Friday, July 12, 2019

मच्छर


मच्छर .... सभा में आते ही तालियाँ बटोरने वाला एक गायनप्रेमी कीटक।
अनेक लोग ताली बजाने के बहाने मच्छर ही को मार डालने की कोशिश में रहते हैं, लेकिन यह कीटक अत्यंत चतुर होने से लोगों के हाथ न लगते हुए सफलतापूर्वक निकल भागता है। इसे मारने के चक्कर में कई बार लोग खुद को भी थप्पड़ मार लेते हैं।
घर से बाहर इसे ठंड-गर्मी की परेशानी ना हो इसलिये लोग सोने के समय मच्छरदानी बांधते हैं। फूल रखने के लिये जिस तरह फूलदानी या इत्र रखने के लिये इत्रदानी होती है, उसी प्रकार मच्छर रखने के मच्छरदानी होती है; जिससे मच्छर अंदर आकर सुकुन से गायन-वादन का अपना कार्यक्रम करते रहें। अपना श्रोता चैन से सो जाए ये इन्हें जरा भी मंजूर नहीं होता, इसलिये थोड़ी-थोड़ी देर में काटकर मच्छर उसे जागते रहने के लिए मजबूर कर देते हैं। इनके काटने में विशेषता ये होती है कि अगर ये गालों पर काट ले तो किसी बेशरम के गालों पर भी लाली आ जाती है।
श्रोताओं को गाना दूर से सुनाई नहीं देता इसलिये ये उनके कानों के समीप आ कर गुनगुनाते हैं। श्रोताओं के लिये इतना चिंतित रहने वाला गायक शायद ही कोई दूसरा हो। मानव जाति में जो गायक हैं उनमें से कितने श्रोताओं के कानों के पास जाकर गाते है, अगर इस बात का पता लगाया जाए तो निराशा ही हाथ लगेगी।
मच्छरदानी के अतिरिक्त मनुष्य ने मच्छरों से बचाव के लिये कई तरीके इजाद किये है जैसे- मच्छररोधी क्रीम, मच्छर अगरबत्ती, स्प्रे, गुडनाईट, बेडनाईट आदि आदि। देखा गया है, जैसे आतंकवादियों को रोकने की सरकारी कोशिशों का आतंकवादियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ठीक वैसे ही इन सारी अगरबत्ती-क्रीम्स का मच्छरों के आतंक पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
एक टीवी विज्ञापन के अनुसार इनका घर में घुसने का समय ठीक छः बजे का होता है। चूंकि मच्छरों को घड़ी देखना नहीं आता इसलिये इनके आने का समय घंटा-आधा घंटा आगे-पीछे भी हो सकता है, इसलिये समय की गैरपाबंदी के लिये मच्छरों को दोष देना उचित नहीं होगा।
डॉक्टरों की भांति मच्छरों में भी स्पेशलिस्ट होते हैं। कोई साधारण मच्छर होता है जो केवल गुनगुनाकर निकल जाता है। किसी के काटने से मलेरिया होता है तो किसी डेंगू स्पेशलिस्ट के काटने से डेंगू नामक रोग होता है। कुछ मच्छर ऐसे भी होते है जिनके काटने से चिकनगुनिया रोग होता है, जिसके बाद कोई मनुष्य ताली बजाने लायक भी नहीं रह पाता।
डेंगू, मलेरिया उन्मूलन मुहिम में सरकार ने करोड़ों की संख्या में मच्छरों को नष्ट किया है। बीते पांच साल में कितने मच्छर सरकार द्वारा मारे गये हैं इसके आंकड़े पंचवार्षिक योजना के वार्षिक प्रतिवेदन में पढ़ने के लिये मिल सकते है या सूचना के अधिकार के जरिये भी प्राप्त किए जा सकते हैं। कहा जाता है कि यह आंकड़े सरकारी होते हुए भी सत्य हैं।
गहन अध्ययन एवं शोध का विषय है कि ये मच्छर पूर्वजन्म के आतंकवादी थे या आतंकवादी अपने पूर्वजन्म में मच्छर थे। दोनों ही संभावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता। इन दोनों के बीच की कई बातों में समानता इस शंका को पुष्टि देती है।
देखिए उदाहरण -
➣ जिस प्रकार एक मच्छर पूरे बंदोबस्त के बावजूद मच्छरदानी में या घर के भीतर कोई सूराख ढूंढकर किसी तरह दाखिल हो ही जाता है, एक आतंकवादी भी देश की सीमाओं में से सूराख ढूंढकर देश में घुस ही जाते हैं।
➣ जिस तरह मच्छर एक अकेला नहीं आता उसी तरह आतंकवादी भी समूह में घुसने के प्रयास में रहते हैं।
➣ एक आतंकवादी किसी देश में लोगों के बीच छुपा रहता है और अवसर आने पर अपना काम कर जाता है ठीक उसी प्रकार मच्छर दिन भर घरों-कमरों के कोनों में छुपे रहते हैं और शाम होते ही अपने मिशन पर निकल आते हैं ।
➣ एक आतंकवादी लोगों के खून का उतना ही प्यासा होता है जितना की एक मच्छर। ये दोनों ही लोगों के खून के लिए अपनी जी जान लड़ा देते हैं, चाहे उसमें उनको अपनी खुद की जान ही क्यूं न गवानी पड़ जाए।
➣ मच्छरों की तरह एक आतंकवादी लोगों की अमन, चैन, शांति का दुश्मन होता है । आप शांतिपूर्वक कहीं बैठे हो, ये इनको नहीं सुहाता और ये आपकी शांति भंग करने पहुँच ही जाते हैं ।
➣ दोनों के शिकार मासूम और निहत्थे लोग ही होते हैं ।
➣ ये भी होता है कि गाल पर बैठे मच्छर को मारने के लिए स्वयं को ही चाटा खाना पड़ता हो उसी प्रकार देश में छुपे किसी आतंकवादी को पकड़ने में किन्हीं निरपराध लोगों को भी बली चढ़ जाती है ।
➣ जिस प्रकार एक मच्छर पकड़ में आने पर कोई उसे जिंदा नहीं छोड़ना चाहता, यही गत आतंकवादियों की भी होती है । कोई नहीं चाहता कि शांति और अमन के दुश्मन आतंकवादी को जिंदा छोड़ दिया जाए, बल्कि मच्छरों की तरह इन्हें भी मसल कर रख दिया जाए।

- व्याख्यानंद (विवेक भावसार)

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