Monday, July 1, 2019

आधुनिक मेघदूतम्


यह कथा मैंने मेरे मित्र खालीदास से खाली समय में सुनी है । उसे मैं जस की तस आपको सुनाने का प्रयास करता हूँ । 

इस कथा का नायक है इन्द्रनगर नामक नगर की कुबेर फायनेंस कंपनी में सेल्स एक्जीक्यूटिव के पद पर काम कर रहा एक बांका नौजवान दक्षकुमार । दक्षकुमार अपनी कंपनी के निदेशक एवं मालिक कुबेर साहब का बड़ा ही प्रिय एवं खास कर्मचारी था। दक्ष भी अपने मालिक की सेवा में बड़ी कर्तव्यदक्षता एवं इमानदारी से लगा रहता था । एक छोटे से पद से शुरुआत करते हुए दक्ष अपनी कार्यकुशलता व मेहनत के माध्यम से प्रगति करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था। ऐसे होनहार और जवान पुत्र के विवाह की कामना हर माता-पिता की तरह दक्ष के माता-पिता को भी थी। शहर में अपने अकेले रहते लड़के अतिरिक्त चिंता भी उन्हे सता रही थी, सो एक अच्छी सी लड़की देखकर दक्षकुमार का विवाह धूम-धाम से संपन्न करा दिया गया। एक नामी कंपनी में अच्छे पद पर होने से उसे पत्नी भी बड़ी ही सुंदर और प्यारी मिली। नई-नई शादी थी। जग रिती के अनुसार नये जोड़े का प्यार उछाले तो मारता ही है, तो इसी रिती को निभाते हुए दक्षकुमार भी अपनी नई-नवेली पत्नी के प्यार में पूरी तरह से डूब गया। अपनी पत्नी की सारी फरमाइशें पूरी करना, उसे हर दो-तीन रोज में होटल में खाना खिलाना, हर सप्ताह शॉपिंग मॉल में भ्रमण पर जाना, पश्चात् चलचित्र अवलोकन, यह उसका प्यारा सा नित्यक्रम हो चला था।

दक्ष अपनी पत्नी के प्रेम में इस सीमा तक पागल हो गया कि कभी-कभी ऑफिस के कामों का भी उसे विस्मरण होने लगा। ऐसे ही एक दिन ऑफिस में सेल्स स्टाफ की एक अत्यंत आवश्यक मीटिंग रखी गई थी, और ठीक उसी मीटिंग में दक्ष गैरहाजिर रहा। और तो और मीटिंग के लिए एक आवश्यक फाईल भी उसने घर ले जाकर रखी थी। 

ऑफिस से दक्ष के मोबाइल पर फोन लगाकर पूछताछ हुई तब मालूम हुआ कि दक्षकुमार अपनी प्रिय पत्नी के साथ शॉपिंग हेतु बाजार में विचरण कर रहा है। कंपनी के मालिक कुबेर सर को यह बात विदित होने पर वे अत्यंत क्रोधायमान हुए। उन्होंने तत्काल दक्षकुमार को ऑफिस में उपस्थित होने का आदेश दिया। दक्षकुमार को पता चलते ही वह तुरंत ऑफिस पहुँच कर कुबेर सर के सामने उपस्थित हो गया ।

ऑफिस टाइम में एक महत्वपूर्ण मीटिंग छोड़कर पत्नी के संग शॉपिंग करने के लिये घूमते रहने को लेकर कुबेर सर उस पर भयंकर रुप से नाराज हो गये थे और दंड स्वरुप तुरंत ही दक्षकुमार का तबादला उन्होने सुदूर प्रदेश के रामटेकनगर में कर दिया । वहाँ उसे अकेले ही जाने और वहाँ का टारगेट पूरा होने तक उसे अपनी पत्नी से अलग रहने का भी क्रूर आदेश उसे मिला । दक्ष बड़ा ही दुःखी होकर ऑफिस से बाहर निकला और रामटेकनगर जाने की तैयारी के लिये घर आ पहुंचा । भारी मन से उसने यह खबर अपनी प्राणप्यारी पत्नी को सुनाई। खबर सुनकर विरह के विचार से बेचारी पत्नी भी अत्यंत दुःखी हो गई। दक्षकुमार ने अपनी तैयारी पूरी की और निकलने को हुआ। "रोजाना मोबाईल, व्हाट्स एप पर हम चैट कर लिया करेंगे और विरह की वेदना भुलाते हुए किसी तरह दिन गुजार ही लेंगे '' इस प्रकार पत्नी को अपनी ओर से सांत्वना देते हुए दक्ष ने उस से विदा ली और वहाँ से निकल पड़ा।

रामटेकनगर पहुँचते ही उसने तुरंत अपनी पत्नी को पहुँचने का फोन किया। वहाँ का ऑफिस जॉइन करने के बाद वह वहाँ धीरे-धीरे रमने लगा। रोजाना सुबह-शाम अर्धांगिनी के साथ मोबाइल पर वार्तालाप तो चल ही रहा था, लेकिन फिर भी पत्नी से विरह की वेदना में वह बुरी तरह तड़पा जा रहा था । इसी तरह दिन गुजरते रहे और अचानक एक दिन दक्षकुमार ने पाया कि पत्नी से मोबाइल पर संपर्क नहीं हो रहा। उसने बड़ी देर तक और कई बार कोशिश की, लेकिन कोई सफलता उसे नहीं मिली। अगले दिन भी यही हाल रहा। दक्षकुमार कोशिशें कर-कर थक गया परंतु कोई यश नहीं मिला। "शायद पत्नी के मोबाइल का बैलेन्स खत्म हो गया होगा या मोबाइल खराब हो गया होगा' ये सोच कर मन की तसल्ली कर चुप बैठ गया। लेकिन सच यही था कि उस दिन के बाद कभी भी उसकी अपनी प्रिय पत्नी से कोई बात नहीं हो पाई।

पत्नी विरह में दक्ष बहुत ही व्यथित हुआ जा रहा था। सुबह-शाम मोबाइल पर होने वाली बातें भी अब बंद हो गईं थी। उसका न काम में मन लग रहा था न खाने में। बड़ी ही विचित्र अवस्था हो चली। दक्ष मन के साथ-साथ तन से भी दुबला हो चला। गाल पिचक गये, पेट और पीठ का मिलन हो गया। उसके कपड़े ढीले हो चले, पैंट तो कमर में इतनी ढीली हो गई के अपने-आप कमर से सटक कर नीचे खिसकने लगी। अंततः कमर के पट्टे में अतिरिक्त छिद्र करवा कर उससे पैंट कसने का इंतजाम करना पड़ा । 

कई दिन बीत गये। देखते ही देखते वर्षा का मौसम निकट आ गया। आसमान में काले-काले बादल घुमड़नेे लगेे। आषाढ़ मास शुरु हो चुका था। यह सब देखकर दक्ष मन में विरह की आग से और भी अधिक व्याकुल हो गया। अपनी प्रिया से बात करने का भी कोई रास्ता बचा न था। पत्नी को अपना संदेश कैसे पहुँचायें इस बात पर बहुत विचार कर अंततः उसे एक उपाय सूझा । तुरंत उसने एक गुलाबी कागज पर एक लम्बा सा प्रेम-पत्र लिख डाला। जन रिती अनुसार उस पत्र पर इत्र-परफ्यूम छिड़क कर एक लिफ़ाफ़े में बंद कर अपने घर का पता - "प्रेमसदन, 63, अलकापुरी कालोनी, इन्द्रनगर" एवं भेजने वाले अर्थात स्वयं का नाम व मोबाइल नं. लिखकर वह पत्र त्वरित रवाना हो इस उद्देश्य से "गगन कोरियर सर्विस' में ले जाकर दे दिया। दक्ष कुमार के करुण निवेदन तथा अर्जेन्सी को देखते हुए कोरियर वालों ने भी उस पत्र को तत्परता से पहली ही डाक से वांछित पते पर रवाना करवा दिया ।

पत्र जल्द ही दक्षकुमार के गृहनगर की कोरियर कंपनी की शाखा में आ पहुँचा। पत्र को दिये हुए पते पर पहुँचाने की जिम्मेदारी "मेघकुमार' नामक कोरियर बॉय पर आ पड़ी। मेघकुमार शहर के अलकापुरी क्षेत्र के अन्य पत्रों के साथ दक्ष का भी पत्र लेकर वितरण करने निकल पड़ा। उस क्षेत्र में मेघकुमार ज्यादा आना-जाना नहीं होने से उसे दक्ष के घर का पता मिलने में कठिनाई हुई। बड़ी कोशिश के बाद भी उसे जब पता नहीं मिला तब उसने घर तक पहुँचने का रास्ता ठीक से समझने के लिए पत्र भेजनेवाले अर्थात दक्षकुमार के मोबाइल पर फोन लगाया। दक्ष के पूछने पर उसने अपना परिचय देकर पता ढूंढने में आ रही कठिनाई के विषय में बताया और पता ठीक से समझाने के लिये निवेदन किया।

तब दक्ष ने उससे कहा - हे मित्र मेघ, एक बड़ा ही महत्वपूर्ण कार्य मैंने तुम पर सौंपा हुआ है। तुम्हारे हाथ में रखा हुआ यह पत्र मैंने अपनी प्रिय पत्नी को लिखा हुआ है। मित्र, कोशिश करना कि जल्द से जल्द यह पत्र उसके हाथ पहुँचे। अच्छा बताओ, तुम अभी कहाँ खड़े हो ?

तब मेघकुमार ने जवाब दिया-हे प्रभु, मैं इस समय, प्रत्येक नगर में अवस्थित होने वाले महात्मा गांधी रोड नामक पथ के नेहरु प्रतिमा वाले चौक पर खड़ा हूँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें।

तब दक्ष ने उसे रास्ता समझाने के उद्देश्य से आगे कथन किया - मित्र मेघ, तुम बिलकुल ठीक स्थान पर खड़े हो, यहाँ से तुम्हे पता ढूंढने में जरा भी कठिनाई नहीं होगी, तुम केवल मेरे निर्देशों का पालन करते चलो। हे मेघदूत, तुम नेहरुजी के मुख की दिशा में मुख्य मार्ग पर सीधे चल पड़ो। आगे चलते-चलते तुम्हे बायीं ओर तीसरी गली के कोने पर मिल्क पार्लर नामक एक गुमटी मिलेगी, जहाँ दुग्ध छोड़कर बाकी सारी वस्तुएँ, यथा ब्रेड, बिस्किट, अंडे, नमकीन, सिगरेट, चॉकलेट्स, गुटखा, बेक्ड समोसा आदि करीने से जमा कर रखे हुए दिखेंगे । लेकिन मित्र, तुम उनकी ओर तनिक भी ध्यान मत देना। तुम उस गली को छोड़ चौथे क्रमांक की गली में प्रवेश कर लेना । उस गली में घुसने के बाद तुम सीधे ही चलते जाना। आगे काफी दूर चलने के बाद तुम्हे वहाँ पाईप लाईन की दुरुस्ती के लिये नगर पालिका द्वारा खोदा गया एक बड़ा सा गड्ढा मिलेगा। मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि आठ माह पहले खुदा हुआ वह गड्ढा अभी तक नगर पालिका द्वारा भरा नहीं गया होगा। परंतु मित्र, तुम उस गड्ढे में मत उतरना, हो सकता है कि उसमें अब तक काफी सारा कीचड़ जमा हो गया होगा। तुम वह गड्ढा सावधानीपूर्वक लांघकर आगे की ओर बढ़ जाना ।

आगे चलने पर दायीं ओर के नुक्कड़ पर अवस्थित एक रिक्त भूखंड दिखाई देगा । उस पर आस-पास के लोगों द्वारा फेंके गये अवशिष्ट अर्थात् कचरे का एक बड़ा सा पर्वताकार ढेर दिखेगा तथा उसकी भयानक दुर्गंध से सारा परिसर सरोबार हो चुका होगा । तब तुम ऐसा करना मित्र, तुरंत अपनी जेब से रुमाल निकालकर अपनी नाक ढँक लेना और कचरे के ढेर से किनारा कर दायीं दिशा की ओर प्रयाण कर जाना । कुछ पचास कदम आगे बढ़ने पर एक चौड़ा पथ दिखाई पड़ेगा । उस मार्ग के बाईं ओर "अवंतिका' कन्या महाविद्यालय की राजमहलसदृष्य भव्य अट्टालिका दृष्टिगत होगी । मित्र तुम अगर प्रातः दस बजे अथवा दोपहर तीन बजे के लगभग वहाँ से गुजर रहे होंगे तो अनेक सुंदर, सुकुमार कन्याओं की टोलियाँ उस रास्ते पर से लचकती, बल खाती हुई चलती हुईं दिखाई पड़ेंगी। और निश्चय ही उन टोलियों के पीछे नवयुवकों की कोई टोली भी मुख से शिट्टीका ध्वनि का उद्घोष करते या अपने शब्दबाणों से युवतियों को छेड़ते हुए उनका अनुसरण करते दिखाई पड़ेगी। मित्र तुम दो घड़ी पथ के एक ओर खड़े हो कर इन नवयुवकों को अपने स्मित से उत्तेजन देती हुईं कमनीय तरुणियों के दर्शन करना। संभव हुआ तो तुम भी एकाध सीटी बजा लेना। कुछ देर विश्रांति लेना और तब आगे बढ़ना ।

चलते-चलते मित्र, अब तक तुम्हारा कंठ शुष्क हो चुका होगा। महाविद्यालय के कोने पर ही एक शीतल जल की मन्दाकिनी प्याऊ है। तुम वहाँ रुक कर अपनी तृष्णा शांत कर लेना। नजदीक ही में स्थित हिमालय अल्पाहार केन्द्र में उपलब्ध अमृततुल्य राष्ट्रीय पेय चाय का आस्वाद लेना भी तुम्हे अवश्य पसंद आयेगा। चायपान के पश्चात ताजादम हो कर तुम अगला रास्ता तय करने निकल पड़ना । उसी दिशा में बगैर मुड़े तुम आगे बढ़ते जाना। तुरंत ही तुम्हे एक विशाल मैदान नजर आयेगा। सम्पूर्ण मैदान में गाजर घास के झुरमुटों के बीच विचरते वराह अर्थात सुअरों के झुंड तुम्हे यत्र-तत्र दिखाई पड़ेंगे । मैदान के गहरे गड्ढेनुमा हिस्से में पानी अथवा कीचड़ जमा हुआ दिखेगा, उसमें बैठीं स्नानानंद का रसपान करतीं भैंसे और उनके आगे-पीछे मंडराते शुभ्र-धवल बगुले नामक पक्षीकुल के दर्शन लाभ का भाग्य भी शायद तुम्हे प्राप्त हो ।

हे मित्र मेघदूत, मैदान पीछे छोड़कर तुम जब आगे की ओर बढ़ोगे तब तुम्हे एक चढ़ाई मिलेगी। उस टेकरी पर चढ़ आने के बाद कोई ठंडी हवा की लहर शायद तुमसे टकरा जाये, मित्र तुम जरा भी न घबराना। क्योंकि अलकापुरी कॉलोनी के बिलकुल नजदीक आकर तुम खड़े हुए हो। चढ़ाई खत्म होते ही कॉलोनी का प्रवेशद्वार है और वहीं अलकापुरी की नामदर्शक पट्टिका भी स्थापित की हुई है। उस द्वार से अंदर प्रवेश करते ही रास्ते में खड़ी गाय, भैंसे, बकरियाँ आदि से बचते हुए तुम छठे क्रमांक की गली तक पहुँच जाना। गली के कोने पर नगर पालिका द्वारा रखी हुई एक कचरापेटी दृष्टिगोचर होगी। कॉलोनी का कचरा उस पेटी के अंदर होने की बजाए पेटी के आस पास बिखरा हुआ पड़ा होगा। वहाँ पड़े कचरे को उचकाने-बिखराने में लगे श्वानों - वराहों से बच कर बड़ी होशियारी से तुम उस गली में प्रवेश कर जाना ।

गली में आगे बढ़ने पर तुम्हे कैलासपति श्री शंकर भगवान का एक देवालय दिखाई पड़ेगा। भगवान महादेव के दर्शन लेने के पश्चात तुम जब मंदिर से बाहर निकलोगे, ठीक सामने ही ६३ क्रमांक का "प्रेमसदन' नामक मेरा निवास है । परिसर का द्वार खोलकर तुम वहाँ प्रवेश करना परंतु अचानक से द्वारघंटिका मत बजा देना। कदाचित् मेरी प्रिया निद्रावस्था में स्थित होगी या वह मेरे स्वप्नों में खोई हुई होगी। द्वारघंटिका की कर्कश ध्वनि से उसके स्वप्न में व्यवधान उत्पन्न होगा। पहले तुम बाजू वाले गवाक्ष से धीरे से झांक कर देख लेना। अगर मेरी प्रिया निद्रावस्था में हो तो वहीं से अपने साथ रखी पानी की बोतल से कुछ पानी लेकर उस के मुखकमल पर हल्के से छींटे मार देना। तनिक प्रतीक्षा करना। वह निद्रावस्था से बाहर आने पर मेरे मित्र, मेरा यह पत्र तुम उसके अधीन कर देना और फिर चाहे अपने शेष पत्र वितरण करने चले जाना । धन्यवाद मित्र मेघदूत !
- पथप्रदर्शनानन्द (विवेक भावसार)

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