Saturday, June 27, 2020

बारात


लॉकडाउन में इस बार सबसे बड़ी कमी सबने महसूस की वह थी शादियाँ। शादी या विवाह एक ऐसा प्रसंग होता है जिसमें व्यापार-व्यवसाय के लगभग हर क्षेत्र से कुछ न कुछ काम पड़ता ही है। पत्रिकाएं छापने के लिए कागज, छपाईवाले से लेकर, कोरियर, कपड़े, दर्जी, ज्वेलर्स, किराना, टेंट, मैरेज गार्डन, ट्रांसपोर्टर, फोटोग्राफर, फोटोलैब, पूजा का सामान, मटके, हार-फूल, पंडितजी, ब्यूटी पार्लर, बैंडबाजा, घोड़ीवाला, गैस बत्ती, कैटरर आदि-आदि न जाने कितने लोगों का इस प्रसंग से जुड़ाव होता है।
शादियों के मौसम में कभी न कभी आपको भी सड़क पर देर शाम या रात में किसी बारात से सामना करना पड़ा होगा, जब इसकी वजह से ट्रैफिक जाम हुआ होगा और उसमें स्वयं को फँसा पाया होगा। शादियों के दिनों में शाम को काम से वापिस घर लौटते हुए अनेक बार मैं इस स्थिति से सामना कर चुका हूँ।
विवाह की रस्मों में से एक प्रमुख रस्म है- बारात निकालना! इसके निकलने की घोषणा विवाह से भी बहुत पहले आमंत्रण कार्ड में हो जाती है- "बारात अलानी जगह से फलानी जगह के लिए 'ठीक' अमुक बजे निकलेगी।" (आमंत्रण कार्ड में इस सूचना को लिखने की जगह भी निश्चित होती है ठीक उसी तरह जैसे एक पुस्तक के पन्ने पर फुट-नोट की जगह तय होती है।) अनुभवी लोगों को पता होता है कि यह ठीक समय क्या होता है, इसलिए ऐसे लोग बारात में शामिल होने के लिये बिल्कुल 'ठीक' समय पर पहुँचते हैं यानी निर्देशित ठीक समय के 'ठीक' एक-डेढ़ घण्टे बाद। तब तक बारात के लिए सारे आवश्यक तत्व इकठ्ठा होने शुरू हो जाते हैं, जिनका वर्णन आगे है। (बारात यदि बस आदि से दूसरे शहर जाने वाली हो तो इसमें शामिल किये जाने वाले बहुत ही खास लोग होते हैं। इसमें शामिल होने के आमंत्रण से पता चलता है कि उस परिवार के लिये आप महत्वपूर्ण है या नहीं।)
आमंत्रण कार्ड पर निर्देशित बेला पर विवाह स्थल के लिए निकलने के लिये तैयार एक बारात के लिए बहुत से तत्व आवश्यक होते हैं जिसमें प्रमुख हैं-
*एक सवारी वाली घोड़ी, यह उपलब्ध न हो तो कार
*एक बैंड, ये उपलब्ध न हो तो DJ से सजी गाड़ी
*अलग से एक ढोल वाला
*बाराती (जिनमें शामिल होते हैं परिवारजन और रिश्तेदार)
*बारात के दौरान ट्रैफिक सम्भालने के लिए बुजुर्ग और अन्य स्वयंसेवक
*बारात में नाचने के लिए फुल टुन्न दूल्हे की मित्र मंडली...
*और इन सबसे महत्वपूर्ण... एक दूल्हा, जिसकी शादी होने वाली है।
घोड़ी और बैंड वाले तो ईमानदारी से अपने नियत समय पर पहुँच जाते हैं। फिर धीरे-धीरे घर के लोग तैयार-शैयार हो कर एक-एक कर आने लगते हैं। यदि पगड़ी बाँधनेवाला बुलवाया गया हो तो वह एक-एक का सिर पकड़ उनको पगड़ी के अंदर बांधता चलता है। (यह बात अलग है कि एक जैसी पगड़ी बांधे ये बाराती किसी बारात में बैंड वालों की B टीम नजर आते हैं।) पगड़ी बंधने की क्रिया चल ही रही होती है कि बारात के अपने गन्तव्य को प्रस्थान का ठीक समय आ चुका होता है। घर के बुजुर्ग और अनुभवी व्यक्ति बैचेन हो कर जल्दी मचाने लगते हैं, क्योंकि उन्हें पता है यहाँ से जितनी देर होगी उसके अनुरूप आगे के कार्यक्रम भी देर से सम्पन्न होंगे। उनके प्रयत्नों के फलस्वरूप सारे लोग बरात के लिए तैयार होकर धीमी गति के समाचारों की तरह एक के बाद एक अपने-अपने कमरों से निकल बारात प्रस्थान स्थल पर एकत्रित होने लगते हैं। महिला बारातियों को इसमें शामिल होने में और अधिक समय लगता है, विशेष सजधज के लिए आवश्यक वेणी-गजरे की डिमांड और उन्हें पाने की आपाधापी के बाद अंततः समस्त महिला वर्ग भी अपने साज श्रृंगार के साथ अवतरित होता है।
लेकिन बारात के प्रमुख तत्व दूल्हेराजा का इंतजार अभी भी हो रहा होता है, इन्हें अक्सर देर हो जाया करती है क्योंकि इनका सूट प्रेस करके नहीं आया होता है, या जूतों की पॉलिश नहीं हुई होती है अथवा कोई सौंदर्य विषयक मामला हो सकता है। अंततः सब कुछ ठीक हो जाने के पश्चात दूल्हे राजा का अवतरण होता है। दूल्हे राजा की घुड़चढी का कार्यक्रम सम्पन्न होता है।
अप्रेल-मई माह की कड़ी गर्मी में 3 पीस सूट पहने, पसीना पोछते दूल्हे के घोड़ी पर स्थानापन्न होने के पश्चात उसके गले में हार आदि के पहनाए जाने के बाद मुँह में एक अदद पान का बीड़ा ठूँसा जाता है। हाथों में नारियल-कटार आदि थमा दी जाती है। दूल्हेराजा की सीट पर ही आगे की ओर फ्री सीट के तौर पर एक पिद्दी भी विराजमान किये जाते हैं। ये अक्सर उसके भांजे-भतीजे में से "मेरे चाचा-मामा की छादी में जलूल जलूल आना" वाली मनुहार के नीचे लिखे नामों मंटू, बंटी, अर्पण या कैवल्य आदि में से ही कोई होता है।
यदि शाम की बारात हो तो गैस बत्ती वाले भी अब आलस झटक कर खड़े हो जाते हैं। आगे बैंड, उसके बाद पुरुषों की मंडली, फिर महिला मंडल, सबसे अंत में घोड़ी पर सवार दूल्हे राजा, बारात के दोनों तरफ गैस बत्ती सिर पर ढोते मजदूर और दूल्हे के भी पीछे बत्ती वालों की अपने निराले बैंड का आवाज करती जनरेटर की गाड़ी यह क्रम पूरा करते हुए बारात चींटी की गति से चल पड़ती है।
बारात आरंभ होने पर इस रस्म का पहला रजिस्टर्ड गाना..''आज मेरे यार की शादी है".. बैंड पर बजता है। लेकिन यह गाना खत्म हो उसके पहले ही दूल्हे नृत्योत्सुक मित्र मंडली (जो बारात शुरू होने के पहले किसी को कानोकान खबर हुए बिना निकट के किसी उत्तेजक पेय की दुकान से ऊर्जावर्धक पेय के यथोचित डोस लेकर ऊर्जा से लबरेज होती है) बारात के चौराहे पर पहुँचने से पहले ही अपना नृत्य कार्यक्रम शुरू कर देती है।
यद्यपि बारात का सबसे प्रमुख कार्य दूल्हे को लेकर आगे बढ़ना होता है किन्तु इसमें व्यवधान के रूप में नृत्य का कार्यक्रम अब अतिआवश्यक अंग हो गया है। कुछ लोग विशेषकर नवयुवक - युवतियाँ बारातों में अपनी नृत्य कला प्रस्तुत करने के लिए सदैव लालायित रहते हैं। नृत्य प्रदर्शन के साथ-साथ 'किसी विशेष' पर अपना प्रभाव ज़माना, युवकों के लिए ये एक तीर में दो निशाने साधने जैसा मौका होता है।
बारात के नाच में एक खास बात ये भी होती है की आपको "नाच न आने पर भी आंगन या सड़क टेढ़ा'' जैसा कोई कॉलम नहीं होता। आप किसी भी तरह से आड़े-तिरछे हाथ पैर चलाते हुए, कमर को हिलाते मुक्त भाव से नाच सकते हैं। चतुर बैंड वाले अब इसके पश्चात एक-एक करके नृत्योपयोगी गीत बैंड पर बजाते चलते हैं ताकि अधिक से अधिक न्योछावर की राशि अपनी जेब के हवाले करते रहें। वीर जवानों के देश के ये ऊर्जा से ओतप्रोत हो चुके वीर भिन्न-भिन्न गीतों की धुन पर अपना नृत्य कौशल लगातार अर्थात नॉनस्टॉप दिखाते चलते हैं, जिसमें काला कौवा, मुंगला आदि प्राणिवाचक गीत से लेकर नागिन डांस तक का समावेश होता है।
ये वीडियो नहीं देखा तो क्या देखा' की तर्ज पर वैवाहिक नर्तकों में भी अलिखित नियम है कि अगर "नागिन धुन पर डांस नहीं किया तो क्या डांस किया ?" बारातों के डांस के इतिहास में इसे सबसे लोकप्रिय, प्राचीन और सबसे आसान डांस का सम्मान प्राप्त है। बैंड पर धुन के शुरू होते ही जेब का रुमाल बाहर निकाल कर उसका एक सिरा दांतों में दबाकर व् दूसरे सिरे को उंगलियों में बीन की तरह पकड़ कर एक नर्तक सपेरे की भूमिका में आ जाता है. (बारात में चलते समय रुमाल को खास इसी प्रयोजन से खीसे में रखा जाता है ). जिसके पास रुमाल नहीं होता उसे इस नृत्य में हथेलियों को फन जैसा आकार देते हुए जमीन पर लोट लगाते हुए बैंड पर बज रही नागिन धुन पर साँप की तरह लहराते-बल खाते हुए नागिन की भूमिका निभानी पड़ती है। इस नृत्य में सपेरे और नागिन के हावभावों और कमनीयता की जुगलबंदी विशेष दर्शनीय होती है।
इस बीच बारात में शामिल बुजुर्ग और वह युवक जिन्हें नृत्य कला दिखाने में रुचि नहीं होती, बारात के साथ हाथों में एक दूसरे के हाथ पकड़े सुरक्षा घेरे की भांति जंजीर बना चलते हुए अपनी उपयोगिता सिद्ध करने का जतन करते हैं। इनमें से कुछ लोग यातायात नियंत्रक की भूमिका भी निभाते हुए होते हैं जो बाजू से निकलने वाले वाहनों को सड़क की 80 प्रतिशत चौड़ाई को घेरी हुई बारात से दूर की ओर दबाते हुए चालकों की परेशानी में वृद्धि करते हैं।
बारात के रूट पर किसी स्थान पर बारातियों के लिए आइस्क्रीम, कोल्ड ड्रिंक आदि श्रम परिहार के साधन उपलब्ध कराए जाते हैं। बाराती रुककर इनका आनंद लेते हैं और बारात आगे बढ़ती है। उसके बाद आइस्क्रीम के कप, कोल्ड्रिंक्स के डिस्पोजेबल गिलास सड़क पर 20-20 मीटर तक इस बात की गवाही के लिए फैलाए जाते हैं कि यहाँ से कोई बारात गुजरी है।
चलते-चलते जब बैंड पर "बहारों फूल बरसाओ" बजता है तब चतुर सुजान समझ जाते हैं कि बारात अपने गंतव्य स्थल पर पहुँच चुकी है। आधा घंटा यहाँ नृत्य का अंतिम एपिसोड होने के बाद दूल्हे द्वारा तोरण मारने की रस्म, बारात का स्वागत आदि होने के बाद बारात का यह प्रमुख कार्यक्रम समाप्त हो जाता है।

Sunday, June 14, 2020

बुरी नजर वाले तेरा मुँह काला

ट्रकों की भी अपनी ही एक दुनिया है और इस दुनिया एक महत्वपूर्ण अंग है इन पर लिखे स्लोगन। बल्कि ट्रक बनते ही इसीलिए होंगे कि इनपर स्लोगन्स-शायरी लिखे जाएं । भारत मे अगर किसी ट्रक पर स्लोगन नहीं लिखा हो तो शायद आरटीओ वाले इनको परमिट न देते होंगे। बिना नारा, स्लोगन, शायरी लिखा ट्रक मिले तो पुलिस चालान बना देती है, यह डर संभवतः ट्रक वालों में समाया होगा। कितने ही जनोपयोगी स्लोगन इस माध्यम से जन जन तक पहुंचे हैं यह आप अच्छी तरह जानते हैं। इसमें से एक स्लोगन Keep Distance आजकल के माहौल को देखते हुए अत्यंत उपयोगी है।

एक बार एक भारतीय ड्राइवर भाई को विदेश में ट्रक ड्राइवर की नौकरी लग गई। ड्यूटी जॉइन कर जैसे ही ट्रक तक पहुंचा, तो देखा ट्रक पर एक भी स्लोगन नहीं दिखा। सूनी-सूनी, खाली पड़ी ट्रक की बॉडी को देख उसे लगा यह तो किसी विधवा की भांति लग रही है जिसने अपने सारे साजश्रृंगार उतार कर रख दिये हों। भाई का मन खट्टा हो गया, कोई स्लोगन लिखवाने को दिल मचलने लगा। विदेश में हिंदी स्लोगन क्या काम के?...सो भाई ने अपने दोस्त को कुछ अंग्रेजी स्लोगन भेजने को बोला, ताकि उन्हें ट्रक पर लिखवा सके। दोस्त भी काम पर लग गया, लेकिन उसके पास कोई अंग्रेजी स्लोगन तो थे नहीं। उसने कुछ मशहूर हिंदी स्लोगन और शायरी को अंग्रेजी में बदल डाला और ये कारनामा कर दिखाया।
आप भी गौर फरमाइए...

- निक्कू ते पिक्कू ते चिंकी दी गड्डी
* Nikku & Pikku's Chinki's Vehicle.

- सावन को आने दो
*Let the Sawan come.

- आया सावन झूम के
* Sawan come by swinging.

- पापा घर जल्दी आना मम्मी याद करती है
*Dad come home fast, mom is remembering.

- टाटा407 से जोर का झटका धीरे से लगे
* Tata 407 high shock gets slowly.
 
- जगह मिलने पर साइड दी जाएगी
* Side will be given after finding space.

- बुरी नजर लगाएगा ते जुतिया खायेगा
* Who stares badly will eat shoes.

- अगर आप लेट हो रहे हो तो यह आपकी गलती है
*If you're getting late, it's your fault.

- या तो अंईया ही चालेगी
* It will walk here only like this.

- चलती है गाडी उडती है धूल
  जलते हैं चमचे खिलते हैं फूल
* Walks the vehicle flies the dust
   Burns the spoons, blooms the Fools.

- बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला।
*Bastard who having bad eyes your face will be black

- मालिक की मेहनत ड्राईवर का पसीना!
चलती है सड़क पर बनकर के हसीना!
* Owners hard work drivers sweat
Walks on road being beautifullest.

- 7 के फूल , 13 की माला ,
बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला
*7's flowers, 13's garland
Bad eyes owner 13 faces are black.

- बच्चे दो ही अच्छे
* Children are two good.

- सोनू, मोनू, रीतू, टीटू, हेमू दी गड्डी
*This vehicle owned by Sonu, Monu, ritu, teetu and hemu.

-आई तुझा आशीर्वाद
*mom your blessings.

OK.... TATA.... Horn (👍) Please 


धोबी का कुत्ता



एक धोबी हुआ करता था। जैसा कि उसका काम था, घर-घर से लोगों के धुलने लायक कपड़े इकठ्ठा करता, धोबीघाट पर जा कर धो लिया करता और सुखाकर वापिस उनके घर दे आता।

इसी तरह वह कभी खुद के कपड़े भी इन कपड़ों के साथ धो लिया करता था। एक बार उसका कुर्ता बहुत ज्यादा मैला हो गया था। उसने सोचा आज बाकी कपड़ों के साथ इस कुर्ते को भी धो डालूंगा, परंतु अपने काम की धुन में वह ये भूल गया कि अपना पहना हुआ कुर्ता भी धोना है। धोबीघाट से जब सारे धुले हुए कपड़े समेट कर वह घर चलने को हुआ, तब यह बात उसे ध्यान आई। उसने सोचा, "कोई बात नहीं, कुर्ता घर चल कर धो लेंगे"

किन्तु घर पहुंच कर देखा तो कुर्ता धोने पुरता पानी ही नहीं बचा था, और तो और घर में बिजली नहीं थी, वो अलग समस्या थी। आखिर उस दिन उसका कुर्ता बिना धुला ही रह गया ...और तभी से यह कहावत चल पड़ी, 

"धोबी का कुर्ता, न घर का.. न घाट का"

लेकिन कहते-कहते लोग इसमें 'कुर्ता' की जगह 'कुत्ता' कहने लगे। क्या आपने कभी देखा है कि धोबी कुत्ता ले कर जा रहा हो? अलबत्ता धोबी का एक गधा जरूर हुआ करता था जो अपने ऊपर कपड़े लाद के धोबीघाट तक आता-जाता था! कहना ही था तो ये कहते,
"धोबी का गधा, न घर का न घाट का!"

- कहावतानन्द!

Friday, June 12, 2020

फेसबुक लाईव

फेसबुक लाईव



हैलो... हैलो, आवाज आ रही है मेरी?
नहीं... आवाज नहीं आएगी...
यहाँ मेरा टाइप किया हुआ मैटर दिख रहा है ना?...
पढ़ने में तो सही आ रहा है?...
दिख रहा क्लियर?..
न दिख रहा हो तो चश्मा लगा लीजिए और अगर लगा हुआ हो तो एक बार अच्छी तरह पोंछ के दुबारा लगा लीजिए।
हाँ... तो शुरू करते हैं....

फेसबुक लाईव

****************

लॉकडाउन के चलते घर में बैठे अनेक लोग फुर्सत में हो गए थे। इसी वजह से फेसबुक पर लाइव आने का भी चलन एकाएक बढ़ गया। कोई कविताएं सुना रहे थे, कोई गीत गा रहे थे, किसी ने कहानियां सुनाई तो कोई कोरोना पर जानकारियां दे रहे थे, तो कोई विशेषज्ञ अपने विशेष विषय लेकर चर्चारत थे।
लेकिन फेसबुक पर लाइव आना बड़ा झंझट का काम है। यदि आप फेसबुक लाइव आना चाहते हैं, तो जान लेते हैं उसके लिए क्या-क्या खटकरम करने होंगे। यहाँ उसका पूरे विधि विधान सहित वर्णन किया जा रहा है। यदि इस विधि से फेसबुक लाइव व्रत किया जाए तो सफलता अवश्य ही आपके कदम चूमेगी, किन्तु उसके पहले अपने पैर अच्छी तरह धो लीजिए, अन्यथा सफलता बिदक सकती है।
फेसबुक लाइव व्रत करने के लिए आपको निम्न तैयारियां करनी है। सबसे पहले घर का एक बढ़िया कमरा देखिए जिसमें फैला हुआ कोई पसारा न नजर आए, दीवार पर मकड़ी के जाले, दाग धब्बे न दिखें, दीवार बढ़िया साफ पुती हुई या अच्छे पर्दे से ढँकी हुई हो... और जहाँ नेट के सिग्नल फुल फ्लैश आते हों। इस तरह की लोकेशन मिलने के बाद उस दीवार पर पीछे की ओर सुंदर पेंटिंग या कोई गुलदान या महापुरुष की प्रतिमा फिट कीजिए।
ये तो लाइव का बैकग्राउण्ड तैयार हुआ।.... इतना सब झमेला करने के बाद खुद पर ध्यान देना आवश्यक है... व्यवस्थित केश सज्जा, शेविंग कर लीजिए ताकि आपकी अच्छी छवि लाइव पर दिखे। अब चाहिए एक अच्छी वेशभूषा... पहनने के लिए एक बढ़िया सा शर्ट या कमीज छाँट लीजिये। नीचे कुछ न पहना तो भी चलेगा, ( कुछ न अर्थात पैंट आदि से मतलब है। नीचे पजामा, बरमूडा से भी काम चल सकता है क्योंकि यह लाइव की फ्रेम में वह नहीं दिखनेवाला है) यह सब तामझाम दिखने के लिए पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था और मोबाइल को स्थिर रखने की व्यवस्था कर लीजिए। साथ में इसका भी ध्यान रखे कि लाइव में आपके बच्चे या श्रीमतीजी पीछे से, आजू-बाजू से आते-जाते न नजर आए, बड़ा खराब लगता है।
इन सब प्रारम्भिक व्यवस्थाओं से आश्वस्त होने के बाद लाइव आने के एक-दो दिन पहले फेसबुक पर समय और विषय की सूचना के साथ लाइव आने की घोषणा कर दीजिये, ताकि अधिक से अधिक लोग आपसे तय समय पर जुड़ सकें। समय का चुनाव भी बड़ी होशियारी से करें ताकि उस समय तक आपके सारे श्रोता मित्र बर्तन-कपड़े-झाड़ू-पोंछा अर्थात गृहकार्य आदि से निवृत्त हो एकचित्त हो आपका लाइव आना एन्जॉय कर सकें।
करते-करते वह दिन और समय आ खड़ा हो जाएगा। लाइव शुरू हो जाएगा। शुरू के पाँच मिनट आरम्भ से हाजिर आठ-दस लोगों से यही पूछने और आश्वस्त होने में निकालिए कि,
"मेरी आवाज आ रही आपको?"
" क्या चेहरा ठीक दिख रहा है?,
अंधेरा तो नही लग रहा??" आदि आदि।
इन सबके बाद कछुए की चाल से एक के बाद एक लोग जुड़ते जाएंगे। कमेंट में मिलने वाले नमस्कार आदि का मुस्कुराहट के साथ प्रत्युत्तर देना शुरू कर दीजिए, उनके नाम पढ़ते जाइये। ऐसा करने से वह श्रोता खुश हो जाता है कि आपने व्यक्तिगत रूपसे उन पर ध्यान दिया है।
"कुछ और लोग आ जाएं तो शुरू करते हैं..."
घोषणा करें।
पाँच-सात मिनट और राह देखने के बाद वास्तविक लाइव शुरू करने समय आ गया है। विषय की भूमिका बनाने के बाद बाजू रखे कागज पर बिंदुवार लिखे मुद्दों को देखते हुए चर्चा आगे बढाते चलें। इस बीच कमेंट में आते प्रश्नों के जवाब, देर से आने वालों से नमस्कार चमत्कार करते रहें । इसी तरह धीरे धीरे चर्चा अपनी पूर्णता की ओर ले जाएं, कमेंट्स में प्राप्त प्रश्नों के उत्तर के लिए एवं आगामी चर्चा के लिए पुनः उपस्थित होने की घोषणा के साथ लाइव समाप्त करें और एक सफल लाइव पूर्ण करने पर चैन की सांस लें। बाद में आने वाले बधाईयों के फोन कॉल्स एवं कमेन्ट्स का जवाब देने के लिए अपने आप को तैयार करें ।
इस तरह एक फेसबुक लाइव व्रत सफल किया जाता है।
सचमुच, बड़े झंझट है लाइव आने में। फिर भी इस हेतु मैंने सारी तैयारी कर रखी थी, जैसा कि आप चित्र में देख रहे हैं, मेरे असिस्टेन्ट भी उपलब्ध साधनों से मेरे इस लाइव की प्रकाश व्यवस्था संभालने के लिए जी जान से जुटे हुए थे। किंतु हाय री किस्मत... बिजली को भी इसी समय जाना था। नेट के सिग्नल मिलना बंद हो गए, मोबाइल की बैटरी भी चार्ज नहीं है। सारी तैयारी धरी रह गई। मैं भी कैसा अनाड़ी, औरों को तैयारी को लेकर सिखा रहा हूँ और खुद ही फिसड्डी साबित हो गया। इसीलिए अब मैंने बहुत सोच समझ कर लाइव आने का इरादा त्याग दिया है और उसकी जगह यह पोस्ट लिख डाली है।
एक राज़ की बात यह भी थी कि मेरे पास लाइव करने लायक कोई विषय ही न था और उससे बड़ी बात, न तो मैं देखने में आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक हूँ और न ही मेरा स्वर और वक्तृत्वकला इतने प्रभावशाली है कि कोई लाइव सफल करा पाऊँ! इसलिये इस पोस्ट को ही मेरा फेसबुक लाइव समझ कर संतोष कर लीजिए।
धन्यवाद!
- लाइवानन्द!