Saturday, October 26, 2019

अनुवाद - कुछ नए ग्रहयोग -1 (पु.ल. देशपांडे )


कुछ नए ग्रहयोग  (लेकिन बहुत से अनिष्ट)


पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने कुछ ही समय पहले फरर्टीज सिद्धांत, गम्परसन सिद्धांत, पार्किन्सन सिद्धांत आदि नये-नए सिद्धांत खोज निकाले हैं. गम्परसन के अनुसार, “दांतदर्द से जान जा रही हो ऐसे समय डेंटिस्ट की कुर्सी पर बैठते ही दांत-दर्द बंद हो जाये तब सवाल यह खडा हो जाता है कि डेंटिस्ट से किस बात का इलाज करवाएं ?” 

लेकिन मुझे उससे भी ज्यादा परेशानी तब होती है, जब डेंटिस्ट की कुर्सी पर गर्दन टिकाकर बैठते ही कहीं मैं यह हुकुम न चला बैठूं कि  "हाथ सीधा चलाना, उस्तरा उलटा मत खींचना”. क्योंकि आजकल दोनों एक ही सा पोशाख पहनते हैं और दोनों ही दुकानों से डेटॉल की एक सी गंध उठती रहती है.

पाश्चात्य लोग जिसे सिद्धांत कहते हैं, हम उसे ग्रहयोग कहते हैं, क्योंकि हम अपने भौतिकता या बुद्धिवाद पर घमंड नहीं करते. हमारा मानना है कि दुनिया में जो भी घटित होता है वह विधिलिखित लेख के अनुसार ही घटता है. पाश्चात्यों ने अभी जाकर चाँद की दिशा पकड़ी है. भारतीयों का तो वहाँ पहले ही से बेरोकटोक आना-जाना लगा हुआ है. 

हम चाँद पर जाएँ या हमारी कुंडली में उसे घर बनाने दिया जाए, अर्थ कहें या अनर्थ... मतलब एक ही है. लेकिन ज्योतिष पर अविश्वास दिखाने का आजकल फैशन चल पड़ा है. अन्य किसी फैशन की तरह इसे भी चोरी छुपे किया जाता है. लेकिन मुझे इसे चोरी छिपे करने आवश्यकता नहीं. मेरी ज्योतिष और ज्योतिषी, दोनों पर अनंत श्रद्धा है. एक बार भगवान् के सामने भले हाथ न फैलाऊँ, लेकिन ज्योतिषी के आगे हाथ फैलाये बिना नहीं रह सकता.

इस बात का मुझे गर्व है कि शनि, रवि, राहू, केतू, मंगल आदि शक्तिशाली ग्रहगण दुनिया की महान विभूतियों की कुंडली की भाँति मेरी कुंडली में भी घर किये हुए हैं. कभीकभार वे अपना घर छोड़ दुसरे घर में घुस जाते हैं, खुद का घर किराए पर उठा देते हैं, पुन: अपने घर में वापिस आ जाते हैं. कभी-कभी साहित्य के आलोचकों की तरह वक्री हो जाते हैं. तब उनकी दशा हमारी तरह ही हो जाती है. एक दुसरे का मुँह तक न देखने वाले शनि और गुरू, राजनीतिक पार्टियों के प्रतिस्पर्धी नेताओं की तरह एक-दूसरे पर अच्छी-बुरी नजर रखते हुए अचानक गठबंधन कर लेते हैं. कोई लोकप्रिय नेता जिस तरह कुछ वोटों से हार जाए ठीक उसी तरह कुछ ही अंशों से ये ग्रह मार खाते हैं. इनकी यह लीलाएं देखने में मैं व्यस्त हो जाता हूँ.

वराहमिहिर से लेकर पिछली गली के नुक्कड़ पर रहने वाले ज्योतिर्भूषण दयाशंकर शास्त्रीजी तक सभी ने इस शास्त्र का गहन अभ्यास किया हुआ है, कुण्डलियाँ बनाई हैं, भविष्य कथन किया है. लेकिन मुझे इन सबसे संतुष्टि नहीं हो रही थी. अपनी तरफ से इस शास्त्र में कुछ नया योगदान देने की पहले से मुझे रूचि रही है. मेरी कुंडली में ही वह योग है. पुरातन समय से हमारे यहाँ नवपंचमयोग, गुरूपुष्यामृतयोग, अमृतसिद्धियोग आदि अनेक योग चले आ ही रहे हैं, परन्तु मैंने कुछ नए योग खोज निकाले हैं. अब इन योगों पर कौनसे ग्रह को नियुक्त किया जाये यह काम अगली पीढ़ी का है. प्रस्तुत लेख में इन्हीं नये योगों पर प्रकाश डाला गया है. ज्योतिषशास्त्र पर श्रद्धा न रखने वाले इसे न देखें. पूर्वग्रहदूषित लोगों पर ज्योतिष की सत्ता नहीं चलती. एक बार शनि या मंगल का फटका पड़ जाए तब ही यह पूर्वग्रहदूषित लोग पुरानी अलमारियों-पेटियों में रखी अपनी कुंडली खोजने लगते हैं. तान प्रति नैष यत्न: !

कुंडलियों में पहले राजयोग, संततियोग आदि हुआ करते थे, नए जमाने में मंत्रियोग, संततिनियमनयोग, ब्लॉक अध्यक्ष-योग, विश्वविद्यालयीन-परीक्षकयोग, शासकीयपुरस्कारयोग आदि नए-नए योग आने लगे हैं. अष्टग्रहों में उसका भी विचार किया गया है, नए ज्योतिषी को केवल परदेशगमनयोग है इतना कहने भर से छुटकारा नहीं है, मंगल के भ्रमण का अध्ययन कर वह परदेशगमनयोग अमेरिका का है या चीन, जापान का, यह स्पष्ट बताना होता है.

ज्योतिषी दो तरह के होते हैं. एक जो कुंडली देख कर आदमी पहचानते हैं. दुसरे वे जो आदमी देख कर कुंडली बनाते हैं. हमारा अध्ययन दूसरे प्रकार का है. हम केवल कदकाठी देख कर राशि पहचान लेते हैं. प्रस्तुत लेख में यह नए ग्रहयोग दिए हैं. फिलहाल सुधीजनों के विचारार्थ चुनिन्दा योगों की चर्चा की जा रही है और उसके मुख्य फलित बताएं जा रहे हैं. एक बार योग और उनके फलित बता देने के बाद कुंडली में ग्रह फिट करना कोई कठिन काम नहीं.

जलशृंखलायोग

इस योग पर जन्मे जातक को हमेशा किसी विचित्र परिस्थिति से जूझना पड़ता है. उदाहरण के लिए – कमोड की जंजीर खींचने पर पानी न आना. (पुराने समय में फ्लश टैंक ऊपर की ओर बने होते थे जिनसे सर के ऊपर लटकती एक जंजीर द्वारा खींच कर फ़्लश करना पड़ता था) जंजीर खींचने पर आवाज के अतिरिक्त कुछ भी बाहर नहीं आता. ऐसे समय शिकायत करते रहने के बावजूद मकान मालिक भी ध्यान नहीं देता। किसी दिन आप बत्ती बुझाकर सोने के लिए जानेवाले होते हैं तभी मकान मालिक का वह  ‘आदमी’ आता है. 

मकान मालिक का यह आदमी, “आदमी” इसी सामान्य नाम से पहचाना जाता है. मकान मालिक से आप कुछ भी शिकायत करो तो, मेरा ‘आदमी’ आकर देख लेगा इतना कहकर मकान मालिक आपसे पीछा छुड़ा लेता है. ये “आदमी” छ-छः महीने तक नहीं आता है. उधर ये मालिक शिकायत सुनने के मूड में कभी होता ही नहीं. तब फिर एकाएक ये ‘आदमी’ प्रकट होता है. इन ‘आदमी लोगों का थोबड़ा रात में कुछ ‘जियादा’ हो गई हो टाइप का होना ऐसा कायदा है. वैसे भी ये ज्यादा ही हुई होती है. ये ‘’आदमी’’ लोग स्वच्छता और सभ्यता से एक ख़ास दूरी बनाये हुए होते हैं. तब उनका और इन जलशृंखलायोगवाले किरायेदार का संवाद कुछ इस तरह होता है –

“क्या कम्प्लेन है?”

“काहे की कम्प्लेन... कमोड की चेन खींचने के बाद भी पानी नहीं आ रहा है, हर महीने का किराया बोलो तो गिन कर ले जाते हो“

“वो सेठ को बोलो, मेरेको खालीपीली खिटखिट सुनने की आदत नी है “

इतना कह कर वह पापग्रह उस शौचगृह में जाता है, साँखल खींचता है और छः माह से सूखी पड़ी टंकी धड़ से पानी फेंकती है.

“साला ,,, टेनन लोगों को आदत ही हो गयेली है साला !”

उसके इस वाक्य को अनसुना कर, पानी आना शुरू हो गया है इस ख़ुशी में आप सोने चले जाते है. अगले दिन जंजीर खींचने पर फिर वही खडखडाहट. इसे ही कहते है जलशृंखलायोग. जिनकी कुंडली में यह योग होता है उन्हें इस तरह के उलटफेर के लिए हरदम तैयार रहना चाहिए.

घड़ीसाज के आगे इमानदारी से चलने वाली घडी उसकी सुधराई का पेमेंट कर घर लाने के बाद हार्ट अटैक हो कर बंद पड़ जाती है. “घड़ी सुधारते हो या मजाक करते हो?” कहते हुए उसके सामने घड़ी पटकने की देर है, घड़ी अपने दोनों काँटो को हिलाते हुए सही-सही चल रही होती है. यही है जलशृंखलायोग...और नहीं तो क्या ? इस योग पर जन्म लेने वाले लोगों को बार-बार ऐसे प्रसंगों को झेलना होता है. दरजी के यहाँ से सिलाकर लाया हुआ शर्ट गले में टाईट हो रहा है इसलिए वापिस ले जाने पर दरजी झट से ऊपर का बटन लगा कर गले और कॉलर में तीन उंगलियाँ फँसाकर घुमाकर बता देता है.... जलशृंखलायोग... और क्या !

 छुट्टी-अधिकारी योग  

स्वास्थ्य ठीक न होने का कारण दे कर छुट्टी मारी हो. ऑफिस में बीमारी की अर्जी भी दे दी गई हो. अब घर से रोज की तरह ऑफिस जाने का कहकर निकलो, घंटा दो घंटा शहर के सेफ एरिया में घूमते हुए टाईम पास कर दोपहर के शो में सिनेमा हॉल में जा कर बैठें हों. तभी ठीक आपके आगे वाली सीट पर बॉस बैठा हुआ दिखाई देता है. उससे बचकर केवल डॉक्युमेंटरी देख कर बाहर सटकने को हों और अँधेरे में किसी के पैर पर पैर गिर जाये, और तभी “आँखे फूट गई हैं क्या कमीने ? ” ऐसा अतिपरिचित स्त्री स्वर कानों पर आता है. वह स्वर आपसे छुपकर अपनी महिला मंडल की सखियों के साथ आई हुई अपनी पत्नी का होता है.  

अँधेरे में उसने तो नहीं लेकिन बॉस ने आपको देखा होता है. लेकिन वह भी कुछ नहीं कहता, क्योंकि इंस्पेक्शन के बहाने निकला बॉस भी अपनी सेक्रेटरी के साथ आया हुआ होता है. लेकिन छुट्टी-अधिकारी–योग के कारण आपकी फिल्म की भैंस पानी में गई होती हैं. लेकिन इसके बावजूद ऑफिस में नोकरी और घर में जान पर आँच नहीं आती.

घर जाने पर पत्नी कहती है “महिला मंडल में आज का व्याख्यान बड़ा ही बढ़िया हुआ”. अगले दिन ऑफिस में बॉस ट्रे में से चाय शेयर करने के लिए केबिन में बुलाता है और सेक्रेटरी अपने लंच बॉक्स में से एक सैंडविच आपके आगे करती है. यह योग आपको खाई के मुँहाने तक तो ले कर आता है लेकिन नीचे धकेलता नहीं है.  

इस योग पर जन्मा हवलदार सब-इन्स्पेक्टर की नजर बचाकर हाथभट्टी वाले से हफ्ता वसूली के लिए जाने पर उसे वहाँ अपना ही ‘’साब’’ पहली धार की लगाता हुआ मिलना ही चाहिए. भट्टी वाला दादा दोनों को पिलाता है. साहब सोचता है, हवलदार ने देख लिया, हवलदार सोचता है साहेब ने. भट्टी वाला दादा दोनों को चौकी पर सही सलामत लाकर छोड़ता है. उसी दिन एंटी करप्शन वाला भी वहाँ आया हुआ होता है. लेकिन वह भी कुछ नहीं कहता. क्योंकि अपने खुद के मुँह से आने वाली बू से खुद ही डरा हुआ होता है. पुलिस चौकी में दादा की अध्यक्षता में “आज कल पब्लिक कैसी हरामी होती जा रही है” इस बात पर चर्चा चलती है.

छुट्टी-अधिकारी–योग की वजह से संकट कबड्डी-कबड्डी करते हुए पास आता तो है लेकिन खिलाड़ी को छुए बगैर निकल जाता है.

(पु.ल.देशपांडे लिखित मराठी लेख "काही नवीन ग्रहयोग" का हिंदी रूपांतरण भाग-1... विवेक भावसार ) 
भाग -2 > https://funkahi.blogspot.com/2019/10/2.html
भाग-3 >  https://funkahi.blogspot.com/2019/10/3_26.html

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