Friday, June 14, 2019

स्फूर्ति रस

आज से लगभग नौ-दस वर्ष पूर्व लिखी रचना एक बार पुनः आपके समक्ष प्रस्तुत है !

बड़े बुजुर्गोसे भी सुना था और मैंने भी अपने बचपन में देखा है कि हमारे इन्दौर शहर की दिनचर्या काफी सुबह से ही शुरु हो जाती थी। सुबह की पाली के मिल मजदूर सुबह 7 बजने के पहले ही घरों से निकल जाते थे। सुबह-सुबह सड़कों की सफाई पूरी हो कर मशकों से उनकी धुलाई भी हो जाया करती थी । पूरे शहर के बाजार सवेरे 8-9 के दरमियान खुल जाते थे। बाहर गाँव का व्यापारी सुबह जल्दी आकर अपना सौदा कर के शाम के पहले लौट जाया करता था। चाहे दफ्तरोंमें चले जाईये या बैंकों में, अस्पतालों में या दुकानों में, जनता का काम लोग बड़ी फूर्ति से निपटा दिया करते थे।
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और अब आज का जमाना है, हर जगह कम्प्यूटर आ गये हैं, तेज रफ्तार का युग है फिर भी हर जगह सुस्ती, आलस और काम टालने की प्रवृत्ति का जोर है। बाजार देखो तो 12 बजे तक दुकानों के शटर ही खुलते हैं। दुकानों में जब झाडू लगती है तब सूर्य नारायण ठीक सर के उपर नब्बे डिग्री के कोण से निरीक्षण कर रहे होते हैं।
दफ्तर शुरू होने के निर्धारित समय पर पहुँच जाओ खाली टेबल-कुर्सियाँआपका स्वागत करती हैं। अफसर-कर्मचारी नदारद होते हैं। अस्पतालों में मरीजों की लम्बी कतारे लगी होती हैं परंतु जिन्हें सबसे पहले आ जाना चाहिये वो चिकित्सक ही सबसे अंत में आते हैं। यानी, हर जगह जिसे भी मौका मिलता है वह इस आलस और काम टालू प्रवृत्ति में अपना अधिक से अधिक योगदान देने में तत्पर रहता है । दिनों के काम महिनों तक, और महिनों में जो काम हो जाने चाहिये वह बरसों तक लटकते रहते हैं।
लेकिन यह सब कैसे सुधरे? इसे पटरी पर लाने का क्या उपाय हो सकता है? ....यहीं सोचते हुए मैं सुबह भगवान के सामने बैठा दीया-बत्ती-प्रार्थना कर रहा था और अचानक.....अचानक मेरे सामने स्वयं भगवान प्रकट हो गये और बोले-
"वत्स, तू जो सोच रहा है, बहुत ही अच्छा सोच रहा है। मैं भी चाहता हूँ मानव इस कुप्रवृत्ति से दूर हो । इस दुनिया को आलस और कामचोरी से मुक्ति दिलाने का उपाय मेरे पास है पर मैं अकेले इस काम को नहीं करुंगा। इसमें मुझे तुम्हारा भी सहयोग चाहिये।''
मैंने कहा " अवश्य भगवन् ! लेकिन मैं किस प्रकार से सहयोग दे सकता हूँ ?''
तभी भगवान ने जादूगर की तरह हवा में हाथ घुमाया और क्षणमात्र में एक कलश उनके हाथों में प्रकट हुआ। भगवान ने वह कलश मेरे हाथों में थमा दिया।
मैने पूछा '' ये क्या है प्रभु? मुझे ये क्यों दे रहे हैं आप ?''
भगवान बोले " तुम्हें आलस और कामचोरी की आदत से इस शहर को मुक्ति दिलाना है ना ? यह एक विशेष स्फूर्ति रस का कलश है। इस स्फूर्ति रस का सूक्ष्म से सूक्ष्म कण भी शहर के हर नागरिक के शरीर में पहुँच जाये तो सारा शहर स्फूर्तिमय हो जायेगा और तुम्हारी समस्या हल हो जायेगी। अब ये तुम्हे सोचना है कि यह काम तुम्हें कैसे पूरा करना है।''
इतना कहकर प्रभु अंतर्धान हो गये। इधर कलश हाथ में लेकर मैं सोचने लगा कि यह काम कैसे हो ? कईं विकल्प मन में आने लगे...सोचा हर घर जाकर इसे बाँटू, पर इसमें तो बहुत समय लग जायेगा और ये स्फूर्ति रस पूरा भी नहीं पड़ेगा।
फिर सोचा हर शहरवासी चाय तो पीता ही है, हर होटल, चाय के ठेले पर जाकर एक-एक बूँद चाय में मिलवा देता हूँ। परंतु हर शहरवासी तो होटल जा कर चाय पीता नहीं सो यह आइडिया भी छोडना पड़ा।
सोचते-सोचते कलश में डूबी अपनी उंगली उठाकर मैने मुँह में डाल ली। उस स्फूर्ति रस का जीभ पर स्पर्श होते ही ऐसा चमत्कार हुआ... कि अचानक आईडियों के भंडार खुल गये। कल्पना का घोड़ा वायुवेग से सरपट दौड़ा और कई तरकीबों की सैर करते हुए एक तरकीब पर आकर रुक गया।
मैंने मन ही मन कहा "मूरख सारा शहर जिस नदी-तालाब का पानी पीता है, तू इस कलश को उसी पानी में मिला दे। बस तेरा काम तो बन गया समझ !''
मैं तुरंत शहर को पानी की आपूर्ति करने वाले फिल्टरेशन प्लांट की ओर निकल पड़ा और वहाँ पहुँच कर चुपके से स्फूर्ति रस का पूरा कलश शहर में जाने वाले पानी में उंडेल दिया। "अब शहर के घर-घर में ये स्फूर्ति रस वाला पानी पहुँच जायेगा। पूरे सौ प्रतिशत ना सही 60-70 प्रतिशत नागरिक तो इसके प्रभाव में आ ही जाएंगे'' ये सोचते हुए खुशी-खुशी मैं घर आ गया।
और वाकई कुछ ही दिनों में असर सामने आ गया। सारे शहरवासी फूर्ति से ओतप्रोत हो गये। बाजार सुबह जल्दी खुलने लगे, दफ्तरों में सारे कर्मचारी समय पूर्व पहुँचने लगे। जिस काम की सरकार ने 15 दिन की समय सीमा तय कर रखी थी, लोगों का वह काम तीसरे ही दिन हो जाने लगा। गैस का नम्बर लगाकर घर आओ, पीछे से गैस सिलेंडर लेकर गैस वाला हाजिर ! बिजली, टेलीफोन की शिकायत-तत्काल हल। अदालतों में मुकदमों के सफाये होने लगे। बैंकों में फटाफट लोन पास होने लग गये। आरटीओ में हाथो-हाथ गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस बनने लग गये। अस्पतालों में मरीज के पहुँचते ही इलाज होना शुरू हो गये। नगर निगम में एक दिन में मकानों के नक्शे पास होने लगे, अन्य नागरिक शिकायतों का निराकरण भी तुरंत हो जाने लगा। कॉलेज की कक्षाओं में कोर्स समयपूर्व ही पूरे कर दिये गये। विश्वविद्यालय की परिक्षाएं भी समय पर सम्पन्न होने लगी, जिससे छात्रों के परीक्षा परिणाम भी समय पर आ गये।
फूर्ति रस ने ऐसा कमाल दिखाया कि हर दिशा में, हर विभाग में जैसे फूर्ति की प्रतियोगिता चल रही हो । जो पुल पांच-पांच साल में नहीं बनते थे, छः माह में पूरे होकर जनता के लिये खोल दिये गये। जिन सड़कों को बनने में दो-दो साल लग जाते थे तीन माह में पूरी होने लगीं।
इधर चोरों ने भी फूर्ति से चोरी करना चालू कर दिया, पर पुलिस ने उनसे भी ज्यादा फूर्ति से अपराधियों को पकड़ना चालू कर दिया। आखिर इससे तंग आकर अपराधियों ने अपराध करना ही छोड़ दिये।

होते-होते इसकी खबर पहले प्रदेश में, फिर सारे देश में फैल गयी और हडकंप मच गया। समाचार पत्र, टीवी चैनल, रेडियो, सब फूर्ति के किस्से बताने में लग गये। आखिर राजधानी में कुछ नेताओं के पेट में कुलबुलाहट सी होने लगी। पक्ष्-विपक्ष के इन सारे नेताओंने सोचा, अगर ये रोग सारे देश-प्रदेश में फैल गया तो बड़ी मुसीबत आ जाएगी, हमारा तो धंधा ही चौपट हो जाएगा।
आखिर इस मामले की जाँच के लिये सारे चिंतित लोगों की ओर से प्रदेश के मुखिया के समक्ष जाँच आयोग की माँग की गई। मुद्दों को लटकाने की सरकारी परंपरा के विपरित जाँच आयोग की मांग तुरंत मान ली गई। जाँच आयोग भी तय हो गया पर बाहरी जाँच आयोग जाँच में बहुत ही ज्यादा समय लगा देगा, इसलिये जाँच को स्फूर्ति युक्त शहर के ही किसी विशेषज्ञ से कराने का फैसला लिया गया, ताकि आम जाँचों के विपरित फूर्ति से जाँच हो और जल्दी से परिणाम सामने आए।

खैर, जाँच भी तुरंत चालू हुई और आशा के अनुरुप परिणाम भी जल्द ही सामने आ गया, कि....
"किसी स्फूर्ति रस मिले पानी पीने के परिणाम स्वरुप सारे लोगों में फूर्ति की यह धारा बह रही है," ...साथ ही जाँच में यह भी पाया गया कि “इन सबके बावजूद कुछ बड़े-बड़े लोग आज भी इस स्फूर्ति रस के प्रभाव से अछूते पाये गये हैं। इन महान लोगों ने अपनी सुस्ती और मक्कारी के सद्गुणों को बचाकर रखा है।" इन लोगों की गहन जाँच से सामने आया कि "यह सारे महान लोग तो कभी निगम द्वारा वितरित पानी पीते ही नहीं हैं। इनकी प्यास बुझाने के लिये घरों में कोल्ड्रिंक की बोतले या मिनरल वाटर की बोतलें भरी पड़ी है, और एक विशेष समय में ये तो पानी को हाथ भी नहीं लगाते।"
जाँच की मांग करने वाले नेताओं के हाथ जाँच का परिणाम पहुँचते ही सभी नेता इस विचार में व्यस्त हो गये कि इस फूर्ति प्रभाव को कैसे नष्ट किया जाय ? मैं भी उत्सुक था यह जानने के लिये कि अब ये सारे लोग क्या उपाय करते हैं।
इतने में मुझे श्रीमतीजी ने मेरे कंधे पकड़ कर जोर से हिलाया और लगभग चीखते हुए कहा-"" सुनते हो ? उठो...अरे कब तक सोते रहोगे ? दिन के 11-11 बजे तक सोये पड़े रहते हो । भगवान जाने, ये आदत कब जायेगी..... आज दफ्तर नहीं जाना क्या ? महिने की पहली तारीख है, सैलेरी लाना है कि नहीं ?'
.-स्वप्नानंद!
( विवेक भावसार)

2 comments:

Vivek Bhavsar said...

कमेन्ट नहीं आ रहा

Vivek Bhavsar said...

बताइए कैसे आये कमेंट