Tuesday, July 30, 2019

भूलभुलैया

मेरे पिता उनकी नौकरी के शुरुआती समय में  एक छोटे गांव में रहते थे। उन दिनों इतनी सुविधाएं नहीं हुआ करती थीं। इस वजह से एक बार ऑफिस की कैश कहीं देने खुद ही जाना पड़ा। रात का समय था। उन्हें जिस जगह जाना था, वहाँ जाने के लिए एक जंगल का हिस्सा पार करना होता था। रास्ते में क्या हुआ ये उन्हें याद नहीं, लेकिन रोजाना के रास्ते पर वो लगभग तीन-चार घंटे घूम रहे थे। वहीं के वहीं गोल-गोल चक्कर लगा रहे थे! तभी एक बैलगाड़ी वाला पास से गुजरने लगा, और तब जाकर वे बैलगाड़ी के सहारे जंगल पार कर पाए। उनका बताया वह संस्मरण आज भी हमें याद है, लगता है मानो वह हमारा स्वयं का अनुभव है।
ये जंगल की भूलभुलैया क्या चीज है, कहकर नहीं बताई जा सकती। कोई उस पर विश्वास करेगा, कोई नहीं भी करेगा। मैंने स्वयं कभी अपने जीवन में इसका अनुभव नहीं लिया। इसलिए इस पर कुछ कहने का मेरा कोई अधिकार नहीं। लेकिन आज जब घर का किराने का सामान खरीदने एक डिपार्टमेंटल स्टोर में जाना हुआ और एक ऐसी ही भूलभुलैया में फँसने का अनुभव हुआ।
ख़रीददारी की भूलभुलैया - आकर्षक रूप से सजी वस्तुएं, सामानों की वजह से अनजाने ही इन चीजों की ओर मन आकर्षित होता है। मेरी ट्रॉली कब भर गई पता ही न चला। पहले किराना सामान, फिर कपड़े दिखाई पड़े, महीने की खरीदारी में वे भी ट्रॉली में आ बसे। सरकार गला फाड़ चिल्ला रही.. प्लास्टिक का इस्तेमाल न करें। लेकिन फिर भी करीने से सजी कुछ चीजें मुझे मोहित कर मेरी ट्रॉली में समा गईं। काँच के सामान रखी एक अलमारी से मेरी ट्रॉली हल्के से टकराई और मुझे मेरा बैलगाड़ी वाला मिल गया। बिलिंग काउंटर पर जाने से पहले दस मिनट शांति से बैठकर जो अनावश्यक सामान ट्रॉली में भर लिया था, निकाल बाहर किया और इस भूलभुलैया से बाहर आना हुआ।
मोबाइल की भूलभुलैया - सिर्फ एक मैसेज पढ़ने के लिए उठाया हुआ फोन, अपने आप घंटों तक हाथों से चिपका रहता है। फेसबुक - वाट्सएप की भूलभुलैया तो और भी खतरनाक। इससे भी खतरनाक यह कि इसमें हमें राह दिखाने गाड़ीवाले हमारे आसपास ही होते हैं, जैसे पत्नी, पति, माता, पिता, भाई, दोस्त। वे हमें टोकते हैं फिर भी हम इन बैलगाड़ीवालों पर ही गुस्सा होते हैं और वापिस इसी भूलभुलैया में फँस जाते हैं।
तीसरी भूलभुलैया है नींद या सोना - पाँच मिनट के लिए लेट जाओ तो घण्टाभर कैसे बीत जाता है, नहीं पता चलता। यहाँ भी अलार्म रूपी बैलगाड़ी है, लेकिन हम उसे आसानी से नजरअंदाज कर देते हैं और बिंदास तान कर सो जाते हैं । दोपहर की नींद का भी यही हाल है। गलती से भी बिस्तर पर पीठ टिका दी तो समझो खो गए इस भूलभुलैया में।
टीवी चैनल्स की भूलभुलैया - इसके तो क्या कहने, 150-200 से ज्यादा चैनल्स ...ये पसंद नही आ रहा तो बदल दो चैनल। यहाँ मन नहीं रम रहा तो दबाओ बटन और कूदो दूसरे चैनल पर। एक फ़िल्म कम से कम 3-4 बार तो देख ही ली जाती है और परिणाम... 3-4 घंटे भूलभुलैया के नाम स्वाहा।
Sale... एक  खतरनाक भूलभुलैया - सेल में हमारे द्वारा ऐसी-ऐसी चीजें खरीद ली जाती हैं, जिनकी जरा भी जरूरत नहीं होती। 500 रुपये की बचत के लिए हम आसानी से 4-5 हजार रुपये खर्च कर डालते हैं और ऐसी वस्तुएं खरीद लाते हैं जिनके बगैर अगले 4-5 साल हमारा कोई भी काम रुकने वाला नहीं है। लो कपड़े, लो जूते, ले लो पर्सेस, भरो बैग्स और उड़ाओ पैसे।
क्रेडिट कार्ड की भूलभुलैया -  ये तो आज की दुनिया की सबसे वाहियात भूलभुलैयाओं में से एक। सिर्फ और सिर्फ अपनी जेब से तुरंत  पैसे नहीं जा रहे इस वजह से आसानी से हम इसे इस्तेमाल कर रहे हैं। अगले महीने की पहली तारीख को उसका बिल भरते हैं और अगले माह का वेतन आने तक कैश नहीं बचता इस लिए फिर क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करते हैं। 
होटलिंग की भूलभुलैया- यह तो आजकल चक्रव्यूह है। घर खाना बनाने का आलस आये तो बाहर खाने चलो, घर के खाने से उकता गए तो बाहर खाने चलो। स्टार्टर्स अच्छे लगते हैं इसलिए बाहर खाना या वेरायटी के लिए बाहर खाना या ऐसे ही कुछ बर्गर-पिज़्ज़ा जैसे उटपटांग खाने के लिए बाहर का रुख करना। आजकल किसी को खाने पर न्योता देने पर भी उसे बाहर ले जाकर खिलाना। क्या वह स्वयं बाहर जा कर नहीं खा सकता?
कम्पीटिशन की भूलभुलैया - हर एक को दूसरे को दिखाने के लिए कुछ चाहिए। ये भूलभुलैया तो हमारी संस्कृति, मानव जाति के लिए घातक साबित हो रही है। कैसी यह जान लेने वाली स्पर्धा, वास्तव में इस मार्क्स, नम्बर्स की स्पर्धा के चलते कभी पालकों की, कभी बच्चों की या कर्ज चुकाने के चक्कर में माता पिता की जान तक जाने की नौबत आ जाती है।
व्यसनों की भूलभुलैया - किसी दोस्त के ऑफर करने पर कि एक कश या एक पेग से कुछ नहीं होता युवा सिगरेट या शराब की भूलभुलैया में कदम रख देते हैं फिर व्यसन इस हद तक बढ़ जाता है कि लगता है इसके बिना एक क्षण भी जिया नहीं जा सकता सिगरेट का व्यसन कहीं मादक पदार्थों के सेवन तक चला जाये तो जीवन और स्वास्थ्य का सत्यानाश निश्चित है 
सोचने पर पता चलता है, मेरे पिता तो उस भूलभुलैया से 3-4 घण्टों में बाहर आ गए, लेकिन हमारा क्या होगा? इन सब भूलभुलैयाओं से हम कब बाहर आएंगे? सिर्फ एक अंतर है, यहाँ बाहर का बैलगाड़ी वाला उपलब्ध नहीं है। भूलभुलैया में फँसने वाले भी हम और हमें सचेत करनेवाले भी हम ही हैं। कितने ज़ख्म खाने के बाद या कितना कुछ खो देने के बाद इससे बाहर निकलना है, ये हमे ही तय करना होगा।
(सोनाली तेलंग की पोस्ट का हिंदी अनुवाद और सम्पादन )
- विवेक भावसार 

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