Saturday, June 27, 2020

बारात


लॉकडाउन में इस बार सबसे बड़ी कमी सबने महसूस की वह थी शादियाँ। शादी या विवाह एक ऐसा प्रसंग होता है जिसमें व्यापार-व्यवसाय के लगभग हर क्षेत्र से कुछ न कुछ काम पड़ता ही है। पत्रिकाएं छापने के लिए कागज, छपाईवाले से लेकर, कोरियर, कपड़े, दर्जी, ज्वेलर्स, किराना, टेंट, मैरेज गार्डन, ट्रांसपोर्टर, फोटोग्राफर, फोटोलैब, पूजा का सामान, मटके, हार-फूल, पंडितजी, ब्यूटी पार्लर, बैंडबाजा, घोड़ीवाला, गैस बत्ती, कैटरर आदि-आदि न जाने कितने लोगों का इस प्रसंग से जुड़ाव होता है।
शादियों के मौसम में कभी न कभी आपको भी सड़क पर देर शाम या रात में किसी बारात से सामना करना पड़ा होगा, जब इसकी वजह से ट्रैफिक जाम हुआ होगा और उसमें स्वयं को फँसा पाया होगा। शादियों के दिनों में शाम को काम से वापिस घर लौटते हुए अनेक बार मैं इस स्थिति से सामना कर चुका हूँ।
विवाह की रस्मों में से एक प्रमुख रस्म है- बारात निकालना! इसके निकलने की घोषणा विवाह से भी बहुत पहले आमंत्रण कार्ड में हो जाती है- "बारात अलानी जगह से फलानी जगह के लिए 'ठीक' अमुक बजे निकलेगी।" (आमंत्रण कार्ड में इस सूचना को लिखने की जगह भी निश्चित होती है ठीक उसी तरह जैसे एक पुस्तक के पन्ने पर फुट-नोट की जगह तय होती है।) अनुभवी लोगों को पता होता है कि यह ठीक समय क्या होता है, इसलिए ऐसे लोग बारात में शामिल होने के लिये बिल्कुल 'ठीक' समय पर पहुँचते हैं यानी निर्देशित ठीक समय के 'ठीक' एक-डेढ़ घण्टे बाद। तब तक बारात के लिए सारे आवश्यक तत्व इकठ्ठा होने शुरू हो जाते हैं, जिनका वर्णन आगे है। (बारात यदि बस आदि से दूसरे शहर जाने वाली हो तो इसमें शामिल किये जाने वाले बहुत ही खास लोग होते हैं। इसमें शामिल होने के आमंत्रण से पता चलता है कि उस परिवार के लिये आप महत्वपूर्ण है या नहीं।)
आमंत्रण कार्ड पर निर्देशित बेला पर विवाह स्थल के लिए निकलने के लिये तैयार एक बारात के लिए बहुत से तत्व आवश्यक होते हैं जिसमें प्रमुख हैं-
*एक सवारी वाली घोड़ी, यह उपलब्ध न हो तो कार
*एक बैंड, ये उपलब्ध न हो तो DJ से सजी गाड़ी
*अलग से एक ढोल वाला
*बाराती (जिनमें शामिल होते हैं परिवारजन और रिश्तेदार)
*बारात के दौरान ट्रैफिक सम्भालने के लिए बुजुर्ग और अन्य स्वयंसेवक
*बारात में नाचने के लिए फुल टुन्न दूल्हे की मित्र मंडली...
*और इन सबसे महत्वपूर्ण... एक दूल्हा, जिसकी शादी होने वाली है।
घोड़ी और बैंड वाले तो ईमानदारी से अपने नियत समय पर पहुँच जाते हैं। फिर धीरे-धीरे घर के लोग तैयार-शैयार हो कर एक-एक कर आने लगते हैं। यदि पगड़ी बाँधनेवाला बुलवाया गया हो तो वह एक-एक का सिर पकड़ उनको पगड़ी के अंदर बांधता चलता है। (यह बात अलग है कि एक जैसी पगड़ी बांधे ये बाराती किसी बारात में बैंड वालों की B टीम नजर आते हैं।) पगड़ी बंधने की क्रिया चल ही रही होती है कि बारात के अपने गन्तव्य को प्रस्थान का ठीक समय आ चुका होता है। घर के बुजुर्ग और अनुभवी व्यक्ति बैचेन हो कर जल्दी मचाने लगते हैं, क्योंकि उन्हें पता है यहाँ से जितनी देर होगी उसके अनुरूप आगे के कार्यक्रम भी देर से सम्पन्न होंगे। उनके प्रयत्नों के फलस्वरूप सारे लोग बरात के लिए तैयार होकर धीमी गति के समाचारों की तरह एक के बाद एक अपने-अपने कमरों से निकल बारात प्रस्थान स्थल पर एकत्रित होने लगते हैं। महिला बारातियों को इसमें शामिल होने में और अधिक समय लगता है, विशेष सजधज के लिए आवश्यक वेणी-गजरे की डिमांड और उन्हें पाने की आपाधापी के बाद अंततः समस्त महिला वर्ग भी अपने साज श्रृंगार के साथ अवतरित होता है।
लेकिन बारात के प्रमुख तत्व दूल्हेराजा का इंतजार अभी भी हो रहा होता है, इन्हें अक्सर देर हो जाया करती है क्योंकि इनका सूट प्रेस करके नहीं आया होता है, या जूतों की पॉलिश नहीं हुई होती है अथवा कोई सौंदर्य विषयक मामला हो सकता है। अंततः सब कुछ ठीक हो जाने के पश्चात दूल्हे राजा का अवतरण होता है। दूल्हे राजा की घुड़चढी का कार्यक्रम सम्पन्न होता है।
अप्रेल-मई माह की कड़ी गर्मी में 3 पीस सूट पहने, पसीना पोछते दूल्हे के घोड़ी पर स्थानापन्न होने के पश्चात उसके गले में हार आदि के पहनाए जाने के बाद मुँह में एक अदद पान का बीड़ा ठूँसा जाता है। हाथों में नारियल-कटार आदि थमा दी जाती है। दूल्हेराजा की सीट पर ही आगे की ओर फ्री सीट के तौर पर एक पिद्दी भी विराजमान किये जाते हैं। ये अक्सर उसके भांजे-भतीजे में से "मेरे चाचा-मामा की छादी में जलूल जलूल आना" वाली मनुहार के नीचे लिखे नामों मंटू, बंटी, अर्पण या कैवल्य आदि में से ही कोई होता है।
यदि शाम की बारात हो तो गैस बत्ती वाले भी अब आलस झटक कर खड़े हो जाते हैं। आगे बैंड, उसके बाद पुरुषों की मंडली, फिर महिला मंडल, सबसे अंत में घोड़ी पर सवार दूल्हे राजा, बारात के दोनों तरफ गैस बत्ती सिर पर ढोते मजदूर और दूल्हे के भी पीछे बत्ती वालों की अपने निराले बैंड का आवाज करती जनरेटर की गाड़ी यह क्रम पूरा करते हुए बारात चींटी की गति से चल पड़ती है।
बारात आरंभ होने पर इस रस्म का पहला रजिस्टर्ड गाना..''आज मेरे यार की शादी है".. बैंड पर बजता है। लेकिन यह गाना खत्म हो उसके पहले ही दूल्हे नृत्योत्सुक मित्र मंडली (जो बारात शुरू होने के पहले किसी को कानोकान खबर हुए बिना निकट के किसी उत्तेजक पेय की दुकान से ऊर्जावर्धक पेय के यथोचित डोस लेकर ऊर्जा से लबरेज होती है) बारात के चौराहे पर पहुँचने से पहले ही अपना नृत्य कार्यक्रम शुरू कर देती है।
यद्यपि बारात का सबसे प्रमुख कार्य दूल्हे को लेकर आगे बढ़ना होता है किन्तु इसमें व्यवधान के रूप में नृत्य का कार्यक्रम अब अतिआवश्यक अंग हो गया है। कुछ लोग विशेषकर नवयुवक - युवतियाँ बारातों में अपनी नृत्य कला प्रस्तुत करने के लिए सदैव लालायित रहते हैं। नृत्य प्रदर्शन के साथ-साथ 'किसी विशेष' पर अपना प्रभाव ज़माना, युवकों के लिए ये एक तीर में दो निशाने साधने जैसा मौका होता है।
बारात के नाच में एक खास बात ये भी होती है की आपको "नाच न आने पर भी आंगन या सड़क टेढ़ा'' जैसा कोई कॉलम नहीं होता। आप किसी भी तरह से आड़े-तिरछे हाथ पैर चलाते हुए, कमर को हिलाते मुक्त भाव से नाच सकते हैं। चतुर बैंड वाले अब इसके पश्चात एक-एक करके नृत्योपयोगी गीत बैंड पर बजाते चलते हैं ताकि अधिक से अधिक न्योछावर की राशि अपनी जेब के हवाले करते रहें। वीर जवानों के देश के ये ऊर्जा से ओतप्रोत हो चुके वीर भिन्न-भिन्न गीतों की धुन पर अपना नृत्य कौशल लगातार अर्थात नॉनस्टॉप दिखाते चलते हैं, जिसमें काला कौवा, मुंगला आदि प्राणिवाचक गीत से लेकर नागिन डांस तक का समावेश होता है।
ये वीडियो नहीं देखा तो क्या देखा' की तर्ज पर वैवाहिक नर्तकों में भी अलिखित नियम है कि अगर "नागिन धुन पर डांस नहीं किया तो क्या डांस किया ?" बारातों के डांस के इतिहास में इसे सबसे लोकप्रिय, प्राचीन और सबसे आसान डांस का सम्मान प्राप्त है। बैंड पर धुन के शुरू होते ही जेब का रुमाल बाहर निकाल कर उसका एक सिरा दांतों में दबाकर व् दूसरे सिरे को उंगलियों में बीन की तरह पकड़ कर एक नर्तक सपेरे की भूमिका में आ जाता है. (बारात में चलते समय रुमाल को खास इसी प्रयोजन से खीसे में रखा जाता है ). जिसके पास रुमाल नहीं होता उसे इस नृत्य में हथेलियों को फन जैसा आकार देते हुए जमीन पर लोट लगाते हुए बैंड पर बज रही नागिन धुन पर साँप की तरह लहराते-बल खाते हुए नागिन की भूमिका निभानी पड़ती है। इस नृत्य में सपेरे और नागिन के हावभावों और कमनीयता की जुगलबंदी विशेष दर्शनीय होती है।
इस बीच बारात में शामिल बुजुर्ग और वह युवक जिन्हें नृत्य कला दिखाने में रुचि नहीं होती, बारात के साथ हाथों में एक दूसरे के हाथ पकड़े सुरक्षा घेरे की भांति जंजीर बना चलते हुए अपनी उपयोगिता सिद्ध करने का जतन करते हैं। इनमें से कुछ लोग यातायात नियंत्रक की भूमिका भी निभाते हुए होते हैं जो बाजू से निकलने वाले वाहनों को सड़क की 80 प्रतिशत चौड़ाई को घेरी हुई बारात से दूर की ओर दबाते हुए चालकों की परेशानी में वृद्धि करते हैं।
बारात के रूट पर किसी स्थान पर बारातियों के लिए आइस्क्रीम, कोल्ड ड्रिंक आदि श्रम परिहार के साधन उपलब्ध कराए जाते हैं। बाराती रुककर इनका आनंद लेते हैं और बारात आगे बढ़ती है। उसके बाद आइस्क्रीम के कप, कोल्ड्रिंक्स के डिस्पोजेबल गिलास सड़क पर 20-20 मीटर तक इस बात की गवाही के लिए फैलाए जाते हैं कि यहाँ से कोई बारात गुजरी है।
चलते-चलते जब बैंड पर "बहारों फूल बरसाओ" बजता है तब चतुर सुजान समझ जाते हैं कि बारात अपने गंतव्य स्थल पर पहुँच चुकी है। आधा घंटा यहाँ नृत्य का अंतिम एपिसोड होने के बाद दूल्हे द्वारा तोरण मारने की रस्म, बारात का स्वागत आदि होने के बाद बारात का यह प्रमुख कार्यक्रम समाप्त हो जाता है।

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