मैं कौन हूँ?
बड़े-बड़े महापुरुष यह जानने में पच गये कि ‘मैं कौन हूँ !’ और स्वयं के बारे में जानने के लिये उन्होंने अपना पूरा जीवन खर्च कर डाला ।इन महापुरुषों की तरह मेरे मन में भी यही सवाल बचपन से उठ खड़ा हुआ था और उसका जवाब मुझे बिना पूछे ही अलग-अलग लोगों से मिलता रहा है। देखिये, क्या-क्या जवाब मिला....
* पैदा होते ही दादा-दादी ने कहा - तुम हमारे कुलदीपक हो ।
* स्कूल के लिये उठाते हुए मेरी मॉं ने कहा - तुम बहुत आलसी हो।
* बचपन में मेरी बड़ी बहन ने कहा - तुम बहुत शैतान हो।
* स्कूल में टीचर ने कहा - तुम निरे बुद्धू हो।
* रिजल्ट पर साईन करते हुए पिताजी ने कहा - तुम गधे हो....गधे !
* सहपाठियों ने परीक्षा के बाद ने कहा - तुम तो ‘टीपू’ सुल्तान हो।
* कॉलेज में दोस्तों ने कहा - तुम बड़े ही काइयां हो ।
* शादी से पहले प्रेमिका ने कहा - तुम कितने प्यारे हो।
* पत्नी बन जाने के बाद प्रेमिका ने कहा - तुम वादा खिलाफ हो।
* शादी के पांच साल बाद पत्नी ने कहा - हे भगवान ! समझ नहीं आता, आखिर तुम चीज क्या हो ।
* दफ्तर में बॉस ने कहा - तुम पूरे गोबर गणेश हो।
* किरानेवाले ने कहा - तुम उधारचंद हो।
* बच्चों ने कहा - आप बहुत कंजूस हो।
लेकिन सबसे बढिया बात मेरे ज्योतिषी ने बोली और मैंने उसे मान भी लिया...
*ज्योतिषी ने कहा - आप बहुत भोले हो, मेहनती हो, सबकी मदद करने वाले हो और कोई आपकी तारीफ में कुछ भी कहे, हर बात बिना सोचे समझे मान लेते हो !
- परिचयानन्द!
(विवेक भावसार)
(विवेक भावसार)
3 comments:
हम तो बस यही कहेंगे जी
कि आप तो आप हो 🙏
शुक्रिया आनंद जी😊
धन्यवाद
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