भारत
में शादियों का आयोजन होता ही इसीलिए है कि शौकिया नर्तक अपने नाचने का शौक पूरा
कर सकें। बारात
में नाचने के लिए बैंड पर बजता फरमाइशी गीत-संगीत, देखने, उत्साहवर्द्धन व आग्रह
करने वाले दर्शक, नाचने
का जोश और माहौल रेडिमेड उपलब्ध होता है। इसलिए कुछ लोग विशेषकर नवयुवक - युवतियाँ
बारातों में अपनी नृत्य कला प्रस्तुत करने के लिए सदैव लालायित रहते हैं। नृत्य
प्रदर्शन के साथ-साथ 'किसी
विशेष' पर
अपना प्रभाव ज़माना, युवकों
के लिए ये एक तीर में दो निशाने साधने जैसा मौका होता है।
बारात
के नाच में एक खास बात ये भी होती है की आपको नाच न आने पर भी आंगन या सड़क टेढ़ा
जैसा कोई कॉलम नहीं होता। आप किसी भी तरह से आड़े-तिरछे हाथ पैर चलाते हुए, कमर को हिलाते मुक्त
भाव से नाच सकते हैं।
'ये
वीडियो नहीं देखा तो क्या देखा' की तर्ज पर वैवाहिक
नर्तकों में भी अलिखित नियम है कि अगर "नागिन धुन पर डांस नहीं किया तो क्या
डांस किया ?" बारातों के डांस के इतिहास में इसे सबसे लोकप्रिय, प्राचीन और सबसे आसान
डांस का सम्मान प्राप्त है।
बैंड
पर धुन के शुरू होते ही जेब का रुमाल बाहर निकाल कर उसका एक सिरा दांतों में दबाकर
व् दूसरे सिरे को उंगलियों में बीन की तरह पकड़ कर एक नर्तक सपेरे की भूमिका में आ
जाता है. (बारात में चलते समय रुमाल को खास इसी प्रयोजन से खीसे में रखा जाता है
). जिसके पास रुमाल नहीं होता उसे इस नृत्य में हथेलियों को फन जैसा आकार देते हुए
जमीन पर लोट लगाते हुए बैंड पर बज रही नागिन धुन पर साँप की तरह लहराते-बल खाते
हुए नागिन की भूमिका निभानी पड़ती है। इस नृत्य में सपेरे और नागिन के हावभावों और
कमनीयता की जुगलबंदी विशेष दर्शनीय होती है।
अधिकांश लोगों का मानना है कि जमीन पर नागिन जैसे लोट लगाकर नृत्य करने से इस नृत्य प्रकार का नाम नागिन डांस पड़ा है. लेकिन संसार के नियमानुसार हर बात में विपरीत दिशा में जाने वाले जैसे लोगों का मानना है कि बारात के दौरान किया जाने वाला अनेक बार अर्थात गिनती न किये जा सकने योग्य नृत्य (यानि ना-गिन) के कारण इसका नाम नागिन डांस हुआ है.
नागिन
धुन का अनेक बार पुनर्वादन, नर्तकों
का स्टेमिना और बैंड वालों को मिलनेवाली न्योछावर की राशि पर निर्भर करता है।
इंदौर को क्लीन सिटी न. १ बनाने के अंतर्गत सडकों को साफ़ और चमकदार बनाने में 'नागिन डांस' के योगदान को कभी नहीं
भुलाया जा सकता। शादी के बैंड में 'आज मेरे यार की शादी है' से 'बहारों फूल बरसाओ' के बीच यदि सबसे ज्यादा
बजने वाली धुन है तो वह नागिन डांस धुन है ।
एकरसता
भंग करने हेतु अन्य नृत्य गीतों का भी बीच-बीच में वादन आवश्यक होता है, इस हेतु तत्कालीन
लोकप्रिय गीतों का सहारा लिया जाता है। बारात के नृत्य की एक विशेषता ये भी होती
है की इससे सड़क चलते यातायात में जितना ज्यादा व्यवधान उत्पन्न हो, उतना नर्तकों का जोश
वृद्धिंगत होता है।
विचारणीय
है कि यदि फिल्म संगीत नहीं होता तो भारत में विवाह कैसे संपन्न होते ? विडंबना यह कि जिस की
शादी की ख़ुशी में यह सब डांस-नृत्य किया जा रहा है वह दूल्हा, जो बरात के सबसे अंतिम
सिरे पर घोड़े पर बैठा होता है, यह सब देख भी नहीं
पाता।
अलिखित
नियम ये भी है कि बारात का अंतिम गीत "बहारों फूल बरसाओ'' होता है। बैंडवाले जब
यह धुन बजाते हैं तो चतुर श्रोता यह समझने में देर नहीं करते की बारात अब अपने
ठिकाने पर लग गई है। अपने इसी गुण के कारण "बहारों फूल बरसाओ'' बैंड वालों के माध्यम
से अमर गीत बन गया है। कुछ और भी विशेषताएं इस गीत ने प्राप्त की हैं, गौर कीजिये -
♬ "बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड वालों की महफ़िल की
"भैरवी" है !
♬ "बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड वालों के गीतों की ट्रेन का गार्ड
का डिब्बा है।
♬ "बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड वालों की बिनाका गीतमाला की आखरी
पायदान है !
♬ "बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड वालों के संगीत कोर्स का आखरी
चेप्टर है !
♬ "बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड वालों की खाने के बाद की स्वीट डिश
है !
♬ "बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड वालों के सफर का आखरी स्टेशन है !
♬ "बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड वालों की घंटे-दो घंटे की रेस का
"फिनिश" मार्क है !
"बहारों फूल बरसाओ" यह बैंड वालों के लिए वापसी का टिकट है।
♬ "बहारो फूल बरसाओ" यह बैंड पर बजने के पहले तक कई 'फूल्स' सड़क पर 'बरसते- थिरकते' देखे जा सकते हैं !
और
अंत में - एक नामी गिरामी व्यक्ति सिधार गए। अंतिम यात्रा में खाली हवा फूंकने
वाले टटपुँजिये बैंडवालों की जगह शादीवाला शाही बैंड मंगवाया गया। पूरी अंतिम
यात्रा में तो बैंड वाले याद रख-रख कर राम धुन बजाते रहे, लेकिन जैसे ही शमशान के
गेट पर पहुंचे, आदत
से मजबूर "बहारो फूल बरसाओ" बजा बैठे !
- व्याख्यानंद (विवेक
भावसार) !
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