Friday, May 22, 2020

एक रात की बात


                      एक रात की बात!

हिल स्टेशन की वह तूफानी शाम। जून माह का पहला सप्ताह, सनसनाती हवा चल रही थी। तेज हवा से पेड़ पौधे अपनी जगह पर लगातार हिल रहे थे। पत्तों की सरसराहट और तूफानी हवा की सांय सांय करती आवाज पूरे माहौल में गूँजती जा रही थी। धूल भरी आँधी चल रही थी। धूल के साथ सूखे पत्ते भी हवा में उड़ रहे थे। तभी आसमान में अचानक काले बादल छा गए। घना अंधेरा छाने लगा और बादलों में बिजलियाँ कड़कने लगीं। किसी भी पल बारिश शुरू होने के आसार नजर आ रहे थे।

इसी बीच इस हिलस्टेशन पर रास्ते से हटकर इंसानी बस्ती से काफी दूर स्थित वह बंगला नजर आ रहा था जो काफी पुराना और उतना ही वीरान लग रहा था। बंगले की यह अवस्था देख कर कोई भी सोच में पड़ सकता था कि कोई वहाँ रहता भी होगा या नहीं? उस बंगले से कुछ ही दूर स्थित वह संकरा मोड़ और मोड़ के पहले संकेतक लगा हुआ था, "खतरनाक मोड़, वाहन सावधानी से चलाएं"। ऐसी तूफानी पृष्ठभूमि पर वह बंगला और भी ज्यादा डरावना लग रहा था। तभी बिजली का भी जाना हुआ।

ठीक उसी समय बंगले के फाटक के आगे एक युवा युगल खड़ा हुआ था। शायद इस तूफानी रात में रुकने के लिए कोई आसरा ढूंढ रहा होगा। उस युगल के पुरुष ने बंगले के फाटक को हिलाकर बजाया। किन्तु हवा के इतने शोर के बीच अंदर से कुछ भी प्रतिक्रिया सुनाई न दी इसलिए वह दोनों फाटक धकेल कर अंदर प्रविष्ट हुए। जंग लगे फाटक को धकेलते हुए कुछ जोर तो लगाना पड़ा किन्तु करर्रर की आवाज के साथ फाटक खुल ही गया। अंदर प्रवेश कर उन्होंने बंगले के मुख्य प्रवेशद्वार पर हथेलियों से जोर से थपकियाँ दी।

कुछ ही देर में बंगले के आउटहाउस के कमरे से खड़बड़ाहट की आवाज सुनाई दी और कमरे का दरवाजा धीरे से खुलता गया। अंदर से एक बूढ़ा धीरे-धीरे बाहर आया और हाथ में थामी हुई लालटेन को युवक युवती के चेहरों तक उठाते हुए उनको देखा। कोई नवविवाहित जोड़ा मालूम होता था। हाथों में रची मेहंदी, चूड़ियां और कुछ गहने पहने लड़की स्पष्ट रूप से एक नई दुल्हन सी लग रही थी।

 उस घुप्प अंधेरे में उस बूढ़े को देख किसी का भी दिल डर से बैठ जाता, क्योंकि उसका हुलिया ही इतना भयानक था मानो किसी हॉरर फिल्म का पात्र हो। लम्बे बढ़े हुए खिचड़ी बाल, बेतरतीब दाढ़ी, लटकते होठों के बीच झलकते काले पड़ चुके दाँत, भेदती नजर, मैल से सराबोर, चीकट पड़ चुके कपड़े।

उंगलियों में पकड़ी बुझती आ रही बीड़ी को एक तरफ फेंकते हुए थरथराती आवाज में उसने पूछा,
"क्या बात है, क्या चाहिए?"

"बाबा, क्या रातभर के लिए हम यहाँ रुक सकते हैं? वो क्या है कि हमारी गाड़ी खराब हो गई है। बारिश शुरू हो चुकी है और बस्ती भी बहुत दूर है, वरना कोई मेकेनिक ले कर आ जाता। रातभर के लिए सोने की जगह मिल जाती तो...!"
उस युवक ने विनती करते हुए कहा।

"ठीक है, बंगले का कमरा खोल देता हूँ, चाहो तो रात भर रुक सकते हो।" कहते हुए बूढ़े की आँखों में एक चमक सी आ गई। 

"अच्छा हुआ आप लोग आ गए यहीं... पिछले हफ्ते ही एक आगे वाले मोड़ पर एक गाड़ी फिसलकर टकरा गई बरगद उस पेड़ से। उसी समय जान चली गई दोनों की, कोई नया जोड़ा था, शादी के बाद आया था घूमने यहाँ!"

अपने कमरे में जा कर बूढ़ा चाबियों का गुच्छा ले आया और प्रवेशद्वार का ताला खोला। एक कमरे में उन्हें लाकर मेज पर लालटेन रखते हुए कहा,
"यहाँ रात गुजार सकते हो आप दोनों, कमरा कुछ धूल से भरा है, बहुत दिनों बाद खुला है। लेकिन एक बात बता दूँ, खानेवाने के लिए कुछ नहीं मिलेगा, चाय भी नहीं। सुबह एक दूधवाला पावभर दूध दे कर जाता है, वो भी ख़त्म हो गया है। कल तुम्हारे लिए अलग से ले कर रखूगा, सुबह ही मिलेगी चाय।"

"कोई बात नहीं बाबा, अभी हमको खाने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है, सुबह भी आप तकलीफ मत करना।"

"सामान किधर है आप लोगों का?"

"गाड़ी में ही पड़ा हुआ है बाबा, अभी लेने जाऊंगा तो भीग जाऊंगा, बारिश बहुत तेज हो गई है। और उसकी अब जरूरत लगना भी नहीं है।"

"कोई बात नहीं, कीमती सामान होगा, ले आते तो अच्छा था... !"

"कौन ले जाएगा... लेकिन क्या आप अकेले रहते हो यहाँ ?"

"हाँ भाई, अकेला ही हूँ, मेरे अलावा कोई नहीं रहता यहाँ इस वीरान जगह में। इस बंगले के मालिक परदेस में रहा करते हैं, आ जाते हैं तीन-चार साल में कभी। दे जाते हैं कुछ रकम मेरी जरूरत के हिसाब से। बहुत पुराने समय से रखवाली जो करता आ रहा हूँ। लेकिन आप जरा संभल कर रहना। रात में कुछ चमगादड़-उल्लुओं का हंगामा होता रहता है तो घबराना मत। जाओ, आप तो जाओ ... सो जाओ।"
कहते हुए बाबा अपने कमरे की ओर निकल गया। 

कोई उसे उस समय देखता तो शायद कुटिलता से मुस्काते हुए पाता। लेकिन उस जोड़े ने इस बात पर कोई खास ध्यान नहीं दिया। कमरे का दरवाजा बंद हुआ और अंदर से दोनों की खुशी से भरी हँसी की आवाज बाहर सुनाई दी।

अब अंधेरा बहुत गहरा गया था। हाथ को हाथ नहीं सुझाई दे रहा था। बारिश अपने पूरे जोर पर थी। बीच बीच में जो बिजली कड़क रही थी उतनी ही देर का उजाला हो जाता था। घण्टेभर जोरदार बरसने के बाद अब बरसात धीरे-धीरे धीमी होती जा रही थी और अंततः बन्द भी हो गई। इतनी देर तक चल रहा बारिश का शोर भी पूर्णतः बन्द हो गया। सब दूर एक सन्नाटा छाया हुआ था। रात के कीड़ों के अतिरिक्त कोई भी आवाज अब नहीं सुनाई पड़ रही थी।

आधी रात हो चुकी थी, या और भी अधिक समय गुजर गया होगा। अंधेरे में एक दरवाजे के खुलने की आवाज आई। दो मिनट बाद ही एक दूसरे दरवाजे को जोर जबरी से धकेल कर खोला गया है ऐसा लगा। कुछ देर में एक जोरदार चीख की आवाज वहाँ गूंजी और पुनः शांति छा गई। दूर तक किसीने वह चीख सुनी हो इसकी संभावना नगण्य थी, और सुनी भी होती तो कोई दौड़कर वहाँ तक आने वाला नहीं था। अपने कमरे तक जाने के कदमों की आवाज के बाद कमरे का दरवाजा बंद हो गया, और गहरा सन्नाटा छा गया। क्या हुआ होगा इस दर्मियान? कुछ अनहोनी तो नहीं हुई थी? 

रात बीत गई, सुबह हो गई। हमेशा के समय पर दूधवाला फाटक पर आ कर खड़ा हुआ और बाबा को आवाज दी। लेकिन अंदर से कोई भी जवाब नहीं मिला। इसलिए वह फाटक धकेलकर बाबा के कमरे तक पहुँचा तो एक भयानक दृश्य देख कर काँप उठा। कमरे का दरवाजा खुला पड़ा था। बाबा अंदर मरा हुआ पड़ा था, उसकी आँखें और जुबान निकल कर बाहर आ गई थी मानो किसी ने गला दबाकर मार डाला हो। दूधवाला घबराकर बाहर की ओर दौड़ पड़ा और अपनी सायकल उठा गाँव की तरफ तेजी से चल दिया और पुलिस स्टेशन जा कर घटना की खबर की।

कुछ ही देर बाद पुलिस की गाड़ी घटना स्थल पे पहुँच गई। अधिकारियों ने शव देख कर जाँच शुरू की। बंगले के सारे कमरे खोल-खोल कर देख डाले। सारे कमरे धूल से भरे हुए थे, केवल एक कमरे में बिस्तर की चादर कुछ बेतरतीब ढंग से फैली पड़ी थी। न कोई निशान न तो कोई अन्य सुराग। जाँच पूरी कर चौकीदार का शव एम्बुलेंस में रख पुलिस की गाड़ियाँ वहाँ से रवाना हो गईं।

पुलिस जीप और एम्बुलेंस के जाते ही बंगले के हॉल में एकाएक हँस कर खिलखिलाने की आवाज गूंज उठी। 
"अब से हम दोनों ही का राज है यहाँ। कार एक्सीडेंट के बाद उस बरगद के पेड़ पर बैठ आठ दिन बड़ी मुश्किल से काटे हैं। आखिर कितने दिन ऐसे निकालते हम? कल रात उस बाबा का काँटा भी हमने दूर कर दिया। अब इस बंगले में केवल हम दोनों...तुम और मैं!" वह युवक अपनी जोड़ीदार युवती से कह रहा था ।

तभी उस युवक के कंधे पर किसी ने हाथ रखा और थरथराती आवाज में पूछा,
"मैं भी अगर तुम दोनों के साथ रहूँ ... कोई हर्ज तो नहीं ?"

युवक ने पीछे मुड़कर देखा....वही कल वाला बाबा पीछे खड़ा हुआ था जिसके प्राण कल रात उसने लिये थे।

- विवेक भावसार

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