Monday, May 13, 2019

मेरी विमान यात्रा

हमारे पड़ोस में एक लड़का रहता है पप्पू । (हँसिये मत, दुनिया में केवल एक ही पप्पू नहीं है।) तो हमारा ये पडोसी पप्पू कक्षा ५ वीं में पढ़ रहा है। यह पप्पू इतना भी पप्पू नहीं है, बल्कि बहुत होशियार और चंट है । उसने केवल एक ही निबंध याद कर रखा है । वह है "हमारी गाय'।
पप्पू के टीचर और माता पिता ने भी उसे खूब समझाया कि बेटा दूसरे विषयों पर भी निबंध लिखने का अभ्यास होना चाहिये, उनकी भी तैयारी रखो । परंतु पप्पू ने उस ओर कान नहीं दिया और कहा "परीक्षा में मै मेरा देख लूंगा, आप मेरी चिंता मत कीजिये ।
आखिर जो होना था वहीं हुआ, परीक्षा में हिंदी के पेपर में गाय के ऊपर निबंध लिखने की बजाय विषय था -"मेरी विमान यात्रा" ! विषय को देख कर पप्पू ने बगैर जरा भी घबराये निम्न प्रकार से अपना निबंध लिखा -

मेरी विमान यात्रा

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मुझे विमान में बैठने का बड़ा शौक है, इसलिये मैंने पिताजी को मनाया कि इस बार हम छुट्टियों में हमारे गाँव हाटपिपलिया विमान से चलेंगे । पिताजी ने मना कर दिया । आखिर बहुत जिद के बाद मैंने पिताजी को मना ही लिया ।
गाँव जाने का दिन आया । मैं विमान में बैठने के लिए बहुत उत्सुक था । हम विमान के स्टैंड पर जा पहुँचे । पिताजी गांव में ओहदेदार अफसर थे इस लिए सारे लोग उन्हें जानते थे। वहाँ पहुँचते ही वहाँ के संतरी ने मुस्कुराकर हमारा स्वागत किया और प्रतीक्षालय में बैठने के लिये कहा । पिताजी ने टिकट पहले से ही लेकर रखा था । मैं छोटा होने से मेरा आधा ही टिकट लगा । पिताजी ने काउन्टर पर जाकर टिकट चेक करवाया । विमान के आने में कुछ देर थी ।
विमान स्टैंड पर लगते ही सभी पेसेंजर धक्कामुक्की करके विमान में चढ़ने लगे । हम भी जैसे तैसे करके विमान में बैठ गये । मैं हठ कर के खिडकी के पास वाली सीट पर बैठ गया । विमान चालू होने के पहले पिताजी ने मुझे अपना बेल्ट कसकर बांधने को कहा । मैंने भी तुरंत अपनी नेकर का बेल्ट अच्छे से कस लिया। पिताजी मेरे कपडे हमेशा थोड़े बड़े नाप के ही खरीदते है (ताकि बाद में कपड़े तंग न होने लगें। यह बात अलग है कि कपड़े जब बदन पर सही से फिट होने लगते हैं तब तक वो पुराने पड़ जाते हैं... खैर!) ढीली होने से मेरी नेकर हमेशा नीचे की ओर सरकती रहती है । इसलिए मुझे नेकर में हमेशा बेल्ट लगाना पड़ता है ।
कुछ ही देर बार विमान चालू हुआ और धीरे-धीरे आगे की ओर सरकने लगा । मैं खिड़की में से बाहर के मजे लेने लगा । अब चारों ओर गाँव दिखाई देने लगा था । गाँव के रास्ते दिखाई दे रहे थे । कुछ ही मिनटों में विमान गाँव से बाहर निकल आया । नीचे खेत-खलिहान नजर आने लगे । एक खुले मैदान में गायें चरती दिखाई दे रहीं थी । दूर होने से वे बहुत छोटी-छोटी बकरियों जैसी दिखाई पड़ रही थी ।
गाय यह एक पालतू पशू है । हमारी गाय भी एक पालतू गाय है । उसका नाम कपिला है । उसके चार पैर है, दो पैर आगे और दो पीछे । उसके पीछे के पैरों के पीछे एक पूँछ है और आगे के पैरों के आगे एक सिर है । सिर पर दो सींग हैं । कोई कुत्ता जब पास आता है तब वह अपने सींगों से उसे डराकर दूर भगाती है । पूँछ का उपयोग वह मक्खियाँ उड़ाने के लिए करती है । मक्खियाँ गोबर पर बैठती हैं । स्कूल जाते समय जब कभी मेरा पैर गोबर पर पड़ जाता है तो मेरे सारे दोस्त "हैप्पी बड्डे का केक कट गया' कहकर जोरों से तालियाँ बजाते है । लेकिन हैप्पी बड्डे को मैं सचमुच का केक काटता हूँ । तब मुझे बहुत सारी गिफ्ट मिलती हैं । इसलिये मैं पिताजी से कहनेवाला हूँ कि हर महिने मेरा हैप्पी बड्‌डे मनाया करें । खैर .. .
गाय हरा-पीला चारा खाती है, हरी-हरी पत्तियाँ खाती है लेकिन उसका दूध सफेद होता है । "यदि हम गाय को दूध पिलायें तो क्या वह हरा चारा देगी ?'' ऐसा पूछते ही पिताजी ने मेरे पुठ्ठे पर एक धौल जमाया । हम बच्चे पुठठे के टुकडे करके हवा में उड़ाते हैं, तब बड़ा ही मजा आता है ।
हमारी कपिला गाय भी हमें दूध देती है । हमारा नौकर उसका दूध निकालता है । मेरा दोस्त राजू कहता है कि उसके यहाँ छगन ग्वाला दूध देता है, परंतु वो लोग उसका दूध कैसे निकालते हैं, मुझे नहीं पता । दूध से बहुत से पदार्थ बनते है, जैसे दही, छांछ, घी, मावा, पनीर, चाय आदि । मुझे चाय अच्छी लगती है । कहते है, चाय पीने से रंग काला पड़ जाता है । परंतु मैं पहले से ही काले रंग का होने से मुझे उसकी जरा भी चिंता नहीं है ।
गाय की आवाज बस के हॉर्न जैसी भ्रांऽऽऽ करके आती है । जब हमारी गाय रास्ते में आवाज निकालती है तब सारे लोग पीछे से बस आ रही है यह सोच कर रास्ते से हट जाते हैं और जब देखते है कि पीछे गाय है तब उनके फजितवाड़े हो जाते है । खैर...
मैंने सुना था कि विमान में एक मैडम मुफ्त में शरबत, गोली, बिस्कुट आदि बाँटती है, परंतु अभी तक तोे वह दिखाई नहीं दे रही थी । हमारी पीछे वाली सीट पर बैठी एक आंटी अपने बच्चे को चॉकलेट खिला रही थी । उसकी पर्स में एक कोल्ड-ड्रिंक की बोतल भी रखी हुई थी । शायद वो वहीं गोली-बिस्कुट बाँटनेवाली मैडम रही होगी, उसी ने अपने बच्चे के लिए सारे चॉकलेट और शरबत की बोतल हडप ली होगी ।
कुछ ही देर में हमारा गाँव हाटपिपलिया आ गया । हम हमारी विमान ट्रेवल्स की बस से उतर गये और दादाजी के घर की ओर चल पड़े । इस प्रकार से हमारा विमान प्रवास पूर्ण हुआ ।
आशा है आपको पप्पू के इस निबंध को पढ़कर आनंद आया होगा !

-यात्रानंद !