कुछ नए ग्रहयोग (लेकिन बहुत से अनिष्ट) भाग-2
अंत:क्रमांकयोग
बड़े शहरों में रहने वाले अधिकांश लोगों की कुंडली में यह योग होता ही है. इस
योग का मुख्य फलित यह है कि कतार में आधा
घंटा खड़े रहने के बाद बस आती है, आप सरकते हुए आगे बढ़ते हैं, आप बस में कदम रख ही
चुके होते हैं कि कंडक्टर घंटी बजाकर “नीचे उतरो, जगा नाय “ पुकार देता है. उसके
बाद चार-पाँच बसेस बगैर रुके आपके सामने से गुजर जाती हैं. इसलिए आप क्यू छोड़कर
टैक्सी ढूँढने निकलते हैं, तभी आधे से ज्यादा खाली बस आपकी आँखों के सामने से पूरा
क्यू समेट कर ले जाती है और उधर आज ही टैक्सीवालों की हड़ताल होती है.
फिल्म शो के टिकट की खिड़की जो आपके मुंह पर ही बंद होती है वह भी इसी योग की वजह
से. बत्तीस से बयालीस तक की कौनसी भी साइज की बनियान दुकान तो छोडो, पूरे मार्केट
से खल्लास हुई रहती है. चप्पल की जो डिजाइन पसंद आती है, उस का साइज पैरों से मैच
नहीं करता. सेल में अपने नाप की पैंटे ख़त्म हो चुकी होती हैं. आप को जो शर्ट का
कपड़ा पसंद आता है पीस में पाव मीटर कम होता है. विवाह समारोह में आप पहुँचते हैं
तब तक आइसक्रीम ख़त्म हो चुका होता है, फिर परिवार को बाहर अपने खर्चे से आइसक्रीम
खिलाना पड़ता है. तभी आपके परिचित ऑफिस के सहयोगी रामबाबू अपने बच्चों को आपकी ओर
ऊँगली दिखाते हुए कहते हैं, “देखो, वो अंकल आपको आइसक्रीम खिलाएंगे.” कुल मिलाकर
शादी महँगी पड़ जाती है. अंत:क्रमांकयोग के परिणाम भयानक होते हैं. लोकल ट्रेन का
सफ़र किस्मत में हो तो ट्रेन छूटना तय ही है. पीछे चलनेवाली घड़ी आगे कर लो तो लोकल
देर से आती है और ऑफिस के लिए देर हो जाती है, और उसी दिन साहब राउंड लगा जाते
हैं.
किसी दिन आप सचमुच फ्लू से पीड़ित होते हो, बुखार भी 103 तक चढ़ा हुआ होता है.
सप्ताह भर की छुट्टी ली हुई होती है. शनिवार की रात बुखार उतर जाता है और रविवार
की शाम बड़े दिनों बाद परिवार के साथ रमी खेलने बैठ जाते हो. पांच घंटे तक हारते
रहने के बाद हैण्डरमी होती है. आप ख़ुशी से चिल्ला उठाते हैं “लगा कि नहीं झटका
बच्चू ?”, ठीक उसी समय दरवाजे पर स्वास्थ्य की पूछताछ करने हेडक्लार्क और अकाऊटेंट खड़े हुए होते हैं. बड़ी मुश्किल से कोई दांव
जीतते ही बाजी पलट जाए, ये अंत:क्रमांकयोग ऐसा ही है.
छुट्टी के दिन सपरिवार फिल्म
देखने के लिए तैयार हो कर निकलने को हों तभी पिछले आठ-दस सालों से बिस्तर पकड़ी हुई
सामनेवाले के घर की बुढ़िया चल बसी ये बताने पडोसी आ जाते हैं. चुपचाप कोट उतार कर
रख देना होता है. बुढ़िया का निधन ऐसे समय बिलकुल बेमुहुरत का लगने लगता है.
हर बार किसी की बुढिया ही चल बसे ये
जरूरी नहीं. अवांछित रिश्तेदार आ जाते हैं. औरों के नहाने के समय अनवरत बहने वाला
नल आपके समय सर पर लगे साबुन का झाग आँखों
में जाते ही टप-टप कर आखरी आँसू टपका कर बंद हो जाता है. ऐसे लोग सलून में महीने
के आखरी हफ्ते में जाते हैं तब भी इनके लिए जगह खाली नहीं मिलती और नाई “बस अभी हो
जाती है, बैठो साब” कहकर वेटिंग में बिठा लेता है. तभी वहाँ बैठे फिल्मफेयर,
मायापुरी, माधुरी, दैनिक सुप्रभात का भविष्यफल और कल के अखबार की शब्द्पहेली पहले
से बैठी हुई दिखाई दे रही होती है. उनके निपटने तक आठ बज जाती है और दुकान बंद
करने का समय हो जाता है इसलिए मालिक शटर गिरा देता है. इसमें से दोष किसी का भी
नहीं होता, दोष होता है अंत:क्रमांकयोग का.
कनिष्ठभगिनीयोग
वधुपिता द्वारा दिखाने के लिए लाई हुई दोनों बहनों में से “जो भी पसंद हो उसे
स्वीकार करें” यह खुला ऑफर मिला हुआ होता है. लेकिन बड़ीवाली देखने में अच्छी होते
हुए वह आपको शायद पसंद न करे इस गैरवाजिब डर से रंग में उससे ज्यादा फ़ास्ट कलर और कदकाठी
से मजबूत उसकी छोटी बहन को पसंद कर लिया जाता है. और बाद में “सही बोलूँ तो दीदी
की आपसे शादी करने की कितनी इच्छा थी” ये वह कनिष्ठ भगिनी खुद के मंगलसूत्र से
खेलते हुए बताती है. इसे ही कनिष्ठभगिनीयोग कहा जाता है.
ऐसे व्यक्ति नोकरी मांगते
समय सेठ की तनखा की अपेक्षा के जवाब में तीन हजार स्टार्ट का विज्ञापन पढ़ा होने के
बावजूद “दो हजार” बताते हैं
“और महंगाई भत्ता अलग से चाहिए क्या ?”
“नहीं-नहीं” पसीना पोंछते हुए कहते हैं.
सेठ खुश होते हैं, पहला दिन है कहकर मसाले की चाय पिलाते हैं. इस चाय को याद
करके यह लोग जिंदगीभर दो हजार पर काम करते रहते हैं. ऐसे लोग खुद के घर की घंटी
बजाने से भी डरते हैं. खुद ही के घर में भोजनालय में बकाया उधारी वाले मेम्बरों की
तरह छुप कर खाना खाते हैं.
कनिष्ठभगिनीयोग पर जन्मा व्यक्ति एकदम ‘पंचर’ही हो कर
पैदा होता है. इस तरह के व्यक्ति के लिए लोग उसके ज़िंदा होते हुए भी ‘अल्लाह की
गाय’, ‘किसी के बीच में न पड़ने वाला’ आदि कैलासवासी विशेषणों के साथ संबोधित करते हैं.
ऐसे व्यक्ति बच्चों की चड्डियों के नाड़े बांधते हैं. पत्नियों की साड़ियों की घड़ी
कर रखते हैं. रविवार के दिन घर के जाले साफ़ करते हैं. इस योग वाले व्यक्ति बोलना
तो बहुत चाहते हैं, लेकिन क्या बोलना है वह सामने वाले के चले जाने के बाद सूझता है.
कोई चुटकुला भी रात को घर पर सुनाने के लिए सोच रखते हैं, लेकिन ‘थाली में सब्जी क्यों छोड़
दी’ इस शिकायत के बाद सुनाना भूल जाते हैं.
कनिष्ठभगिनीयोग सौ में से साठ प्रतिशत
कुंडलियों में पाया जाता है. समाज की गाड़ी इन्ही चिकने बेरिंग्स के बल पर चल रही
होती है. ऐसे व्यक्ति बिना किसी शिकायत के दिन धकेल रहे होते हैं. कमोड में पानी
नहीं आने पर बाल्टी ले कर पानी उंडेलते हैं, मकान मालिक से शिकायत नहीं करते.
छुट्टी-अधिकारी योग से इनका पाला नहीं पड़ता. क्योंकि छुट्टी लेकर घर बैठ करें क्या
यही सवाल हो तो छुट्टी किस बात की ? इनके घर चोर आ जाएँ तो पेटी उठाने में येही
उनकी मदद करने लगेंगे. ऊपर से “श्रीमतीजी घर में नहीं हैं वरना एक चाय ही पीकर
जाते...” या “जरा संभल कर, कहीं सर न टकरा जाये” आदि कहते हुए बिदा करते हैं.
इन
लोगों की नम्रता अपने शिखर पर होती है. इस योग पर जन्मे एक व्यक्ति ने रेडीमेड की दुकान
में नए शर्ट की ट्रायल लेने आईने के सामने खडा हुआ तो हुए सामने कोई रौबीला पुरुष
खड़ा है यह समझ कर अपने प्रतिबिम्ब को ही झुक कर सलाम कर डाला. संक्षेप में कहे तो
ये पुरुष कुत्ते को भी “हऽऽऽट” न कहते हुए खुद ही अपना रास्ता बदल लेते हैं.
इनकी कुंडली के सारे गृह स्वगृह में ही होते हैं. किसी की भी किसी पर पाप
दृष्टी नहीं होती. कोई ग्रह न वक्र होता हैं ना सीधा. इनका गुरु उच्च होते हुए भी
घर ट्यूशन लेने आये मास्टर जैसा व्यवहार करता है. इन लोगों के जेब में नोट भी खोंस
दिए जाएँ तो रुमाल निकालते हुए वे गिर पड़ते हैं. इस वर्ग के पुरुषों को अधिकतर
आकाशवाणी योग की पत्नियाँ मिलती हैं.
आकाशवाणी योग
यह योग अधिकतर महिलाओं की कुंडली में पाया जाता है. इस प्रकार की महिलायें
केवल और केवल बोलने का ही काम करतीं हैं. आकाशवाणी के किसी स्टेशन की तरह लगातार
बोलना इनका काम होता है. सुबह 6 से रात 11 बजे तक. दोपहर दो घड़ी आँख लगती है
उतनी ही देर मुंह को आराम.
सुबह भजन गाती हैं,
आपके दफ्तर जाने के पहले पिछली रात पड़ोसन को किस तरह खरी-खोटी सुनाई ये ख़बरें चलती हैं,
दोपहर बिल्डिंग के महिला मंडल के कार्यक्रम में बोलती हैं. फिर किसी संगीत क्लास
में गाना सीखना होता है. बच्चे स्कूल से लौटने के बाद उनके बालसभा के कार्यक्रम
में बोलतीं हैं. शाम की सभा में समाचारों का आदान प्रदान होता है. रात में रूठने
की लघु नाटिका होती है.
आकाशवाणी की तरह इनके भी बहुरंगी कार्यक्रम होते हैं.
दोपहर की शिकायतों का रात में पुनःप्रसारण होता है. उपस्थित मेहमानों के समक्ष
बच्चों का विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत होता है. इतना ही नहीं “इन्हें” रविवार के दिन
मार्केट भेजने से पहले बाजारभाव भी बताया जाता है. कामवाली बाई के साथ ग्रामीण सभा
होती है. दूधवाले के साथ (मराठी गृहिणी का) हिंदी भाषा का पाठ होता है. किसी
भावोत्कट लघुनाटिका के लिए बर्तनों के पटकने का साउंड इफेक्ट भी होता है.
आकाशवाणी
योग की कुंडली देखनेलायक होती है. सारे शुभग्रह सोये पड़े रहते हैं. कुंडली के
पापग्रह स्वगृह में स्थित होते हैं. अनेक बार वह साले, साडू, जीजा आदि रूप धरकर
आते हैं. ऐसे समय घर को आकाशवाणी के विशेष सप्ताह का स्वरुप प्राप्त होता है. यहाँ जामात दशमग्रह होते हुए भी पूरी तरह दुर्बल होता है.
इस तरह की कुंडलियों की
महिलाओं के और कनिष्ठभगिनियोग के पुरुषों के छत्तीस गुण मिलते हैं, इसलिए विवाह हो
जाते हैं. उन 36 में से भी 35 गुण वधुपक्ष की ओर होते हैं और वरपक्ष का “चुप रहना”
यह गुण उसे तार ले जाता है. ऐसे विवाह बहुत सफल होते हैं. क्योंकि आकाशवाणीयोगधारी
परिवार का एक गुण वास्तविक आकाशवाणी की तरह ही होता है. बोलने वाले को सुनने की
जरुरत नहीं होती. घर में कोई न हो और वॉल्यूम बढ़ा दो तो आकाशवाणी को पडोसी भी सुन
सकते हैं.
(पु.ल.देशपांडे लिखित मराठी लेख "काही नवीन ग्रहयोग" का हिंदी रूपांतरण भाग-2 ... विवेक भावसार )
भाग -1> https://funkahi.blogspot.com/2019/10/1.html
भाग -3 > https://funkahi.blogspot.com/2019/10/3_26.html
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