बधाईयों के बैनरों में अपने फोटो वरिष्ठ नेताओं के साथ लगवाकर, भंडारे करवाकर, सभाओं में भीड जुटवाकर, उनसे नजदीकियां बढ़ानी पड़ती है, ताकि चुनाव में पार्टी से टिकट का लाभ हो जाये। पार्षद के टिकट से शुरुआत कर विधानसभा और फिर लोकसभा के लिये टिकट की जुगाड़ किस तरह जमानी पड़ती है, ये सारी कहानी किसी से छुपी नहीं है।इतनी सारी मेहनत के बाद आप भाग्य से किसी मंत्री पद पर भी पहुँच जाते है, तब इस पद पर अपने आपको टिकाये रखना एक बड़ा भगीरथी कार्य होता है । इसी व्यथा को जानकर वर्तमान युग के परम ज्ञानी बाबा आरामपाल बापू ने स्थिर राजयोग के लिए कुछ खास आसनों का सूत्रपात किया है, जिसके परिणाम स्वरुप मंत्री या नेता अपने पद पर बने रहने के साथ-साथ प्रचार माध्यमों यथा-अखबार, टीवी चैनल, सोशल साईट्स पर चर्चा में बना रहता है। इस अति गुप्त एवं अत्यंत अल्प प्रतियों में मुद्रित पुस्तक ‘‘आधुनिक राजयोग’’ के कुछ पन्ने हमारे स्टिंग आपरेशन में हाथ लगे है। इनमें से कुछ आसनों का वर्णन इस प्रकार से हैं –



पार्टी के प्रथम स्तर के कार्यकताओं के लिये यह एकमात्र आसन है। बाद में भी इस आसन आवश्यकतानुसार उपयोग कर सकते हैं.
विधि : पार्टी के नगर स्तर के नेता के पिछलग्गू बन जाये । हर उत्सव, जुलूस, भंडारे, गरबे के आयोजनों में भिया के आमने-सामने बने रहे, चाहे गालियॉं, दुतकार खानी पड़े, उनकी हाँ में हाँ मिलाते रहें। नेताजी के हर काम में दिन रात न देखते हुए तन और मन से (धन से नहीं) सहयोग दे।
लाभ : भोजन भंडारे के अलावा थोड़ा बहुत धन लाभ भी संभव है। भिया के खास होने की समाज में साख बनती है। इस आसन को 'पुच्छदोलकश्वानासन के नाम से भी पहचाना जाता है।

धरना-आसन 
इस आसन को करने के लिए अनेक लोगों की 
आवश्यकता होती है। यह अकेले किया जाने वाला आसन नहीं है। अच्छा खासा नाम कमा लेने के बाद किया जाने वाला आसन है। 

विधि : एक बड़े सार्वजनिक मैदान में एक तंबू ठोकिये और तखत लगाईये। अपने चुनिंदा साथियों के साथ तखत पर आसन जमा कर बैठ जाईये। सामने लोगों की भीड लगवाईये। फोकटिये टीवी चैनलवाले तो ऐसी बाईट की फिराक में ही रहते हैं सो वे भी आ जमेंगे। माईक पर बीच बीच में सत्ता पक्ष को कोसते हुए नारे लगाते रहिये। मनोरंजन हेतु गाने-भजन गाने का भी चलन इस आसन में इन दिनों चल गया है । ये आसन एक दिन से लेकर आठ-दस दिन तक किया जा सकता है।
लाभ: इस आसन के करने से चुनाव पश्चात् मुख्य मंत्री पद की प्राप्ति हो सकती है। मुख्य मंत्री पद पर रहते हुए भी यह आसन किया जा सकता है, ताकि इसे करने का अभ्यास बना रहे।

मंडूकासन

इस आसन को करने के लिये अपने नेतृत्व में एक छोटा सा दल होना चाहिये जो स्वयं के दम पर कभी भी सत्ता प्राप्त नहीं कर सकता तथा किसी सत्ताधारी दल के साथ गठबंधन में हो।
विधि: मंडूक अर्थात् मेंढक की तरह मौका पाकर जारी गठबंधन के दुबारा सत्ता में न आ पाने की आशंका को देखते हुए किसी नये गठबंधन के पाले में संपूर्ण दल सहित कूद जाईये। इस आसन को करने का उचित समय चुनाव पूर्व है, परंतु चुनाव परिणामों पश्चात् सत्ताप्रप्ति के लिये लालायित लांछन के साथ भी  इसे किया जा सकता है।
लाभ: हमेशा सत्ता में बने रहने का लाभ मिलता है। देखा गया है कि बिहार प्रांत का एक दल इस आसन को करते-करते पिछली कईं सरकारों में लगातार सत्ता का लाभ पा रहा है।

गिरगिटासन
यह अकेले किया जाने वाला और सदाबहार 
आसन है। इस आसन के मुख्य रुप से दो भाग हैं।

विधि: पहले भाग के अनुसार आप सत्ता में हो या  विपक्ष में, एक सार्वजनिक विवादास्पद बयान दीजिए। कुछ घंटो का इंतजार कीजिए। साँसे रोके रखने की आवश्यकता नहीं । अपने दैनंदिन कार्य करते रहें। मीडिया में बयान पर बवाल उठने के बाद इसका दुसरा भाग शुरु करें। अब कुछ मीडियावालों को एकत्रित करें और ‘‘अपने पिछले बयान का विपरित अर्थ निकाला गया है और कहने का आशय वैसा नहीं था’’  ऐसा एक नया बयान जारी करें। सारा विवाद समय के साथ विस्मृति में चला जायेगा।
लाभ: कुछ समय चर्चा में बने रहने के लिये यह अत्यंत उपयुक्त आसन है। इसे समय-समय पर दोहराते रहने से आप भली प्रकार से अभ्यस्त हो जाएंगे और हमेशा चर्चा में रहेंगे। आजकल यह आसन बड़ा लोकप्रिय है मंत्री, सांसद, मुख्य मंत्री भी इसका भरपूर अभ्यास कर रहे हैं।

अचलमहिषासन 
गिरगिटासन के ठीक विरुद्ध यह आसन है। 
इस आसन को करने की मुख्य शर्त यह है कि आप सरकार में कैबिनेट स्तर के मंत्री हों और सरकार का पूर्ण समर्थन आपके पास हो।

विधि : अपने विभाग को लेकर कोई नीति या बिल सदन के पटल पर रखें। बिल चाहे लाख अच्छा हो, विपक्ष अपनी विशेष जवाबदारी और आदत के तहत इसका विरोध अवश्य करेगा। जिस प्रकार रास्ते में खड़ी भैंस अपनी जगह से टस से मस नहीं होती, उसी प्रकार विपक्ष के विरोध से टस से मस न होकर बिल को पास करवाये, चाहे अध्यादेश का सहारा ही क्यो न लेना पड़े।

आसनस्थ निद्रासन 
यह सदन में बैठकर किया जाने वाला आसन है 
एवं अकेले भी किया जा सकता है या समूह में भी। लंबी बहस चल रही हो तो ऐसा मौका इस आसन के लिये अत्यंत उपयुक्त समय है। 

विधि : बहसकर्ता के ठीक पीछेवाली कुर्सी पर बैठ जाएं। आँखे मूँदकर बहस ध्यानपूर्वक सुन रहे हो ऐसा स्वांग भरें। कुछ ही देर में आप निद्रासन में आ जाएंगे। नींद के झोंकों के कारण आगे-पीछे हिचकोले लेती आपकी गरदन, आपका बहस के मुद्दों के समर्थन का आभास कराते रहेंगे।
लाभ: बहसकर्ता के ठीक पीछे होने से टीवी चैनल पर लगातार दिखते रहेंगे । यदि नींद में होने पर पकड़ा भी जाएंगे तो नींदवाले शॉटस् चैनल और सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बनेंगे, लोकप्रियता में वृद्धि होगी। अच्छी नींद लेने से सेहत में भी सुधार होगा।

विपरितपक्षताड़ासन  
यह आसन सत्ता पक्ष अथवा विपक्ष दोनों के 
करने योग्य है, बल्कि यों कहें कि दोनों पक्षों की उपस्थिति इस आसन के लिये अनिवार्य है। ताड़ के वृक्ष के समान तन के खड़े रहने वाले एक पुरातन आसन से इसका कोई लेना-देना नहीं है, अपितु करतल-कपोल संगम ध्वनि अर्थात तमाचे की ताड्-ताड् आवाज से इसका निकट संबंध है। 

विधि : किसी भी सार्थक या निरर्थक एक मुद्दे को विरोध हेतु चुन ले। धीरे-धीरे विरोध की तीव्रता बढ़ाते जाएं। इसके बावजूद विरोधी पक्ष पर इसका असर न पड़े तो सदन के बीचों बीच आकर नारेबाजी उपयोगी साबित होगी। विपक्षी सदस्यों के उत्तेजित होने तक यह क्रिया चलने दें। कुछ ही समय पश्चात् धक्कामुक्की और हाथापाई की स्थिति बन जाती है। तमाचों की ताड्-ताड् ध्वनि गूंजने तक आसन को जारी रखें। आसन को और लंबा खींचने पर टेबल-कुर्सियाँ, माईक आदि के टूटने से बड़ी मात्रा में ताड्-ताड् ध्वनि का उत्सर्जन होता है। 
लाभ : आसन में प्रमुख पात्र हो और सिर फुटव्वल में रक्त बहे तो अस्पताल में जाने का योग बनता है, अतिरिक्त खून के बह जाने से रक्त दाब में कमी आती है। अस्पताल में हालचाल पूछने के लिये आने वाले वरिष्ठ नेताओं से घनिष्ठता में वृद्धि होती है ।

कामरोको आसन  
विपरितपक्षताडासन के समान किंतु उससे 
प्रकृति में सौम्य यह आसन है। 

विधि: जिस भी किसी दिन काम करने का मूड न बने, उचित-अनुचित कारण खोज कर सदन का बहिर्गमन करने से यह आसन पूर्ण होता है । इसे करने के लिये संपूर्ण दल की आवश्यकता होती है।
लाभ : सजग एवं जनहितैषी विपक्ष होने का प्रमाण-पत्र मिलता है।

अभूतपूर्वएकतासन

यह आसन करने का मौका कई वर्षों के अंतराल 
में आता है। इस आसन को करते समय पक्ष-विपक्ष में अभूतपूर्व एकता परिचय मिलता है।

विधि : सदस्यों का वेतन और भत्ते तथा सुविधाएं बढ़ाने का प्रस्ताव रखें। सारे सदस्य प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए करतल एवं हर्ष ध्वनि करें।
लाभ : आर्थिक लाभ के साथ-साथ पक्ष-विपक्ष में अभूतपूर्व सहयोग की भावना का विकास होता है।

इन उपरोक्त आसनों के अतिरिक्त अंतरात्मा की 
आवाज, खंडनासन, मिथ्याआरोपासन, जाँच आयोग गठनासन, पृष्ठभाग-लत्ताप्रहारासन, आलिंगनासन, आँखमिचकासन आदि अनेक आसनों का भी अनुक्रमणिका के पृष्ठ पर दिये अनुसार इस पुस्तक में समावेश किया गया है। लेकिन हमारे स्टिंगमास्टर के हाथ वह पन्ने नहीं लगे, सो इतने ही आसनों पर आपको संतोष करना होगा।

धन्यवाद!

- राजयोगानन्द 
(विवेक भावसार).