Sunday, June 14, 2020

धोबी का कुत्ता



एक धोबी हुआ करता था। जैसा कि उसका काम था, घर-घर से लोगों के धुलने लायक कपड़े इकठ्ठा करता, धोबीघाट पर जा कर धो लिया करता और सुखाकर वापिस उनके घर दे आता।

इसी तरह वह कभी खुद के कपड़े भी इन कपड़ों के साथ धो लिया करता था। एक बार उसका कुर्ता बहुत ज्यादा मैला हो गया था। उसने सोचा आज बाकी कपड़ों के साथ इस कुर्ते को भी धो डालूंगा, परंतु अपने काम की धुन में वह ये भूल गया कि अपना पहना हुआ कुर्ता भी धोना है। धोबीघाट से जब सारे धुले हुए कपड़े समेट कर वह घर चलने को हुआ, तब यह बात उसे ध्यान आई। उसने सोचा, "कोई बात नहीं, कुर्ता घर चल कर धो लेंगे"

किन्तु घर पहुंच कर देखा तो कुर्ता धोने पुरता पानी ही नहीं बचा था, और तो और घर में बिजली नहीं थी, वो अलग समस्या थी। आखिर उस दिन उसका कुर्ता बिना धुला ही रह गया ...और तभी से यह कहावत चल पड़ी, 

"धोबी का कुर्ता, न घर का.. न घाट का"

लेकिन कहते-कहते लोग इसमें 'कुर्ता' की जगह 'कुत्ता' कहने लगे। क्या आपने कभी देखा है कि धोबी कुत्ता ले कर जा रहा हो? अलबत्ता धोबी का एक गधा जरूर हुआ करता था जो अपने ऊपर कपड़े लाद के धोबीघाट तक आता-जाता था! कहना ही था तो ये कहते,
"धोबी का गधा, न घर का न घाट का!"

- कहावतानन्द!

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