Wednesday, August 21, 2019

अखबार


अखबार
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रोज सवेरे जो बिना नागा बार-बार आपके घर टपक पड़े, समाचारों का ऐसा पुलिंदा।

वैसे बिना नागा आ टपकने वालों में इसे मांगने वाले पड़ोसी भी पाए जाते है, जो आपसे पहले समाचारों से अपडेट हो जाना चाहते है और लौटाते समय ये बताने से भी नहीं चूकते कि आज के अखबार में पढने लायक कुछ भी नहीं है।

अखबार की जरुरत सुबह-सुबह बड़े बुजुर्ग को पढ़ने से लेकर उस छोटे से बच्चे तक को पड़ती है, जिसे उस 'खास' जगह पर स्थान नहीं मिलता जहाँ बड़े जाकर निवृत्त होने के लिए बैठे हैं। हालाँकि कभी-कभी बड़े भी उस स्थान पर अपना अखबार ले जाते हुए पाए गए हैं। वहाँ इसका उपयोग वे उसे केवल पढ़ने के लिए करते हैं, ऐसा समझा जाता है। 

अखबार की जरुरत दिनभर दुकानदार को भी पड़ती है ग्राहक का सामान बाँधने के लिए, बच्चों को भी पड़ती है किताबों पर कवर चढाने के लिए, गृहणियों को भी पड़ती है अलमारी में बिछाने या काँच पोछने के लिए और रद्दीवालों को भी पड़ती है घर-घर जाकर मांगते फिरने के लिए। इस प्रकार एक अखबार पढ़ लेने के बाद बहुउपयोगी हो जाता है जिसे दादाजी से लेकर बहू, पढ़ने वाले बच्चे और अनपढ़ छोटे से बच्चे तक सारे इस्तेमाल कर लेते हैं।

समाचार पत्र, रिसाला या न्यूज पेपर के नाम से जाना जाने वाला यह अखबार अपने छपने से पहले तक खबरों के सूत्र, पत्रकार, स्तंभकार, कम्पोजर, प्रूफ रीडर, संपादक, प्रेस सुपरवाइजर आदि लोगों की चिंता का सबब रहता है. छपने के बाद वितरक और हॉकर की चिंता बन जाता है और मिलने तक पाठक की चिंता बना रहता है। मिल जाने के बाद भी पाठक की चिंता कभी-कभी इसलिए बनी रहती है की सबसे पहले खुद उसे पढ़े। इस तरह एक अखबार समाचारों के साथ-साथ चिंता का वाहक भी होता है जो चिंता को स्टेप-बाय-स्टेप आगे बढ़ाता रहता है और अंततः देश की चिंता करने का पुण्य श्रेय अपने सर ले लेता है। आश्चर्य की बात है कि एक दिन में दुनियाभर में इतनी सारी घटनायें घट जाती हैं फिर भी उनके समाचार एक अखबार में ठीक-ठीक समा जाते है और अपने साथ विज्ञापनों को भी पर्याप्त स्थान दे देते हैं। 

अखबार का एक महत्वपूर्ण घटक उसमें छपने वाले विज्ञापन हैं, जो अपने दाताओं का सन्देश पाठकों तक पहुँचाने का काम बखूबी करते हैं। एक कॉलम के छोटे से क्लासिफाइड विज्ञापन से लेकर फुल पेज भीमकाय विज्ञापनों से अखबार शोभायमान रहते हैं। कल्पना कीजिये किसी दिन अखबार में एक भी विज्ञापन न हो तो अखबार कैसा लगे ? मानो, बिना श्रृंगार किये कोई महिला सादे से लिबास में सामने आकर खडी हो गई हो। प्रॉपर्टी ब्रोकर्स की तरह ये विज्ञापन अपने सामान या सेवाओं के गुणों का बखान करने में ज़रा भी कंजूसी नहीं करते बल्कि नामालुम गुणों का भी बेहिसाब वर्णन कर जाते हैं। 

किसी समय केवल सुबह के समय टपकने वाले अखबार कुछ वर्षों से दोपहर में भी हाजरी बजाने लग गए हैं, जिससे दोपहर में समय व्यतीत करने के लिए परेशान लोगों को बड़ी राहत मिल गई है। ये लोग अखबार को शीर्षक से लगाकर प्रेस लाइन तक पूरा पढ़ लेने के बाद शब्द-पहेली सुलझाने में समय बिता देते हैं और फिर उसी में मुमफलियाँ छीलकर अखबार और समय का पूरा-पूरा सदुपयोग कर लेते हैं। दैनिक व दोपहर के अखबारों के अलावा साप्ताहिक और मासिक अखबार की भी एक किस्म होती है।

दैनिक अखबार रोजाना अपने संग सिटी न्यूज और पोल-खोलू छोटे भाइयों को भी ले आता है, ताकि जो स्थानीय समाचार मुख्य अख़बार में समाहित नहीं हो पाते उन्हें इन भाइयों के जिम्मे सौंप कर स्वयम का महत्व कायम रख सके। समय-समय पर मुख्य अखबार विशेष परिशिष्ट नामक अपने मित्र को भी आपसे मिलवाने ले आता है।

भाषाई अखबारों की तुलना में अंग्रेजी भाषा के अखबार सेहत के साथ खरीदने वाले के स्टेटस दिखाने में भी वजनदार होते हैं। ये अलग बात है कि इतने सारे पन्नों में से कितने पढ़े जाते हैं, और कितने अनपढ़े ही रद्दी की भेंट चढ़ जाते हैं। अंग्रेजी अखबार मुख्यतः घर से ऑफिस जाते समय कार की पिछली सीट पर बैठे-बैठे पढ़ने के काम आते हैं। 

आम दिनों में दुबले-पतले रहने वाले हिंदी अखबार नवरात्री, दिवाली जैसे त्योहार जैसे-जैसे नजदीक आते जाते हैं, सेहतमंद होते जाते है। इनका वजन और रंगीनीयत त्यौहार के आने तक दिनों दिन बढ़ती जाती है। रंगीन चिकने पन्नों पर जेवरों, कपड़ों, टीवी, वाहनों आदि के विज्ञापनों से इन पर अलग ही चमक छा जाती है। इन दिनों सुबह-सुबह आपके दरवाजे पर इनके टकराने की आवाज ज्यादा दमदार होती जाती है। कुछ दिनों की चांदनी अपनी चमक बिखेरने के बाद फिर लुप्त हो जाती है। इनकी सेहत का राज इन्ही विज्ञापनों में छुपा हुआ है। इन दिनों में यह समाचार-पत्र कम, विज्ञापन-पत्र ज्यादा लगने लगते हैं। 

रेडियो, टीवी, इंटरनेट-मोबाइल पर भले आप समाचार देख सुन लो, लेकिन सुबह की चाय के साथ अखबार में छपे हुए अक्षरों से सामना नहीं होता तब तक दिन की शुरुआत, शुरुआत नहीं लगती।

-व्याख्यानन्द (विवेक भावसार)

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