Tuesday, August 13, 2019

चाय पर चर्चा !


आइये अपने हाथों के कप आपस में टकरा कर बोलें .... चायर्स !
चाय..... सबसे ज्यादा पीया जाने वाला पेय। अंग्रेज इस देश में जाते-जाते बहुत सी चीजे छोड़ गए. बहुत सी व्यवस्थाएं, आदतें, भाषा, वेशभूषा, कुछ काले अंगरेज तथा साथ में और भी बहुत कुछ ! उनमें से एक है चाय ! हमारे आसपास शायद ही कोई ऐसा हो जिसने आज तक चाय न चखी हो।
चाय... जिससे हमारे दिन की शुरुआत होती है ! सिर्फ सुबह उठते ही नहीं बल्कि दिन में कई बार हम चाय के कप गटक जाते हैं ! किसी को हर घंटे-आधे घंटे में चाय लगती है तो कोई गिनती की ही चाय पीने वाले होते है ! किसी को खाने के पहले चाय लगती है तो कोई खाने के बाद चाय लेता है। तो कोई इतने शौकीन होते हैं कि उनको चाय के पहले चाय... और चाय के बाद में भी चाय जरूरी हो जाती है।
अंग्रेज जो सोफिस्टिकेटेड चाय छोड़ कर गए थे उसमें हम लोगो ने बहुत से प्रयोग कर के तरह-तरह की चाय बना डाली। कभी अदरख वाली चाय तो कभी इलायची वाली चाय.... कभी मसाले वाली तो कभी केसर वाली या लेमन ग्रास वाली । कभी गाढ़े दूध की रब्बाडी चाय..... पतली गर्म पानीनुमा चाय। इन सबके अलावा भी चाय के अलग अलग रंग हैं.... अभिजात्य वर्ग की ग्रीन टी हो या बिना दूधवाली काली चाय, नीम्बू वाली चाय, चाय की थैली कप में लटका देनेवाली चाय आदि।
चाय बनाने के तरीके भी अलग अलग, सड़क किनारे गुमटी वाला पहले से बने दूध-पानी के मिश्रण में शकर, चायपत्ती मिला कर उबालने का हो या घर में गैस पर पतीले में पानी चढ़ाकर क्रमश: अदरख, शकर, चायपत्ती और अंत में दूध मिलाकर चाय बनाई जाती हो। स्टार होटलों में एक केतली में उबला हुआ चाय का पानी और साथ में शकर, दूध को अलग-अलग पात्रों में दिया जाता है जिससे पीने वाले अपनी रूचि अनुसार बना कर पीते हैं.... तो ठेलों-होटलों पर गिलास में मिलने वाली चाय जिसका इन सब झंझटों के बिना सीधा आनंद लिया जा सकता है। इन ठेलों-होटलों पर मिलने वाली चाय को भी भिन्न-भिन्न नाम प्राप्त हैं। स्पेशल, टिमटिम, गुलाबी, बादशाही, बंगाली जैसे नाम अलग-अलग शहरों में प्रसिद्ध हैं।
कहीं चाय कांच के गिलास में पेश की जा रही है तो कहीं कुल्हड़ में, कागज के कप में या चीनी मिट्टी के कप में। चाहे जैसे इसे पेश किया जाए, चाय तो चाय है, शौकीनों की पसंद।
चाय पीने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। तरावट के लिए या सुस्ती दूर करने के लिए चाय पीना तो सर्वमान्य कारण है। किसी काम से उकता गए हों तो मूड बदलने के लिए चाय पी जाती है या रात में पढ़ते समय नींद न आने के लिए भी लोग चाय का सेवन करते है, किसी का सर दर्द करता है तो वह उस बहाने चाय पी लेता है, भूख दबाने के लिए पी लेता है या मेहमाननवाजी में मेहमान के साथ पी लेता है। चाय के बिना मेहमाननवाजी पूर्ण नहीं होती। मेहमाननवाजी का सबसे सस्ता तरीका है चाय।
दोस्ती का माध्यम भी है चाय। कोई दोस्त जब मिलने आता है तो कदम बरबस ही चाय के ठेले की ओर चल पड़ते है और चाय के साथ गपशप का आनंद लिया जाता है। चाय के लिए समय का या मौसम का भी कोई बंधन नहीं, गर्मी का मौसम हो तो सुस्ती भगाने के लिए, ठण्ड का हो तो ठण्ड दूर करने के लिए और बारिशों में पकौड़ों के साथ चाय का आनंद तो वर्णनातीत है ! किसी को चाय उबलती गर्म पीने की आदत होती है तो कोई ठंडी गार कर के पीता है। सबकी अपनी-अपनी पसंद।
इस चाय ने पता नहीं कितनों को रोजगार दिया है. शायद सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले क्षेत्रों में से एक इसका नाम हो. चाय बागानों से लेकर वितरक, थोक-खेरची विक्रेता और चाय की छोटी सी दुकान-ठेला लगाने वाले तक। चाय की एक छोटी सी दुकान के सहारे अपने परिवार को पालते हुए बच्चों को पढ़ाकर बड़ा अफसर, इंजिनियर बनाए जाने के उदाहरण भी हमें देखने मिल जाते हैं। चाय की इन छोटी दुकानों पर दोस्तों के बीच चर्चाओं में से न जाने कितनी कल्पनाओं का सृजन हुआ होगा, जो बाद में वृहद आकार में साकार हो गई होंगी।
इन सब के बीच रेलवे की चाय ने भी पूरे भारत को एक सूत्र में बाँधने का फर्ज निभाया है क्योंकि कश्मीर से कन्याकुमारी तक कुछ एक हो न हो .... भारतीय रेलवे की चाय एक (जैसी) है !
तो आइये एक बार फिर से अपने हाथों के कप आपस में टकरा कर बोलें .... चायर्स !
- चायसेवनानंद !

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