Monday, June 3, 2019

भूत मजाक भी नहीं कर सकता?




काफी पुरानी बात है...कई साल पहले की। उस समय किसी के पास TV- मोबाइल नहीं हुआ करते थे। मोबाइल, TV नहीं होते थे इसलिए रात का खाना-वाना निपटा के लोग किसी के ओटले पर आ बैठते थे, न कि आजकल की तरह मोबाइल में लगे घर में घुसे रहा करते। गपशप की चौपाल जम जाती थी। तरह-तरह की बातें हुआ करती थी। चुटकुले,किस्से-कहानियां, किसी ने देखी नई-नई फ़िल्म की स्टोरी डायलॉग एक्शन सहित, किसी की चुगलियाँ ...और न जाने क्या क्या।

इन्हीं सब बातों में एक विषय अक्सर निकल ही आता था और वो था भूत और उसकी कहानियाँ। गपशप के माहिर कुछ लोग स्पेशलिस्ट की तरह भूत-भूतनियों की किस्में, उनके रहने की जगह, उनसे बचने के तरीके आदि के बारे में इस विशेषज्ञता के साथ बताते की मानो भूतों से रेगुलरली डील करा करते हों।

ऐसे समय मोहल्ले के ही कुएं के पास लगे इमली के बड़े से पेड़ पर रहने वाले भूत की बात जरूर निकलती। कुछ लोगों के पास इस पेड़ पर रहने वाले भूत के बारे में अपने बुजुर्गों से सुनी कहानियाँ होती थी और उन कहानियों का बाकायदा अनेक बार पारायण होता। कहानी की पुष्टि के लिए स्वयं द्वारा उस भूत को देखे जाने की गवाही भी दी जाती। उस इमली के पेड़ पर से दिन में इमलियाँ तोड़ने में तो कोई डर नहीं लगता था लेकिन अंधेरा हो जाने के बाद उसके नीचे से गुजरने में भी जान निकल जाती थी । कभी निकलना भी पड़े तो राम नाम जपते या हनुमान जी को याद करते तेजी से निकल जाने में ही भलाई समझते थे।

उन्हीं दिनों शहर में एक अंग्रेजी हॉरर सिनेमा लगा था, एक्जॉरसिस्ट। जिसे हम कुछ हमउम्र मित्रों के साथ शाम का शो देख आये थे। बेहद डरावनी फ़िल्म थी। उछलते बिस्तर, पूरे ३६० डिग्री में सर घुमा देने वाली हरी नीली डरावनी आँखों वाली प्रेतात्मा का वास होने वाली लड़की, मुंह से न जाने कैसे हरे-काले रंग की उलटियाँ करती
 बहुत ही वीभत्स और डरावना था शो के बाद रात के सन्नाटे में सुनसान सड़क से घर लौटते हुए हर साधारण सी आवाज पर भी चौंकते हुए बड़ी मुश्किल से घर पहुँचे थे। उसके कई दिनों बाद तक रात में घर में टॉयलेट जाते भी डर लगता था।

ऐसे ही किसी दिन एक घर के ओटले पर बैठे-बैठे फिर उसी इमली के पेड़वाले भूत का विषय निकल आया। ये घर भी उसी इमली के पेड़ के सामने ही था। ऐसे में किस्सा सुनाने वाला अपने साथ एक डरावना बैकग्राउंड लेकर किस्से को प्रभावी बना रहा था। तभी लगभग पंद्रह-सोलह साल का एक लड़का बोल उठा, "आप लोग कुछ भी सुने-सुनाए किस्से बताये जा रहे हो, मुझे पता है वह असली किस्सा।"

"तो तुम ही बताओ, क्या है असली बात?"

"बात ऐसी है दोस्तों, एक बड़ा ही मसखरे टाइप का किशोर उम्र का लड़का इस मोहल्ले में रहता था। नौवी-दसवीं में पढ़ता था । लोग उसे जग्गू के नाम से ही ज्यादातर जानते थे। उसकी आदत थी हर किसी के साथ मजाक करने की। झूठे-मुठे किस्से सुनाकर वह लोगों को बेवकूफ बनाया करता था। एक बार उसने लोगों से कहा, कुछ ही दिन पहले उज्जैन में सिंहस्थ के मेले में एक औघड़ योगी बाबा से मुलाकात हुई है। उन्होंने मुझे भूतों को प्रकट करने की विद्या सिखाई है। चाहों तो मैं तुम्हें भूत प्रत्यक्ष दिखला सकता हूँ। लेकिन बड़ा खतरनाक काम है, जान का जोखिम है।"
उसकी बात सुनकर सबने भूत को देखने की इच्छा प्रकट की।


तब जग्गू ने कहा,
"दो दिन बाद अमावस है, रात ठीक बारह बजे मैं तुम्हे भूत से मिलवाऊंगा। जो हिम्मत कर सकता है केवल वही आये, इसी इमली के पेड़ से भूत उतर कर आएगा।"

सब तय हो गया। जग्गू ने भी भूत दिखाने का अपना प्लान बना लिया। प्लान के मुताबिक जग्गू बाजार से एक लंबी रस्सी खरीद लाया और उसे काले रंग से रंग दिया। अमावस के दिन पौ फूटने से पहले वह रस्सी को इमली के पेड़ की एक शाखा पर बांध दी और आड़ में छुपा कर आया। साथ मे एक सफेद चोगा भी रख आया।


रात 11-30 बजे तक कुछ हिम्मत वाले जो भूत देखना चाहते थे वे सारे पेड़ से कुछ दूर इसी जगह जहाँ हम लोग अभी बैठे हैं... आकर इकठ्ठा हो गए। जग्गू भी आ गया । आधी रात और अमावस होने से अंधेरा बहुत घना था। बड़ी मुश्किल से ही सामने कुछ दिखाई दे पा रहा था। हवा चलने से पत्तों की सरसराहट सुनाई दे रही थी। कभी-कभी पेड़ पर लटके चमगादड़ तेज आवाज के साथ फड़फड़ाते हुए उड़ने लगते। रात के कीड़े, झींगुर आदि की आवाजें सन्नाटे में गूंज रही थीं ... और ऐसे में भूत दर्शन का कार्यक्रम ! लोग जैसे-तैसे एक दूजे के हाथों को थामे हिम्मत कर के खड़े थे।

जग्गू ने सब को वहीं खड़ा होने के लिए कहा और कहा... "मैं उस पेड़ के पीछे जाकर मंत्र पाठ करूँगा, बारह बजते ही तुम लोग सिटी बजा कर इशारा करना, भूत पेड़ से उतर कर हवा में तैरते हुए दिखाई देगा।"


सब ने हामी भरी।

जग्गू पेड़ के पीछे चला गया और सावधानी से बिना किसी को नजर आये पेड़ पर चढ़ गया। वहाँ छुपाकर रखे सफेद चोगे को पहन लिया और पेड़ पर छुपा कर रखी रस्सी को कमर में बांध लिया ।

बारह बजते ही दूर खड़े लोगों ने सिटी बजा कर इशारा किया तब जग्गू  पेड़ की डाल से रस्सी के सहारे लटकते हुए नीचे आने लगा और रस्सी की सहायता से हवा में लहराते हुए मुंह से विचित्र आवाजे भी निकालने लगा । काली रस्सी अंधेरे में नजर न आने से सफेद चोगा पहने झूलते हुए 
जग्गू को लोग हवा में तैरता भूत समझ रहे थे। अंधेरे में पेड़ के इर्द गिर्द लहराते सफ़ेद छायानुमा भूत को देख लोग डर कर पेड़ से और ज्यादा दूर हो गए।

कुछ देर तक लहराने के बाद जग्गू की कमर में बंधी रस्सी जो कहीं से कमजोर थी, अचानक टूट गई और उससे बंधा जग्गू सीधे नीचे कुएं में जा गिरा। गिरते-गिरते कुएं की मुंडेर से सर टकराने के कारण वहीं उसकी मौत हो गई। चीखते हुए गिरने के कारण देखने वाले सारे लोग डर के मारे वहां से भाग खड़े हुए।

सुबह जब लोगों ने कुएं में देखा तो जग्गू की लाश पड़ी मिली। लोगों ने तब यही समझा कि इमली वाले भूत ने जग्गू की जान ली है और तब से ही ये कहानी चल पड़ी है। 
इस तरह जग्गू की मजाक उस पर ही भारी पड़ गई। असल में वहाँ कोई भूत था ही नहीं, समझे आप लोग ?"

इतना कह कर वह लड़का चुप हो गया।


तभी किसी ने कहा,
" भाई तुम तो इस मोहल्ले में पहले कभी दिखे नहीं, नए लगते हो।

तब वह बोला, " मैं तो य
हाँ का बहुत पुराना रहने वाला हूँ, बीच में कुछ दिनों से बहुत दूर चला गया था, अभी-अभी ही लौटके वापस आया हूँ।"

"क्या नाम है तुम्हारा? " किसी ने पूछा।

उसने कहा," जग्गू....मतलब जगमोहन नाम है मेरा।"

"अच्छा ! लेकिन रहते क
हाँ हो?"

"वही, उसी इमली के पेड़ की उस बड़ी वाली डाल पर।"

उसने पेड़ की ओर हाथ का इशारा करते हुए कहा।
सारे लोग उस तरफ देखने लगे।

"मजाक करते हो क्या... पेड़ पर भी कोई रहता है ?" एक ने पूछा।

"तो क्या भूत मजाक भी नहीं कर सकते? खी..खी..खी" जगमोहन ने हँसते हुए कहा।
सबने मुड़ के जगमोहन की ओर देखा, लेकिन व
हाँ तो कोई भी नहीं था।

-जगभूतानंद!
(विवेक भावसार)

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