Tuesday, December 31, 2019

पहली तारीख !



जिसके जिम्मे दुनिया की बहुत सारी चीजें बदलने की जिम्मेदारी होती है, किसी भी माह का वह पहला दिन।

इसके सर महिना बदलने की सबसे प्राथमिक जिम्मेदारी होती है। और अगर यह जनवरी माह का पहला दिन हो तो इसकी जिम्मेदारी १२ गुना बढ़ जाती है, इस दिन माह के साथ-साथ पूरा साल बदल देने की जिम्मेदारी भी निभानी होती है। साल के साथ कभी-कभी शतक तो कभी सहस्त्राब्दी बदलने की महान जिम्मेदारी भी इसी जनवरी महिने की पहली तारीख के सिर पर आ पड़ती है। 

किसी निश्चय को अमल में लाने के लिए हम भी किसी पहली तारीख के ही कन्धों पर अपनी बन्दूक को रख देते हैं और अधिकांशतया यह पहली तारीख जनवरी की होती है। ये बात और है कि इस पहली तारीख को शुरू किये गए निश्चय पांच -सात तारीख तक फुर्र होकर अगली पहली तारीख के सर जाकर बैठ जाते हैं, बार-बार फुर्र होने के लिए। डायरी लिखने के शौक़ीन इस दिन नई डायरी का उदघाटन कर लेते हैं. घर में टंगा कैलेंडर बदलवाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी जनवरी की पहली तारीख पर होती है, शेष माह की पहली तारीखें केवल माह का पन्ना बदल इसका अनुसरण कर रही होती हैं. 

'खुश है जमाना आज पहली तारीख हैइस फिल्मी गाने को सार्थक करने के लिये यह पहली तारीख वेतन का दिन भी होने से नौकरीपशा लोगों की आर्थिक स्थिति तात्कालिक रूप से बदलने की आनंददायक जिम्मेदारी इसकी होती है। मासिक किराया वसूलने के लिये मकान मालिक, बिल वसूलने के लिये पेपरवाला, दूधवाला, किरानेवाला आदि लोगों का मिलन समारोह करवाने की जिम्मेदारी भी पहली तारीख पर है। ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद विद्यालय और कॉलेज चालू करना भी किसी महीने की पहली तारीख का काम है. 

जब यह तारीख अप्रैल माह में पड़ती है मूर्ख दिवस का बदनुमा दाग भी इस पहली तारीख के सर आ जाता है । इस दिन दूसरों को मूर्ख बनाने के आनंद में आदमी स्वयं कितने समय से मूर्ख बना जा रहा है ये ही भूल जाता है।

रेलवे की समयसारिणी में बदलाव लाना, टैक्स की दरें, रेल-बस किराये में बदलाव कर वृद्धि करवाना ये महत्वपूर्ण शासकीय कार्य भी इसी पहली तारीख के ही जिम्मे है।

पहले क्रमांक की तारीख होते हुए भी यह हर बार अपने पूर्व के महीने की अंतिम तारीख के पीछे ही अपना नंबर आने की प्रतीक्षा में खड़ी हुई होती है।

इस प्रकार समझा जा सकता है कि पहली तारीख बदलाव का जीवंत प्रतीक है। अगर दुनिया में पहली तारीख न होती तो सोचिये बदलाव के लिये दुनिया किस दिन का इंतजार करती ?

- व्याख्यानंद !
(
विवेक भावसार)

Monday, December 23, 2019

डायरी



लिखने के लिये हर साल के प्रारंभ में खरीदी गई और चार-पांच दिन बाद आलस्यवश छोड़ देने वाली नोटबुक।

इसके प्रत्येक पन्ने पर अंग्रेजी व हिन्दी में वार, तारीख, महिना, तिथि आदि अंकित होता है। कुछ डायरियों में प्रत्येक पृष्ठ पर एक सुविचार भी छपा हुआ होता है। लेकिन साल के अंत तक डायरी लिखने के लिये उसमें से एक भी सुविचार काम नहीं आता।

वैसे तो डायरी मुख्य रूप से उपहार में देने या पाने की वस्तु है. उपहार में देने के लिए व्यावसायिक प्रातिष्ठान बजट अनुसार सुन्दर डायरियां खरीदते हैं. लेकिन उपहार में मिली हो या खरीदी हुई हो, साल के शुरू में डायरी लिखने का संकल्प डायरी पाने वाला ले ही लेता है . डायरी लिखना वैसे तो सबका अधिकार है, लेकिन लेखकों को इसमें विशेषाधिकार प्राप्त है

सामान्य व्यक्ति जब डायरी लिखने की सोचता है तब डायरी में जनवरी की पहली तारीख को सुबह की चाय से शुरू कर रात में सोने के लिये जाने तक की हर बात नोट की जाती है। पूरे साल नियमित रूप से डायरी लिखने की प्रतिज्ञा भी पहले दिन के पन्ने पर दिखाई देती है। चार-पांच दिन बाद यही पन्ने फाड़कर बच्चों को हवाई जहाज, रॉकेट, नाव आदि बनाने के लिये दे दिये जाते है और बची हुई डायरी दूध-किराने-धोबी का हिसाब लिखने के पुण्य काम आती है या रद्दी में चली जाती है कोई ज्यादा ही सुघड़ गृहिणी हुई तो वह इसे पाककृतियाँ नोट करने में उपयोग करती हैं

डायरी को दैनिकी या दैनन्दिनी भी कहा जाता है पुलिस थाने की डायरी को रोजनामचा कहते है, वहां उसे नियमित रूप से लिखना पड़ता है प्रेमियों और शायरों की डायरी में शेर-ओ-शायरी भरी पड़ी रहती है, कुछ स्वयम की रची हुई, तो कुछ इम्प्रेशन जमाने के लिए उचित मौके पर सुनाने के लिए कहीं से नोट की हुई. डायरी में शायरी रोमांटिक है या बिरह राग में लथपथ तडपन भरी, प्रेमी की तत्कालीन अवस्था पर निर्भर करता है औरों की लिखी व्यक्तिगत डायरी पढ़ने की इच्छा रखना, मानवजाती के साक्षरता का प्रमुख लक्षण है।

यूँ तो डायरी और डायरिया का आपस में कोई संबंध नहीं है लेकिन डॉक्टर का इन दोनों से संबंध हो सकता है। डॉक्टर की डायरी व्यावसायिक श्रेणी में आती है, जिसमे अपाईन्मेंट्स नोट किये जाते है व्यावसायिक डायरी का उपयोग तो बहुतांश लेन-देन का लेखा जोखा रखने के लिए होता है 

काला कारोबार करने वाले भी अपनी एक खास डायरी रखते हैं. जिसमे वे अपने गुप्त लेन-देन के हिसाब और सहयोगियों के नाम कोडवर्ड में लिखा करते हैं ऐसी किसी डायरी के पकड़ा जाने पर उसमे से किसी का डी-कोडित नाम और लेन-देन सार्वजनिक हो जाना परेशानी का सबब हो सकता है। ईश्वर न करे ऐसे कोई कारोबार में फँसने या डायरी में कोडवर्ड में नाम आने की नौबत किसी पर आये

- व्याख्यानंद (विवेक भावसार)

Friday, December 13, 2019

नागिन डांस !




भारत में शादियों का आयोजन होता ही इसीलिए है कि शौकिया नर्तक अपने नाचने का शौक पूरा कर सकें। बारात में नाचने के लिए बैंड पर बजता फरमाइशी गीत-संगीत, देखने, उत्साहवर्द्धन व आग्रह करने वाले दर्शक, नाचने का जोश और माहौल रेडिमेड उपलब्ध होता है। इसलिए कुछ लोग विशेषकर नवयुवक - युवतियाँ बारातों में अपनी नृत्य कला प्रस्तुत करने के लिए सदैव लालायित रहते हैं। नृत्य प्रदर्शन के साथ-साथ 'किसी विशेष' पर अपना प्रभाव ज़माना, युवकों के लिए ये एक तीर में दो निशाने साधने जैसा मौका होता है।

बारात के नाच में एक खास बात ये भी होती है की आपको नाच न आने पर भी आंगन या सड़क टेढ़ा जैसा कोई कॉलम नहीं होता। आप किसी भी तरह से आड़े-तिरछे हाथ पैर चलाते हुए, कमर को हिलाते मुक्त भाव से नाच सकते हैं।

'ये वीडियो नहीं देखा तो क्या देखा' की तर्ज पर वैवाहिक नर्तकों में भी अलिखित नियम है कि अगर "नागिन धुन पर डांस नहीं किया तो क्या डांस किया ?" बारातों के डांस के इतिहास में इसे सबसे लोकप्रिय, प्राचीन और सबसे आसान डांस का सम्मान प्राप्त है।
बैंड पर धुन के शुरू होते ही जेब का रुमाल बाहर निकाल कर उसका एक सिरा दांतों में दबाकर व् दूसरे सिरे को उंगलियों में बीन की तरह पकड़ कर एक नर्तक सपेरे की भूमिका में आ जाता है. (बारात में चलते समय रुमाल को खास इसी प्रयोजन से खीसे में रखा जाता है ). जिसके पास रुमाल नहीं होता उसे इस नृत्य में हथेलियों को फन जैसा आकार देते हुए जमीन पर लोट लगाते हुए बैंड पर बज रही नागिन धुन पर साँप की तरह लहराते-बल खाते हुए नागिन की भूमिका निभानी पड़ती है। इस नृत्य में सपेरे और नागिन के हावभावों और कमनीयता की जुगलबंदी विशेष दर्शनीय होती है।

अधिकांश लोगों का मानना है कि जमीन पर नागिन जैसे लोट लगाकर नृत्य करने से इस नृत्य प्रकार का नाम नागिन डांस पड़ा है. लेकिन संसार के नियमानुसार हर बात में विपरीत दिशा में जाने वाले जैसे लोगों का मानना है कि बारात के दौरान किया जाने वाला अनेक बार अर्थात गिनती न किये जा सकने योग्य नृत्य (यानि ना-गिन) के कारण इसका नाम नागिन डांस हुआ है.

नागिन धुन का अनेक बार पुनर्वादन, नर्तकों का स्टेमिना और बैंड वालों को मिलनेवाली न्योछावर की राशि पर निर्भर करता है। इंदौर को क्लीन सिटी न. १ बनाने के अंतर्गत सडकों को साफ़ और चमकदार बनाने में 'नागिन डांस' के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। शादी के बैंड में 'आज मेरे यार की शादी है' से 'बहारों फूल बरसाओ' के बीच यदि सबसे ज्यादा बजने वाली धुन है तो वह नागिन डांस धुन है ।

एकरसता भंग करने हेतु अन्य नृत्य गीतों का भी बीच-बीच में वादन आवश्यक होता है, इस हेतु तत्कालीन लोकप्रिय गीतों का सहारा लिया जाता है। बारात के नृत्य की एक विशेषता ये भी होती है की इससे सड़क चलते यातायात में जितना ज्यादा व्यवधान उत्पन्न हो, उतना नर्तकों का जोश वृद्धिंगत होता है।

विचारणीय है कि यदि फिल्म संगीत नहीं होता तो भारत में विवाह कैसे संपन्न होते ? विडंबना यह कि जिस की शादी की ख़ुशी में यह सब डांस-नृत्य किया जा रहा है वह दूल्हा, जो बरात के सबसे अंतिम सिरे पर घोड़े पर बैठा होता है, यह सब देख भी नहीं पाता।
अलिखित नियम ये भी है कि बारात का अंतिम गीत "बहारों फूल बरसाओ'' होता है। बैंडवाले जब यह धुन बजाते हैं तो चतुर श्रोता यह समझने में देर नहीं करते की बारात अब अपने ठिकाने पर लग गई है। अपने इसी गुण के कारण "बहारों फूल बरसाओ'' बैंड वालों के माध्यम से अमर गीत बन गया है। कुछ और भी विशेषताएं इस गीत ने प्राप्त की हैं, गौर कीजिये -

"बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड वालों की महफ़िल की "भैरवी" है !
"बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड वालों के गीतों की ट्रेन का गार्ड का डिब्बा है।
"बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड वालों की बिनाका गीतमाला की आखरी पायदान है !
"बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड वालों के संगीत कोर्स का आखरी चेप्टर है !
"बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड वालों की खाने के बाद की स्वीट डिश है !
"बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड वालों के सफर का आखरी स्टेशन है !
"बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड वालों की घंटे-दो घंटे की रेस का "फिनिश" मार्क है !
"बहारों फूल बरसाओ" यह बैंड वालों के लिए वापसी का टिकट है।
"बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड पर बजने के पहले तक कई 'फूल्स' सड़क पर 'बरसते- थिरकते' देखे जा सकते हैं !
और अंत में - एक नामी गिरामी व्यक्ति सिधार गए। अंतिम यात्रा में खाली हवा फूंकने वाले टटपुँजिये बैंडवालों की जगह शादीवाला शाही बैंड मंगवाया गया। पूरी अंतिम यात्रा में तो बैंड वाले याद रख-रख कर राम धुन बजाते रहे, लेकिन जैसे ही शमशान के गेट पर पहुंचे, आदत से मजबूर "बहारो फूल बरसाओ" बजा बैठे !

- व्याख्यानंद (विवेक भावसार) !